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कहानी- आस्था का फल (Story- Aastha Ka Phal)

Short Story- Aastha Ka Phal “ये विज्ञान का दुरुपयोग है, अगर हम इसका इसी प्रकार उपयोग करते रहे तो ये अभिशाप बन कर कहर बन सकता है.” अनु उत्तेजित हो उठी. क्षितिज बिना कुछ कहे कमरे से बाहर चले गए. उस दिन के बाद से अनु ने सभी के मिज़ाज में परिवर्तन देखा, ऐसी स्थिति में वह ज़्यादा तनाव में नहीं रहना चाहती थी. अत: उसने कुछ दिनों के लिए मां के यहां जाने का फैसला कर लिया. मां-पिताजी उसे देख कर बेहद ख़ुश हुए, परन्तु ज्यों-ज्यों उन्हें भी वास्तविकता का पता चला, उन्हें भी ससुराल पक्ष की बात अधिक सही लगी. अनुभा अपनी पूर्व योजना के अनुसार जब दूसरी बार गर्भवती हुई, तो बहुत प्रसन्न थी. उसकी पुत्री अब तीन वर्ष की हो चुकी थी. अनुभा ने महसूस किया कि अब वह दूसरे बच्चे को जन्म देकर, उसे भी पूरी ज़िम्मेदारी से पाल सकती है और इसके साथ ही उसके इस कर्त्तव्य की इति भी हो जायेगी. इस शुभ सूचना से घर में सभी के चेहरों पर ख़ुशी की लहर दौड़ गई. पर सभी के दिल में चाह थी कि इस बार बेटा ही होना चाहिए. सास-ससुर दोनों ने ही बातों-बातों में कह भी दिया कि इस बार तो सारे घर को रौशन करने वाला चिराग़ ही आना चाहिए, फिर वंश बेल भी तो बढ़नी है. सब कुछ सुनकर अनुभा चुप थी. पहले प्रसव के समय की सब बातें अभी तक उसे याद थीं, बेटी पैदा होने की किसी को ज़्यादा ख़ुशी नहीं हुई थी. बेमन से ही सबने सब रीति-रिवाज़ निबाहे थे. परन्तु पति क्षितिज के उदार व्यवहार ने इस स्थिति से उबरने में उसकी बड़ी मदद की. प्रत्यक्ष रूप से तो उन्होंने बेटी के जन्म को भी एक सुअवसर के रूप में ही स्वीकार किया. अनुभा को बेटे व बेटी में कोई अन्तर न लगता था. वह स्वयं इंजीनियर थी. उसके विवाह की बुनियाद शायद उसकी ये डिग्री ही थी. समाज में ऊंची प्रतिष्ठा रखने वाले उसके ससुराल पक्ष के लोग मुंह खोल कर दहेज की मांग तो नहीं कर सके थे, पर इस बात से आश्‍वस्त ज़रूर थे कि इंजीनियर बहू ऊंची नौकरी करेगी तो ख़ुद ही पैसा बरसेगा. परन्तु यहां भी अनुभा अपने आदर्शों पर अडिग रही. वह वैवाहिक जीवन के साथ-साथ मातृत्व का भी पूरा सुख उठाना चाहती थी, जबकि पहले दिन से ही पति सहित सास-ससुर सभी यही चाहते थे कि जल्दी ही अनुभा अच्छी-सी नौकरी कर ले. कई अच्छी फर्मों से उसके लिए ऑफ़र भी आए, पर उसने नौकरी करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. एक दिन अन्तिम प्रयास करते हुए क्षितिज ने बात छेड़ी. “अनु, तुम इतनी पढ़ी-लिखी होकर भी इस दिशा में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रही हो.” “हां क्षिति, मैं वैवाहिक जीवन का पूरा आनंद उठाना चाहती हूं. नौकरी करने में अभी मुझे कोई दिलचस्पी नहीं है.” क्षितिज हंस पड़ा, “अरे, नौकरी करते-करते आनंद नहीं उठाया जा सकता क्या? ये तुमने बड़ी अजीब-सी बात सोच रखी है.” “बात अजीब नहीं, सत्य है क्षिति, यदि शुरू से ही हम दोनों अपनी-अपनी नौकरियों में उलझ जायेंगे तो एक-दूसरे को जानने-समझने का अवसर कब मिलेगा. तब हम एक-दूसरे के प्रति ज़िम्मेदारियां समझने के बजाए अपनी-अपनी नौकरियों के प्रति अधिक ज़िम्मेदार रहेंगे. तब प्रेम के बदले हमारे