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कहानी- अपनी इमेज का क़ैदी 2 (Story Series- Apni Image Ka Qaidi 2)

 

“दूसरों का भला करके भूल जाना, यही तो सर की ख़ासियत है... यू नो दी, सर को ऑफिस में सब मानते हैं. इनके जैसा प्यारा और केयरिंग, सेल्फलेस इंसान आज की दुनिया में मिलना मुश्किल है... ही इज ट्रूली इंस्परेशन.” दीया ने मेरी तारीफ़ों के पुल बांध दिए और मेरी भोली पत्नी मुझ पर निहाल होती रही. सच कहूं, तो उस वक़्त भीतर से बहुत छोटा महसूस कर रहा था...

      भीतर से कोई रोकने लगा, मत बता, इश्क़ के इस अंधे कुएं में मत कूद, मगर ज़ुबान, दिल के साथ मिलीभगत कर चुकी थी, दोनों एक साथ फिसल गए... परिणाम ये हुआ कि दो दिनों बाद दीया मेरी पड़ोसन बन सामने रहने आ गई. कैसा लगता है ना, जब ख़्याल और हक़ीक़त एक-दूसरे के आमने-सामने खड़े हों और आप उनमें से किसी को भी खोने से डरते हो... उस वक़्त मुझे ठीक वैसा ही लग रहा था, जब वो शाम को अचानक मेरे घर आ धमकी, मिठाई के डब्बे के साथ. दरवाज़ा सुगंधा ने खोला था. “नमस्ते मैम, मैं दीया, सर के ऑफिस में उनकी जूनियर... उन्हीं के रेफरेंस से ये सामनेवाले फ्लैट में एज ए पेइंग गेस्ट शिफ्ट हुई हूं. उन्हें थैक्स बोलने आई हूं.” वो एक सांस में बोल गई.     यह भी पढ़ें: The Psychology Of Relationships: मुझे दोस्त बनाने में संकोच होता है (I Hesitate To Make Friends)   मेरी मेहमांनवाज़ पत्नी ने उसका खुले दिल से स्वागत किया. पिछले महीने बेटी के हॉस्टल जाने पर बुझा चेहरा यकायक खिल गया. “अरे आओ ना और ये मैम-वैम मुझे मत कहना... दीदी कह सकती हो, भाभी कह सकती हो.” मैं बौखला गया.. भाभी, यानी मैं इनडाइरेक्टली भईया! “ठीक है, तो मैं आपको दी ही कहूंगी. वैसे भी आप देखने में मेरी बड़ी दीदी जैसी ही लग रही हैं.” दीया ने चहकते हुए कहा, तो मुझे भी कुछ राहत मिली. “वैसे इन्होंने बताया नहीं कभी...” सुगंधा ने कहा तो मेरा गला सूखने लगा. “दूसरों का भला करके भूल जाना, यही तो सर की ख़ासियत है... यू नो दी, सर को ऑफिस में सब मानते हैं. इनके जैसा प्यारा और केयरिंग, सेल्फलेस इंसान आज की दुनिया में मिलना मुश्किल है... ही इज ट्रूली इंस्परेशन.” दीया ने मेरी तारीफ़ों के पुल बांध दिए और मेरी भोली पत्नी मुझ पर निहाल होती रही. सच कहूं, तो उस वक़्त भीतर से बहुत छोटा महसूस कर रहा था... कुछ देर के लिए आई दीया रात को डिनर करके ही वापस गई और सुंगधा के चेहरे पर मुस्कुराहट छोड़ गई. “कितना अच्छा लगा ना आज, बड़े दिनों बाद किसी से इतनी खुल कर बातें कीं.” वो टेबल समेटते बोली, तो मैंने बड़ी शालीनता से “हूं” कहा. कैसे कहता तुम्हें भले अच्छा लगा हो, मगर मेरी तो जान पर बन आई थी… पूरा वक़्त अलर्ट पर रहा कि कहीं मेरी दिली हालत आंखों या ज़ुबान के रास्ते बाहर ना निकल पड़े. कितनी मुश्किल से उससे दो-चार बातें कर पाया, घर पर सब कैसा है, कौन-कौन हैं.. वगैरह वगैरह... कितना प्रयास करना पड़ रहा था वो सब बोलने में... और इस तरह की कोशिशें इंसान को थका देती हैं... मुझे भी थका रहा है...   यह भी पढ़ें: कैसे निपटें इन 5 मॉडर्न रिलेशनशिप चैलेंजेस से? (How To Manage These 5 Modern Relationship Challenges?)     अब मेरी चिंता यह थी कि सुगंधा दीया से ज़्यादा मेलजोल न गांठ ले, वरना मेरे लिए विकट समस्या खड़ी हो जाएगी, “सुनो, वो मेरी जूनियर है, मैं नहीं चाहता पर्सनल रिलेशन बनाकर वो ऑफिस में कुछ ऐडवांटेज ले, इसलिए उससे थोड़ा दूर ही रहना… वैसे भी तुम्हारी आदत है, बेटी की हमउम्र लड़की देखी नहीं कि उसे बेटी बनाकर गले लगा लेती हो...”

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें

Deepti Mittal दीप्ति मित्तल         अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES

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