रात को अचानक हॉट फ्लैशेज़ की वजह से मैं बहुत बेचैन हुई. शरीर पसीने से पूरी तरह भीग गया. समीर को जगाया, समीर ने तुरंत एसी ऑन किया. ठंडा पानी लाकर पिलाया, मेरे साथ जागते रहे. कुछ ठीक लगा, तो मुझे आराम से लिटाकर मेरा सिर सहलाते रहे. फिर कुछ मिनटों बाद अपनी प्यारी मुस्कुराहट के साथ बोले, “हैप्पी हार्मोंस डार्लिंग.”
एक दिन एक पत्रिका पढ़ते हुए मेरी नज़र उसमें छपे एक लेख पर गई, मेनोपॉज़ के समय एक स्त्री किन-किन शारीरिक व मानसिक परिवर्तनों से गुज़रती है और कैसे उसके परिवार के सदस्यों को उसका ध्यान रखना चाहिए. यूं तो मेरा वो समय अभी दूर है, लेकिन मैंने यूं ही अपनी सत्रह वर्षीया बेटी सिद्धि को भी वह लेख पढ़वा दिया. वह पढ़कर हंस दी, “ओह मम्मी, आप अभी से इतनी टेंशन क्यों ले रही हैं. जब समय आएगा, तब देखा जाएगा.”
बात आई-गई हो गई थी. उसके बाद भी मैं कई पत्रिकाओं में इस विषय पर लेख पढ़ती रही. पढ़-पढ़कर मैं सोचती कि जब मैं उस दौर से गुज़रूंगी, तो कैसे कटेगा वो समय? मैं तो इतनी ख़ुशमिज़ाज हूं, इतना हंसती-बोलती हूं सबसे. क्या मैं चिड़चिड़ी हो जाऊंगी? क्या मुझे भी ग़ुस्सा आने लगेगा? मैं हमेशा से फिटनेस पर ध्यान देती आई हूं. सैर पर जाती हूं, योगा करती हूं, खाने-पीने का भी ध्यान रखती हूं. क्या ये सब बातें काम नहीं आएंगी? पता नहीं क्या होगा उस समय? क्या हमारे शांत-सुखी घर में मेरे मूड स्विंग्स से कलह हुआ करेगा? ऐसी मनोदशा से गुज़रते हुए कुछ साल और बीत गए.
इस विषय पर जब भी कोई लेख आता, मैं ध्यान से पढ़ती. मैं कोशिश कर रही थी कि मेरा अपने स्वभाव व व्यवहार पर नियंत्रण रहे. मैंने अपने पति समीर से इस बात का ज़िक्र किया. वे हंस दिए, कहने लगे, “सरिता, तुम भी ख़ूब हो. इस बात का इंतज़ार कर रही हो, जैसे कोई तुम्हारा इंटरव्यू लेने आनेवाला हो कि सरिताजी, आपने मेनोपॉज़ के लिए क्या-क्या तैयारी कर ली है. इतना क्यों सोचती हो इस बारे में? जो होगा, देखा जाएगा.”
फिर धीरे-धीरे ऐसा होने लगा कि जिन बातों पर मुझे हंसी आती थी, उन्हीं पर अचानक ग़ुस्सा आ जाता. सिद्धि और उससे तीन साल छोटी समृद्धि हैरान रह जाती. अभी तो मम्मी हंस रही थीं, अभी ग़ुस्सा हो गईं. मैं चिल्ला पड़ती, फिर अकेले में ख़ुद को समझाती कि ग़ुस्सा नहीं करना है, बच्चे ही तो हैं. मुझे अपने हर ग़ुस्से, हर चिढ़ पर याद आता- क्या यही मेनोपॉज़ की शुरुआत है? क्या हार्मोंस का असंतुलन शुरू हो गया है? लेकिन क्या करती, सच में ऐसा ही होने लगा था. कभी-कभी इतना ख़ुश रहती, चहकती रहती और कभी छोटी-सी बात पर आंखों में आंसू आ जाते और बाद में मुझे ख़ुद ही हैरानी होती. हालांकि मैंने यह तय कर रखा था कि मैं इस समय हर बात को शांत मन से सोच-विचारकर करूंगी, लेकिन देखते ही देखते मेरा अपने मूड पर नियंत्रण खो जाता और मैं सिद्धि-समृद्धि और कभी-कभी समीर पर भी बुरी तरह झुंझला उठती, जिसका मुझे बाद में बहुत दुख होता.
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एक बार ऐसा ही हुआ, मुझे तीनों पर इतना ग़ुस्सा आया कि मैं बहुत देर तक ग़ुस्से में बोलती रही. ये तीनों थोड़ी देर तो मुझे समझाते रहे, फिर चुपचाप बैठ गए. मेरा ग़ुबार जब निकल गया और मन शांत हुआ, तो मुझे ख़ुद पर ही शर्म आने लगी. मैंने तीनों को ‘सॉरी’ बोला. सिद्धि मेरे पास आकर बैठी, क्योंकि उसे पता था कि मुझे आत्मग्लानि महसूस हो रही है. मैं सिसकते हुए कहने लगी, “पता नहीं, मुझे क्या हो जाता है. ग़ुस्सा आ ही जाता है और अपने आप ख़त्म भी हो जाता है.”
