दरवाज़ा खुल चुका था. सुमित्रा अपराधिनी की भांति सिर झुकाए खड़ी थी, लेकिन मेरी नज़रें तो उसके पीछे छुपने का प्रयास करती युवती पर जमकर रह गई थीं, जो डर के मारे थर-थर कांप रही थी.
"कौन है यह? यहां क्या कर रही है?.. रोज़ आती हो तुम यहां?" राजन बहुत क्रोध में आ गए थे.
... "सुमित्रा रात में भगोनी लेकर जाती है. तड़के दूध लेकर रख लेती है. फिर नहा-धोकर अंदर आती है, तब दूध ले आती है. बड़ी भगोनी भी पकड़ानी होगी. मैं ही जाती हूं." भगोनी लेकर मैं सर्वेंट क्वार्टर गई, तो दरवाज़ा अंदर से बंद था और सुमित्रा के बोलने की आवाज़ आ रही थी. 'चलो, सोई तो नहीं. घरवालों से बात कर रही है.’ मैं दरवाज़ा खटखटाने ही वाली थी कि अंदर से आते एक अपरिचित स्वर ने मुझे चौंका दिया. शायद फोन के दूसरी ओर की आवाज़ होगी, जो रात्रि की निस्तब्धता में साफ़ सुनाई दे रही है. मैंने ख़ुद को भरमाना चाहा, लेकिन निरंतर उभरते स्वर स्पष्ट इंगित कर रहे थे कि अंदर सुमित्रा के अतिरिक्त भी कोई है. मेरा सिर चकराने लगा. दो मज़बूत हाथों ने थाम न लिया होता, तो मैं गिर ही पड़ती, पर फिर भी भगोनी मेरे हाथ से छूटकर लुढ़कती चली गई थी. "अ... आप?" "काफ़ी देर हो गई. तुम लौटी नहीं, तो मैं देखने चला आया." राजन को पास पाकर मेरी हिम्मत बंधी. दरवाज़ा खुल चुका था. सुमित्रा अपराधिनी की भांति सिर झुकाए खड़ी थी, लेकिन मेरी नज़रें तो उसके पीछे छुपने का प्रयास करती युवती पर जमकर रह गई थीं, जो डर के मारे थर-थर कांप रही थी. यह भी पढ़ें: 20 यूज़फुल टिप्सः पति को कैसे सिखाएं सहयोग?(20 useful tips: How to Get Your Husband to Help More) "कौन है यह? यहां क्या कर रही है?.. रोज़ आती हो तुम यहां?" राजन बहुत क्रोध में आ गए थे. "न... नहीं साहब! आज ही आई है मेरे बुलाने पर... म.. मेरी बहू है." मुझे याद आया. गत वर्ष ही तो इसके बेटे की शादी हुई है. मैंने नवयुगल के लिए नए कपड़े और नेग भी दिया था. 'पर सुमित्रा ने इसे यहां क्यों बुलाया?’ अब वह पूरी नज़र आने लगी थी. उसके चेहरे से फिसलती मेरी नज़रें अब उसके पेट के उभार पर आकर टिक गई थीं. कम से कम 5 माह का गर्भ तो होगा ही. मैंने अनुमान लगाया. "मैंने बताया था न मेरा पति और बेटा तो कारखाने में लग गए हैं. इस बेचारी को कोई काम नहीं मिला. यहां आसपास कोई इसे जानता भी नहीं, फिर इसकी यह अवस्था! मजबूरन घर पर अकेले रहना पड़ा. कारखाने में तो लैंडलाइन फोन है, इसलिए बेटे ने अपना मोबाइल इसे दे दिया था. बेचारी रोज़ रात को हम सबसे बात करके अपना मन बहला लेती है. जानती हूं इसकी इस अवस्था में हम घरवालों को इसके पास होना चाहिए, इसका ख़्याल रखना चाहिए पर..." सुमित्रा की बेबसी और मजबूरी ने न केवल उसे वरन हम दोनों को भी द्रवित कर दिया.अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें...
अनिल माथुर यह भी पढ़ें: वर्किंग वाइफ, तो हाउस हसबैंड क्यों नहीं? (Rising Trend Of House Husbands And Their Working Wives) अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES
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