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कहानी- एक और एक ग्यारह 1 (Story Series- Ek Aur Ek Gyarh 1)

 

लगभग दो घंटे के पश्‍चात उन लोगों ने पूर्वा को वहीं लाकर पटक दिया. फटे कपड़े और बुरा हाल. जब वह किसी तरह घर पहुंची, तो बाहर अंधेरा हो चुका था और पूर्वा के भाग्य में भी. मां दरवाज़े पर परेशान खड़ी उसी का इंतज़ार कर रही थीं. पूर्वा उनसे लिपटकर फूट-फूट कर रो पड़ी. मां को समझते देर नहीं लगी कि क्या घटित हुआ है?

          कॉलेज में पैर रखते ही पूर्वा की दुनिया बदल गई थी. यूनिफॉर्म से छुट्टी, जो मन चाहे वो कपड़े पहनो. कैंटीन में बैठ कॉफी पियो. पढ़ाई तो होती थी, पर साथ में मस्ती भी भरपूर होती. खाली पीरियड में बैठ गप्पबाज़ी होती. बेसुरे ही सही, गाने गाए जाते. ऐसा नहीं कि बहुत छूट मिल गई थी, परन्तु उस कस्बेनुमा शहर में इतना ही बहुत था ख़ुश होने के लिए. अलिखित-सा एक एहसास करा दिया गया था कि अब हमें अपने जीवन की बागडोर स्वयं ही संभालनी है. पापा ने एक साइकिल भी ख़रीद दी थी, ताकि कॉलेज आने-जाने में सुविधा रहे. लड़कियों के लिए अलग से कॉलेज था, पर कॉलेज के गेट के बाहर तो सब क़िस्म के लोग थे. मार्च का महीना था और मौसम ख़ुशनुमा. कॉलेज की तरफ़ से हर वर्ष इन दिनों पिकनिक आयोजित की जाती थी. आसपास अनेक रमणीय स्थल थे. पांच बजे लौट आने की बात थी, परन्तु पहुंचते-पहुंचते छह बज गए. यूं तो दिन अभी शेष था, किन्तु बारिश शुरू होने से सड़कें वीरान हो गई थीं. कॉलेज तक तो बस में पहुंच गए, परन्तु वहां से अपने-अपने घर सब को स्वयं ही जाना था. बारिश कुछ धीमी पड़ी, तो लड़कियों ने घर जाने की सोची. बारिश का क्या भरोसा कब रुके? भीग ही तो जाएंगे. पूर्वा और मीरा का घर आसपास होने से आज दोनों एक ही साइकिल से आई थीं. मीरा का घर पूर्वा के घर के पहले मोड़ पर पड़ता था. उसने मीरा को मुख्य सड़क पर उतारा और आगे बढ़ गई. सड़क के उस पार लेन में घुसते ही दूसरा घर पूर्वा का था. सड़क पार करते हुए पूर्वा को एक कार धीमी गति से आती दिखी, जो यकायक तेज़ हो गई और ठीक उसके पास आकर रुक गई. उसमें से जो हट्टा-कट्टा नौजवान बाहर निकला, उसे पूर्वा पहचानती थी. कॉलेज के गेट पर अक्सर ही वह मंडराता दिखाई देता था और उसे देख फ़िकरे कसता था. उसका इरादा नेक नहीं था. वह पूर्वा को घसीट कर कार की तरफ़ ले जाने लगा. पूर्वा ने उसके हाथ पर ज़ोर से काटा भी, परन्तु वह अपने मक़सद में सफल हो ही गया और पूर्वा को कार में डाल उसी के दुपट्टे से उसका मुंह बंद कर दिया.   यह भी पढ़ें: महिलाएं डर को कहें नाः अपनाएं ये सेल्फ डिफेंस रूल्स (Women’s Self Defence Tips)   कार में दो युवक और भी थे और बहस का मुद्दा यह था कि पूर्वा के शरीर पर सबसे पहले किसका हक़ है? लगभग दो घंटे के पश्‍चात उन लोगों ने पूर्वा को वहीं लाकर पटक दिया. फटे कपड़े और बुरा हाल. जब वह किसी तरह घर पहुंची, तो बाहर अंधेरा हो चुका था और पूर्वा के भाग्य में भी. मां दरवाज़े पर परेशान खड़ी उसी का इंतज़ार कर रही थीं. पूर्वा उनसे लिपटकर फूट-फूट कर रो पड़ी. मां को समझते देर नहीं लगी कि क्या घटित हुआ है? बेटी को सीधे उसके कमरे में ले जाकर कपड़े बदलवाए और दूध में चाय पत्ती डाल लाई, ताकि उसमें बात करने तक की हिम्मत आ जाए. पूर्वा क्रोध से उबल रही थी, “मैं उन बदमाशों को पकड़वा कर रहूंगी.” उसके अंग-अंग से लावा फूट रहा था. बदले की भावना प्रबल थी. “मुझे उनकी रिपोर्ट लिखवानी है, उन्हें सज़ा दिलवानी ही है.” बार-बार यही दोहरा रही थी वह. पापा को पता चला, तो वह आगबबूला हो उठे. “कोई मुंह नहीं खोलेगा इस विषय में.” उन्होंने अपना शाही फ़रमान सुना दिया. “अपना मुंह काला कर आई, अब अपनी बहन का तो ख़्याल रखे. कौन करेगा इस घर से विवाह? खानदान की इज़्ज़त मिट्टी में मिला दी.” और उन्होंने दर्दनिवारक गोली के बहाने पूर्वा को नींद की गोली खिलाकर सुला दिया.   यह भी पढ़ें: हैप्पी रोज़ डे: गुलाब से गुलाबी होता प्यार और फिल्मी सफ़र... (Happy Rose Day- Rose Journey In Hindi Movies...)   दूसरे दिन सुबह पूर्वा ने फिर से पुलिस में जाने की रट लगाई. ‘पहचानती है वह उन लड़कों को. सीधे पकड़वाया जा सकता है...’ परन्तु उसका हौसला बढ़ाने की बजाय पिता ने उसे ही क़सूरवार ठहरा कठघरे में खड़ा कर दिया. उसका मनोबल बढ़ाने की बजाय उसे धमकी दी.

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें

Usha Wadhwa उषा वधवा       अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES

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