- Entertainment
- Shopping
- Quiz
- Relationship & Romance
- Sex Life
- Recipes
- Health & Fitness
- Horoscope
- Beauty
- Others
बॉलीवुड हिपोक्रेसी पर बोले श्रेय...
Home » बॉलीवुड हिपोक्रेसी पर बोले ...
बॉलीवुड हिपोक्रेसी पर बोले श्रेयस तलपड़े, बोले अपनों ने ही दिया धोखा, कई बार झेला रिजेक्शन (Shreyas Talpade Finally Spelled Out Bollywood’s Hypocrisy, Said Friends Stabbed His Back For Films, He Had To Suffer Rejections)

सुशांत की मौत के बाद लम्बे समय तक नेपोटिज्म और फेवरेटिज्म पर बहस चली. कई सितारों ने बॉलीवुड में अपने साथ हुए भेदभाव को सरेआम कबूल किया और बॉलीवुड में नेपोटिज्म की बात को भी माना. और अब बॉलीवुड के बेहतरीन एक्टर्स में से एक श्रेयस तलपड़े ने भी इस मुद्दे पर बात की है.
पिछले कई सालों से श्रेयस तलपड़े ‘गोलमाल’, ‘हाउसफुल’ जैसी मल्टी स्टारर कॉमेडी फिल्मों का हिस्सा बनकर रह गए हैं. लेकिन श्रेयस को हमेशा महसूस होता है कि बॉलीवुड में उन्हें वो जगह नहीं मिली, जो उन जैसे बेहतरीन एक्टर को मिलनी चाहिए थी और इसका जिम्मेदार वो इंडस्ट्री में होनेवाले भेदभाव और फेवरेटिज्म को मानते हैं. हाल ही में एक इंटरव्यू में श्रेयस ने इस पर खुलकर बातें कीं.
लगातार रिजेक्शन झेलना पड़ा
एक चैनल को दिए अपने इस इंटरव्यू में श्रेयस तलपड़े ने बॉलीवुड की हिपोक्रेसी पर पहली बार बातें की और बताया कि किस तरह उन्हें लगातार रिजेक्शन झेलना पड़ा.श्रेयस ने कहा, इकबाल के बाद मैं आज तक उस तरह की फ़िल्म का इंतज़ार कर रहा हूँ जिसमें मुझे सही मायने में अपना टैलेंट दिखाने का मौका मिल सके. लेकिन अनफॉर्चुनेटली मुझे अब तक वो मौका नहीं मिला. मुझे गोलमाल और हाउसफुल जैसी मल्टीस्टारर फिल्मों तक ही सीमित कर दिया गया.
इंडस्ट्री में टैलेंट का कोई पैरामीटर नहीं है
क्रिकेट में एक पैरामीटर है, आपने अगर ज़्यादा रन बना लिए तो आप अच्छे बैट्समैन हैं, लेकिन इंडस्ट्री में ऐसा कोई पैरामीटर नहीं है. शायद इस वजह से मैं पीछे रह गया.
यहाँ हिपोक्रेसी है, भेदभाव है
मैं मानता हूँ कि मेरी कुछ फिल्में बॉक्स ऑफिस पर पिट गईं. लेकिन कई बड़े स्टार हैं, जिनकी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर अच्छा नहीं करतीं, लेकिन उन्हें तो बड़े बैनर और बडी फिल्में मिलनी बन्द नहीं होतीं. पर मेरे साथ ऐसा नहीं हुआ. क्यों. ये बात आज तक समझी ही नहीं मुझे. मेरी तो एक फ़िल्म पिट जाती है तो लोग मुझसे आकर कहने लगते हैं, कि यार तेरी पिक्चर तो पिट गई तो अब अगली फ़िल्म के लिए प्राइस कम हो जाएगी. और फिर कई एक्टर्स ऐसे हैं जो लाइन से फ्लॉप फिल्में देते हैं, लेकिन उनकी न मार्केट प्राइस कम होती है, न बड़े बैनर्स उनसे दूर भागते हैं. इस तरह की हिपोक्रेसी, इस तरह का भेदभाव हर्ट करता है. इसका मतलब तो ये हुआ न कि यहां टैलेंट की वैल्यू नहीं होती, किसी और चीज़ की होती है. यहां अलग अलग लोगों के लिए अलग अलग रूल्स हैं और मुझे यही बात पसंद नहीं आती.
मुझे मार्केटिंग करनी नहीं आई
श्रेयस ने कहा कि उनकी सबसे बड़ी कमी ये रही कि उन्हें अपनी मार्केटिंग करनी नहीं आई. “मैं सोचता रहा कि मेरा काम, मेरा टैलेंट बोलेगा, पर अल्टीमेटली ऐसा हुआ नहीं.”
इंडस्ट्री में मेरे कुछ फ्रेंड्स ने ही मेरी पीठ में छुरा भोंका
मैंने ये भी महसूस किया कि कई एक्टर्स ऐसे भी हैं, जो मेरे साथ स्क्रीन शेयर नहीं करना चाहते थे. वो मुझे अपनी फिल्म में लेना ही नहीं चाहते थे. इसके अलावा मैंने कुछ फिल्में सिर्फ फ्रेंडशिप में कर लीं, लेकिन बाद में मुझे पता चला कि मेरे उन्हीं फ्रेंड्स ने मेरे पीठ पीछे छूरा भोंका. मेरे उन्हीं फ्रेंड्स ने बाद में मेरे बिना फिल्में बना डालीं. मुझे पूछा तक नहीं. ऐसे लोगों को तो फ्रेंड भी नहीं कह सकते न. एक्चुअली इस इंडस्ट्री में 90% लोग ऐसे ही हैं. सिर्फ 10 % लोग ऐसे हैं जो सच में आपकी तरक्की से खुश होंगे.
ओटीटी प्लेटफॉर्म ने टैलेंट को नई पहचान दी
श्रेयस कहते हैं कि ओटीटी प्लेटफॉर्म पर इस तरह का कोई भेदभाव नहीं होता. यहां ये नहीं देखा जाता कि किसी फिल्म फैमिली से आते हैं या नहीं, यहां सिर्फ टैलेंट देखा जाता है. यही वजह है कि आज प्रतीक गांधी(स्कैम 1992) और जयदीप अहलावत(पाताललोक) बड़े स्टार कहलाते हैं. मनोज बाजपेयी और केके मेनन का टैलेंट फाइनली लोगों तक पहुंच पाया.