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कहानी- अब लंदन दूर कहां 2 (Story Series- Ab London Dur Kahan 2)

हिंदी भाषी लोग भी हर स्थान पर बहुतायत में दिख जाने के कारण कभी-कभी तो लगता ही नहीं था कि हम विदेश में हैं. वहां के भारतीय निवासी किसी भी भारतीय को देखकर थोड़ी देर में ही उनसे ऐसे घुल-मिल जाते, जैसे बहुत पुरानी जान-पहचान है. मुझे भी वहां किसी अनजान भारतीय निवासी से बात करके लंदन की जीवनशैली के बारे में अधिक से अधिक जानना बहुत अच्छा लगता था. सड़क पर भारी संख्या में लोग पैदल चल रहे थे, ऐसा लग रहा था जैसे किसी मेले में आ गई थी. यह दृश्य अधिकतर छुट्टीवाले दिन सुबह से शाम के सात बजे तक दिखाई पड़ता था, बाकी के दिन घर में रहनेवाले लोग ही अपने बच्चों के साथ दिखाई पड़ते थे. भारत में तो लोगों का पूरा जीवन ट्रैफिक जाम में फंसे रहने के कारण, सामाजिक गतिविधियों  और बेकार की गॉसिप तथा लोग क्या कहेंगे की सोच में ही बीत जाता है. उनके  जीवन की गतिविधियों की डोर दूसरों के हाथों में होती है. वे जीवन जीते नहीं, काटते हैं. इसके विपरीत लंदन में मुझे एहसास हुआ कि यहां के लोग जीवन अपने लिए जीते हैं. वे किसी को अपने जीवन में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं देते. ना लोगों की प्रतिक्रिया की परवाह करते हैं, इसीलिए सभी काम अपने हाथों से करके भी इनके पास अपने तथा परिवार के साथ बिताने के लिए भरपूर समय होता है. मुझे आरंभ से ही सब्ज़ी और अनाज की ख़रीदारी करना नहीं भाता, इसलिए मेरे पति और बच्चे जब भी इन सब चीज़ों की ख़रीदारी करने जाते, तो मुझे घर में बैठने से अधिक इन सब वस्तुओं को बेचने के लिए बने स्टोर्स के बाहर सड़क पर बनी बेंच पर बैठकर लोगों की गतिविधियों को देखना भाता था. मैंने पाया कि वहां पर भारत के अतिरिक्त अन्य देशों के लोग बहुतायत में रहते हैं. महिलाएं रंग-बिरंगी तथा विभिन्न डिज़ाइन की बनी पोशाकों में मुझे बहुत आकर्षित करती थीं. वे नवजात शिशु को भी प्रैम में बैठाकर ख़रीदारी करने या घूमने निकली हुई दिखाई पड़ती थीं. स्टोर्स में भी हर प्रकार के कपड़े बिकते थे. वहां ख़रीदारी करना भी घूमने जाने जैसा सुखद एहसास देता था. यह सब मुझे स्वप्नलोक में विचरण करने जैसा लगता था. यह भी पढ़ेदूर होते रिश्ते, क़रीब आती टेक्नोलॉजी (Technology Effecting Negatively On Relationships) हिंदी भाषी लोग भी हर स्थान पर बहुतायत में दिख जाने के कारण कभी-कभी तो लगता ही नहीं था कि हम विदेश में हैं. वहां के भारतीय निवासी किसी भी भारतीय को देखकर थोड़ी देर में ही उनसे ऐसे घुल-मिल जाते, जैसे बहुत पुरानी जान-पहचान है. मुझे भी वहां किसी अनजान भारतीय निवासी से बात करके लंदन की जीवनशैली के बारे में अधिक से अधिक जानना बहुत अच्छा लगता था. एक दिन मैं ऐसे ही किसी स्टोर के बाहर बैठने लगी, तो मैंने देखा कि मेरे बगल में भारतीय वरिष्ठ दंपत्ति बैठे थे. मुझे देखकर वरिष्ठ महिला चिहुंककर बोली, “आप क्या यहीं रहती हैं?” “नहीं, मैं तो अपने बेटे-बहू के पास तीन महीनों के लिए आई हूं. आप?” मैंने भी प्रत्युत्तर में मुस्कुराते हुए पूछा. “हम तो यहां के स्थाई निवासी हैं.” उन्होंने सपाट आवाज़ में उत्तर दिया. “आपके बच्चे?” मैंने उत्सुकता से पूछा. “मेरे बच्चे इंडिया में रहते हैं.” उन्होंने मेरा वाक्य पूरा होने से पहले ही उत्तर दिया. “ऐसा कैसे?” यह तो बड़ी अजीब बात है. यह तो सुना था, बच्चे यहां और माता-पिता भारत में, लेकिन...” “हुआ ऐसा कि मेरे पति को लंदन में नौकरी का प्रस्ताव मिला, तो ये यहां आकर नौकरी करने लगे. तब तक मेरे दो बच्चे हो गए थे. वे यहां से वापिस भारत नहीं जाना चाहते थे. मैं यह सोचकर अपने बच्चों के साथ भारत में ही रही कि हमारे बिना ये अधिक दिन यहां नहीं रहेंगे और जल्दी ही भारत लौट आएंगे, लेकिन मेरा सोचना ग़लत निकला. इनको लंदन इतना भाया कि ये यहीं रहना चाहते थे. बेटा बड़ा हो गया और उसका विवाह भी हो गया. ये भारत आते रहे, लेकिन नौकरी लंदन में ही करने की ज़िद रही. मेरी बेटी भी कॉलेज में पढ़ने लगी, तो बच्चों ने मुझे यहां आने के लिए बाध्य किया, जिससे कि इनको प्रौढ़ावस्था में घर का सुख मिले. पहले तो मैंने बहुत मना किया, लेकिन बच्चे परिपक्व और ज़िम्मेदार हो गए हैं, यह सोचकर मैं यहां आ गई.” अपनी बात समाप्त करके उनके चेहरे के भाव ऐसे थे, जैसे अपने निर्णय के प्रति उनके मन में किसी प्रकार की दुविधा नहीं थी. वे बहुत संतुष्ट दिखाई दीं. “लेकिन अब रिटायरमेंट के बाद तो आप दोनों अपने बच्चों के पास जा सकते थे?” “यहां पर वरिष्ठ नागरिकों को सरकार की ओर से निशुल्क इलाज के अतिरिक्त लंदन में कहीं से भी कहीं जाने के लिए बस और ट्रेन के निशुल्क पास की सुविधा मिलती है. और भी कई तरह की सुविधाएं मिलती हैं, इसलिए स़िर्फ बच्चों के साथ रहने के मोह के कारण भारत में रहना कोई समझदारी का काम नहीं है. वहां पर बच्चे साथ ज़रूर रहेंगे, लेकिन अपनी व्यस्त जीवनशैली के कारण हमारे लिए उनके पास समय ही कहां है…”       सुधा कसेरा

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