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कहानी- स्पर्श की भाषा… ४ (Story Series- Sparsh Ki Bhasha… 4)

 

"मां सीने से लगाकर बच्चों को पालती है. चौबीस घंटे उनमें ही रमी रहती है, लेकिन बड़े होते ही बच्चे अपनी दुनिया में व्यस्त हो जाते हैं. तुम्हारी मां की सारी ज़िम्मेदारियां भी पूरी हो चुकी हैं. नाती-पोते भी बड़े हो गए हैं. सालभर से पिताजी के ना रहने से वे कितना अकेलापन महसूस करती होंगी. भले ही घर में कितने ही लोग क्यों न हो, लेकिन पास बैठकर यदि कोई अपनेपन से कंधे पर ही हाथ रख दे, तो उतने में ही इस उम्र में अपना होना सार्थक लगने लगता है."

              ... "यह सच है रेवती कि स्पर्श में शब्दों से अधिक सशक्त भावनाएं होती हैं. आप किसी व्यक्ति की भाषा भले ही न समझ सकते हो, लेकिन उसके स्पर्श से आप उसकी भावनाएं समझ सकते हो कि उसके मन में क्या है. स्पर्श अपनी मौन भाषा में बहुत कुछ कह जाता है. अपनों का स्पर्श तो बहुत ही महत्वपूर्ण होता है. पता है जब मैं छोटा था, तो पूरे समय मां के ही आसपास रहा करता था. जब स्कूल जाने लगा, तो मुझे रोज़ दोपहर में तेज बुखार आ जाता. टीचर घबराकर मुझे घर भिजवा देती. घर आते ही मां की गोद में मेरा बुखार तुरंत उतर जाता. मैं दूसरे दिन सुबह तक बिल्कुल ठीक रहता.   यह भी पढ़ें: आलिंगन के 12 हेल्थ बेनेफिट्स (12 Amazing health benefits of hug)   लेकिन स्कूल में मुझे फिर बुखार आ जाता, क्योंकि मैं मां के प्यारभरे स्पर्श, उनकी गोद से दूर हो जाता था. तब मां मेरी जेब में रुमाल रखने लगी और कहती कि इसमें मैं मेरा प्यार रख रही हूं. मैं हमेशा तुम्हारे साथ ही हूं. उसके बाद मैं उस रुमाल में मां का स्पर्श अनुभव करता और आश्वस्त हो जाता." अंकित भी अपनी मां की याद में भावुक हो गया. "आज मुझे भी मां के स्वर कि वह आर्द्रता बार-बार याद आ रही है. कितनी एकाकी हो गई होंगी वह मन ही मन, तभी तो ज़रा से स्नेह से ही उनका मन छलक उठा. सबसे छोटी थी मैं, इसलिए मां चिपकू थी. हरदम मां से चिपकी रहती थी, लेकिन बड़ी उम्र में सहेलियों में रम गई. बाहरी दुनिया में खो गई, तो मां के इस रूप को ही भुला बैठी." रेवती का गला भर आया. "मां सीने से लगाकर बच्चों को पालती है. चौबीस घंटे उनमें ही रमी रहती है, लेकिन बड़े होते ही बच्चे अपनी दुनिया में व्यस्त हो जाते हैं. तुम्हारी मां की सारी ज़िम्मेदारियां भी पूरी हो चुकी हैं. नाती-पोते भी बड़े हो गए हैं. सालभर से पिताजी के ना रहने से वे कितना अकेलापन महसूस करती होंगी. भले ही घर में कितने ही लोग क्यों न हो, लेकिन पास बैठकर यदि कोई अपनेपन से कंधे पर ही हाथ रख दे, तो उतने में ही इस उम्र में अपना होना सार्थक लगने लगता है." अंकित ने कहा.   यह भी पढ़ें: स्त्रियों की 10 बातें, जिन्हें पुरुष कभी समझ नहीं पाते (10 Things Men Don’t Understand About Women)   "मां के मन में तो स्नेह का अथाह सागर है. अपने बच्चों को ही नहीं, वे तो घरभर के बच्चों, पड़ोस के बच्चों, मेरी सहेलियों के सिर पर भी हमेशा ममता भरा हाथ फेरती थीं." रेवती ने बताया.

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Dr. Vinita Rahurikar डॉ. विनीता राहुरीकर             अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES           डाउनलोड करें हमारा मोबाइल एप्लीकेशन https://merisaheli1.page.link/pb5Z और रु. 999 में हमारे सब्सक्रिप्शन प्लान का लाभ उठाएं व पाएं रु. 2600 का फ्री गिफ्ट.

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