बीच दरारें पड़ सकती हैं, हमारा दांपत्य जीवन प्रभावित हो सकता है.” “अब तुम्हें कौन समझाए? चलो छोड़ो, मुझे तो तुम्हारे पैसों की ज़रूरत भी नहीं है अनु, बस मैं तो तुम्हारी योग्यता को व्यर्थ में यूं दम तोड़ते नहीं देखना चाहता था.” “योग्यताएं कभी दम नहीं तोड़ती हैं क्षिति, यदि सही समय और सही उद्देश्य के लिए उनका प्रयोग किया जाए तो लाभप्रद सिद्ध होती हैं.” “ठीक है बाबा, मैं तो तुम्हें ख़ुश देखना चाहता हूं बस.” क्षितिज कुछ चिढ़ कर बोले. “बस क्षितिज, मैं आपके मुंह से यही सुनना चाहती थी. जब ज़रूरत होगी, मैं अपनी योग्यता का उपयोग अवश्य करूंगी. पहले नारी जीवन के कर्त्तव्य तो पूरे कर लूं.” अनुभा क्षितिज के गले में बांहें डाल, उसके गले लग गयी. क्षितिज ने भी जबरन मुस्कुराने का प्रयत्न किया. ये उसके ज़िद्दी निर्णय का पहला झटका उसके सास-ससुर को लगा. उन्हें भी उसने यही कहकर समझाया कि पहले मैं बच्चों को पाल-पोसकर स्वावलम्बी बना दूं, तब अपने बारे में सोचूंगी. अपने स्वार्थ के कारण मैं बच्चों से उनका बचपन नहीं छीनना चाहती हूं, उन्हें अपनी स्नेह छाया में अपने हाथों से पालना चाहती हूं, ताकि माता-पिता के प्रति वे भी अपने कर्त्तव्यों से अनभिज्ञ न रह जाएं. अनुभा अच्छी तरह जानती थी कि इस बार सबके मन में काफ़ी हलचल चल रही होगी. इस बार बेटी का जन्म सब पर गाज बन कर गिरेगा, पर वह चुपचाप आने वाले पलों का इन्तज़ार कर रही थी. मौक़ा देख एक दिन उसकी सास ने कहा, “बेटा अनु, तुम ख़ुद ही काफ़ी समझदार हो, यदि बुरा न मानो तो जांच करवा कर पता करवा लो कि इस बार बेटा है या बेटी.” यह भी पढ़ें: गणेश चतुर्थी 2018: जानिए गणेश जी को प्रसन्न करने और मनोकामना पूरी करने के अचूक उपाय (Ganesh Chaturthi 2018: Shubh Muhurat And Pooja Vidhi) अनु ने पहले तो बड़ी तीव्र दृष्टि से उन्हें देखा, लेकिन जल्दी ही स्वर को नम्र बना कर बोली, “मांजी, क्या होगा जांच कराने से, अब तो जो होना है वही होगा. जांच से बदला तो नहीं जा सकता.” “बदला क्यों नहीं जा सकता बेटा? यदि फिर बेटी हुई तो उसे गिराया भी जा...” “बस मांजी बस, कुछ समझ भी रही हैं कि आप क्या कह रही हैं, अपने गर्भ में पल रहे जीव की हत्या करा दूं मैं?” “तुम बेटा मुझे ग़लत मत समझो, मेरा मतलब ये नहीं है.” सास कुछ मीठा बनते हुए बोली. “आपका मतलब चाहे जो हो मांजी, पर इतना तो आप जानती ही होंगी कि जांच कराना व गर्भ गिराना दोनों ही क़ानूनन अपराध है. क्या आप चाहती हैं कि मैं कोई अपराध करूं?” मांजी कुछ और बोलतीं, इससे पहले ही वह उठकर अपने कमरे में चली गयी. अनमने मन से वह चादर ओढ़ कर लेट गयी. घरवालों के मन में उपजी इस नयी बात ने उसे परेशान कर दिया था. तभी क्षितिज ने कमरे में प्रवेश किया. अनु उठकर बैठ गयी और बोली, “क्षिति, तुम मुझे एक बात साफ़-साफ़ बताओ कि तुम भी चाहते हो कि इस बार बेटा ही हो.” “तुम भी से तुम्हारा क्या मतलब है? अनु, क्या इस बार तुम्हारी यही इच्छा नहीं है?” वह मुस्कुराकर बोला. “मेरी नहीं, घर में सभी और ख़ासकर मांजी यही चाहती हैं.” “कुछ बुरा तो नहीं चाहतीं वे. एक लड़की है तो दूसरा लड़का हो जाए, ऐसा चाहने में क्या बुराई है.” “चाहने में कुछ बुराई नहीं है क्षितिज, लेकिन वे चाहती हैं