सिद्धि ने कहा, “मम्मी, कहीं ये मेनोपॉज़ के मूड स्विंग्स तो नहीं हैं?” मुझे उसके कहने के ढंग पर ज़ोर से हंसी आ गई. वह बोली, “हां मम्मी, उस लेख में यही तो लिखा था. हां, यही कारण होगा. नहीं तो हमें इतना प्यार करनेवाली मम्मी हम लोगों पर ऐसे तो नहीं ग़ुस्सा कर सकती. है न मम्मी.” मैं हंस पड़ी. सिद्धि भी खिलखिला पड़ी, बोली, “देखना, अब मैं क्या करती हूं.” मैंने उसकी तरफ़ प्रश्नवाचक नज़रों से देखा, तो वह बोली, “बस, आप देखती जाओ.”
सिद्धि अब मेरी बेटी कम दोस्त ज़्यादा हो गई है. वो मेरी हर समस्या चुटकियों में हल करने लगी है. अगली बार जब मैं समीर पर झुंझलाने लगी, वे कुछ बोलते, उससे पहले ही सिद्धि बोल उठी, “पापा, आप थोड़ी देर चुप रहिए, प्लीज़.” समीर कुछ समझे नहीं. सिद्धि ने कहा, “देखो पापा, मम्मी को मूड स्विंग्स हो रहे हैं. अभी ठीक हो जाएंगी.” समीर सिद्धि के बात करने के इस ढंग को देखते रह गए और चुपचाप मुस्कुराते हुए बैठ गए. मैं शांत हो गई, तो सब मुस्कुरा दिए.
इसके थोड़े दिन बाद की बात है, समृद्धि खेलकर बहुत देर से घर लौटी. मैं बहुत देर से उसका इंतज़ार कर रही थी. जब वो आई, तो मैं उस पर चढ़ बैठी. समृद्धि कहने लगी, “मम्मी, आपको बताकर तो गई थी कि आज देर हो जाएगी. बहुत बच्चे खेलने आए, बहुत मज़ा आया मम्मी.” मैंने उसकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया और गरजना शुरू कर दिया. सिद्धि समृद्धि को अंदर कमरे में ले गई. मुझे उसकी आवाज़ सुनाई दे रही थी. वह उसे कह रही थी, “समृद्धि, बिल्कुल जवाब मत देना. मम्मी के हार्मोंस उन्हें परेशान कर रहे हैं. हमें उनका ध्यान रखना है. मैंने एक मैगज़ीन में पढ़ा है.”
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समृद्धि हैरानी से बोली, “ऐसा है?”
सिद्धि दादी अम्मा की तरह उसे समझा रही थी, “हां, मम्मी अभी यंग और ओल्ड एज के बीच में हैं न. कुछ हार्मोंस उनका मूड ख़राब करनेवाले हैं, इसलिए जब भी मम्मी को ग़ुस्सा आएगा, हमें बस इतना ही कहना है- हैप्पी हार्मोंस मम्मी.”
बहुत दिनों बाद मैं खुले मन से इतनी ज़ोर से हंसी और सिद्धि के इस आइडिया को याद करके देर तक मुझे हंसी आती रही. मेरे साथ-साथ ये तीनों भी खूब हंसे. बस, उस दिन से ग़ुस्सा बढ़ने से पहले ही मुझे याद आ जाता है कि अभी क्या होगा, अभी मैं चिल्लाऊंगी, तो दोनों बोलेंगे, ‘हैप्पी हार्मोंस मम्मी’ और फिर मैं हंस पड़ूंगी और समीर मुस्कुराते रहेंगे.
फिर कुछ महीने और बीते. रात को अचानक हॉट फ्लैशेज़ की वजह से मैं बहुत बेचैन हुई. शरीर पसीने से पूरी तरह भीग गया. समीर को जगाया, समीर ने तुरंत एसी ऑन किया. ठंडा पानी लाकर पिलाया, मेरे साथ जागते रहे. कुछ ठीक लगा, तो मुझे आराम से लिटाकर मेरा सिर सहलाते रहे. फिर कुछ मिनटों बाद अपनी प्यारी मुस्कुराहट के साथ बोले, “हैप्पी हार्मोंस डार्लिंग.” सुबह के चार बज रहे थे और मैं ज़ोर से खिलखिला पड़ी. समीर थोड़ी देर हंसी-मज़ाक करते रहे. हम दोनों ने फिर फ्रेश होकर चाय पी. अब पांच बज रहे थे, हम रोज़ की तरह मॉर्निंग वॉक के लिए निकल गए. रास्ते में मैं सोच रही थी कि इतने सालों से मैं जिस मेनोपॉज़ के समय और दौर के आने की कल्पना मात्र से मन ही मन इतना घबरा रही थी, वह समय जब आया, तब यह एहसास हुआ कि जीवन का यह पड़ाव इतना प्यार करनेवाले अपने परिवार के साथ मैं आसानी से पार कर लूंगी.
पूनम अहमद
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