कि मैं स्कैनिंग द्वारा पता लगा लूं, यदि इस बार भी लड़की हो तो उसे...” कहते-कहते अनु चुप हो गयी. क्षितिज भी कुछ गंभीर हो उठा, वह टाई की नॉट खोलते हुए बोला, “अनु शायद इसमें भी कोई बुराई नहीं है.” “ये तुम कह रहे हो क्षिति, कम से कम मुझे तुमसे ये उम्मीद न थी.” अनु आहत-सी हो उठी. “इसमें उम्मीद की क्या बात है अनु? अब जहां दो के बाद तीसरे बच्चे की गुंजाइश नहीं है, वहां तो ये क़दम उठा ही सकते हैं.” “पर ये सब क़ानून की दृष्टि में अपराध है, इतना तो आप भी जानते ही होंगे.” “हां होगा, पर ज़रूरी है कि सब कुछ ढोल बजा कर ही किया जाए, कुछ काम चोरी-छुपे भी होते हैं. हमारे इतने डॉक्टर मित्र हैं, सब कुछ आसानी से हो जाएगा.” “अच्छा, तो अपराध के ऊपर अपराध, तुमसे मुझे समझदारी की उम्मीद थी क्षितिज, पर तुम सब तो एक ही स्वर में बोल रहे हो.” “मैं समझदारी की ही बात कर रहा हूं अनु, वंश बेल को बढ़ाने के लिए बेटे की इच्छा करना क्या मूर्खता है? यदि विज्ञान की प्रगति ने हमें ये सुविधा प्रदान की है तो इसका उपयोग करने में क्या हर्ज़ है.” वह कुछ तेज़ स्वर में बोले. “ये विज्ञान का दुरुपयोग है, अगर हम इसका इसी प्रकार उपयोग करते रहे तो ये अभिशाप बन कर कहर बन सकता है.” अनु उत्तेजित हो उठी. क्षितिज बिना कुछ कहे कमरे से बाहर चले गए. उस दिन के बाद से अनु ने सभी के मिज़ाज में परिवर्तन देखा, ऐसी स्थिति में वह ज़्यादा तनाव में नहीं रहना चाहती थी. अत: उसने कुछ दिनों के लिए मां के यहां जाने का फैसला कर लिया. मां-पिताजी उसे देख कर बेहद ख़ुश हुए, परन्तु ज्यों-ज्यों उन्हें भी वास्तविकता का पता चला, उन्हें भी ससुराल पक्ष की बात अधिक सही लगी, क्योंकि वे स्वयं भी पुत्र रत्न से वंचित थे और यही मानते थे कि लड़की अपनी योग्यता से चाहे आकाश छू ले, पर होती तो पराया धन ही है, बुढ़ापे की लाठी तो बेटा ही होता है. अनु ने तर्क देते हुए कहा, “मां, बेटा हो तो मुझे भी अपार ख़ुशी होगी, पर बेटी को मार कर पुत्र प्राप्ति का ग़लत तरी़के से यत्न करना कतई ठीक नहीं है.” मां ने कहा, “अच्छा अनु, तुम्हारी सभी बातें सही हैं, पर पता करने में क्या हर्ज़ है, यदि बेटा हुआ तो कम से कम तुम्हारे ससुराल वाले अभी से ख़ुश हो जायेंगे.” “मुझे इस विषय में किसी की ख़ुशी या नाराज़गी की परवाह नहीं है मां. इसे तो ईश्‍वर का उपहार समझ स्वीकार करना चाहिए.” अनुभा ने देखा मां भी गंभीर हो गयी है. उसे लगा जिस परिस्थिति से बच कर वह यहां तनावमुक्त होने आयी थी, उसकी छाया यहां भी विराजमान है. यह भी पढ़ें: लघु उद्योग- चॉकलेट मेकिंग- छोटा इन्वेस्टमेंट बड़ा फायदा (Small Scale Industry- Chocolate Making- Small Investment Big Returns) अनुभा ने मन ही मन सोचा क्यों न सबका दिल रखने के लिए जांच करवा ही लूं. यदि लड़का हुआ तो सब झंझट ही समाप्त हो जायेगा और यदि लड़की हुई तो कम-से-कम सब अभी से मानसिक रूप से तैयार हो जाएंगे. उस व़क़्त उन लोगों को ज़्यादा मानसिक आघात नहीं लगेगा और मैं भी बाक़ी का समय सुख-चैन से काट सकूंगी. मां के साथ वह उनकी पारिवारिक डॉक्टर सुधा सेन के पास जांच के लिए गई. जांच की रिपोर्ट जब उन्होंने फ़ोन पर मां को दी, तो वह उदास-सी हो गयी. उसके चेहरे की रंगत देख अनुभा सब समझ गयी, कुछ न पूछा. मां फ़ोन रखकर रसोई में चली गयी, वह उसके पीछे गयी और उसके गले में बांहें डाल कर बोली, “अब उदास क्यों हो रही हो मां, सरप्राइज़ में ही आनंद था न.” “डॉक्टर ने मुझे एक बात और भी बताई है, यदि तुम सहमत हो तो.” मां उसकी बातों पर ध्यान दिए बिना बोली. “अब और क्या चमत्कार करवाना चाहती हो मां?” वह हंसकर बोली. “चमत्कार ही जैसी बात है बेटी, डॉ. सुधा ने कहा है कि यदि इस मुसीबत से तुम छुटकारा पाना चाहो तो वह गुप्त रूप से तुम्हारी मदद कर सकती हैं- और इसके बाद जब तुम पुन: गर्भधारण करो तब वह तुम्हें एक ऐसी अचूक दवा देंगी, जिससे सौ फ़ीसदी लड़का ही होता है.” अनुभा ज़ोर से हंस पड़ी, “मां, यदि ऐसा संभव होता, तो ये समस्या कब की हमारे समाज से ख़त्म हो चुकी होती. मां आख़िर ये दकियानूसी बातें तुम्हें सूझ कैसे रही हैं?” “बस केवल इसलिए कि ससुराल में तुम्हें सम्मान मिले.” मां ने समझाते हुए कहा. “मां, मेरे सम्मान की फ़िक्र न करो, बेटा यदि आज सम्मान दिलायेगा तो ज़रूरी नहीं कि वह बुढ़ापे का सहारा भी बने ही. आज हमारे समाज में वृद्धों की समस्या इन चहेते पुत्रों के कारण ही जिधर देखो मुंह बाए खड़ी है. क्या निहाल कर रहे हैं- वे अपने बूढ़े मां-बाप को.” अनु के ज़िद्दी स्वभाव को मां जानती थी. अत: वह चुप हो गयी. अनु ने निश्‍चय किया कि इस बार डिलीवरी के लिए वह मां के पास ही रहेगी. समय बीता और प्रसव का समय भी आ पहुंचा. घर में किसी को कोई ज़्यादा उत्साह नहीं था. मां को केवल एक ही चिन्ता थी कि अनु की डिलीवरी का सब काम राज़ी-ख़ुशी निपट जाए और वह अपने घर जाए. समय आने पर अनुभा प्रसन्न मन से अस्पताल गई और उसने सबको एक बहुत बड़ा सरप्राइज़ दिया. जब डॉक्टर ने बाहर आकर, मुंह लटकाए बैठे परिवार जनों को बताया कि अनुभा ने एक सुन्दर व स्वस्थ बेटे को जन्म दिया है तो सभी लोग हतप्रभ हो गए. मां तो सोच रही थी कि यदि हम डॉक्टर की सलाह मान लेते तो... और वह सिहर उठी. थोड़ी देर बाद सभी अनु को देखने कमरे में पहुंचे. वह पहले की ही तरह शान्त चित्त थी. मां से नज़रें मिलीं तो वह मुस्कारा उठी. ''कुदरत के नियमों का उल्लंघन करना इंसान के लिए हितकर नहीं है मां. इंसान से ग़लतियां होती हैं, पर कुदरत सबकी ज़रूरतें पूरी करती है.” मां की आंखों में ख़ुशी के आंसू भर आए, उन्होंने अनु के सिर पर ममता का हाथ फेर कर अपनी सहमति दी. “ये तुम्हारी आस्था का ही फल है बेटा, तुमने तो भगवान की इच्छा को ही हृदय से स्वीकार कर लिया था, इसलिए शायद उसने तुम्हारी ज़रूरत को पूरा किया.” पिता ने पुत्री पर गर्व करते हुए कहा. डॉ. सुधा भी पीछे कोने में खड़ी सोच रही थी कि आख़िर उससे कहां ग़लती हो गई, पर शुक्र है भगवान का कि अनु के दृढ़ निश्‍चय के कारण वह यह पाप करने से बच गई. पूरा कमरा हंसी के ठहाकों और बधाइयों से गूंज रहा था. अनुभा की ख़ुशी में भी उदासी की झलक थी कि अब तो नारी किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं है, फिर उसके जन्म पर ऐसी ख़ुशियां क्यों नहीं मनाई जातीं. शायद जनक को ही पहल करनी होगी तभी ये भेद मिट सकेगा. उसने सबकी ओर से मुंह फेर कर आंखें बंद कर लीं.

- मधु भटनागर

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