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कहानी- बदली बदली सी बयार 4 (Story Series- Badli Badli Si Bayar 4)

 

‘व्यर्थ ही छकाया मुझे. पहले ही बोल देती कि लौटकर उसी खूंटे में बंधना है... एक मिनट, कहीं क्षितिज उसे मनाने पीछे-पीछे यूरोप तो नहीं पहुंच गया? अवश्य ऐसा ही हुआ है. तभी वह हम ख़ूब घूमे, वहां गए... आदि बोलती रहती है. और मुझ औघड़ ने कभी पूछा भी नहीं कि यह हम कौन? इसे उसका यूपी एक्सेंट ही समझती रही.' नीति को लेकर मेरे मन में फिर से आशंका के बादल घुमड़ने लगे थे. यह भावुक लड़की फिर से उसके झांसे में न आ जाए? यदि इस बार टूटी, तो फिर कभी नहीं जुड़ पाएगी.

        ... "इतने से दिनों में ही पचास हज़ार ख़र्च हो गए थे. मुझे लगा जब मेरी कोई ग़लती ही नहीं है, तो क्यों मैं बेघर होकर घूम रही हूं? उस घर के ख़र्चे तो मैं भी बराबर शेयर करती आ रही हूं. मैं दूसरे कमरे में शिफ्ट हो गई हूं. मेरी दबंगई के सम्मुख क्षितिज भीगी बिल्ली बन गया है. वह मेरे सामने आने से भी कतराता है. घड़ियाली आंसू बहाकर माफ़ी मांगता है. मैं न कुछ समझ पा रही हूं, न कोई निर्णय ले पा रही हूं. बस, कुछ वक़्त अकेले बिताना चाह रही हूं. मेरा वीज़ा आ गया है. दो दिन बाद मेरी फ्लाइट है. तुझसे मदद चाहती हूं. मैं इस सबसे बहुत दूर जाना चाहती थी, पर दो महीने कम हैं. प्रोजेक्ट समाप्त कर डेढ़ महीने मैं और यूरोप एक्सप्लोर करना चाहती हूं. इसके लिए मेरा शेनेगन वीज़ा आते ही मुझे बताना और हां मेरे लौटने तक यहीं आसपास मेरे लिए कमरा देखकर रखना." बाहर कुछ खटपट हुई, तो मेरी चेतना लौटी. मेरी हाउसमेट आई थी. नीति की ज़िंदगी के उतार-चढ़ाव इतने क़रीब से देखते-सुनते मैं नीति की ही ज़िंदगी जीने लगी थी. उसे अब नए परिवेश में रमते देख मैं राहत महसूस कर रही थी. प्रोजेक्ट ख़त्म कर यूरोप भ्रमण पर निकलते ही नीति के फोन कॉल्स और तस्वीरें भेजने का सिलसिला आश्चर्यजनक रूप से बढ़ गया. उसकी जीवंत तस्वीरें और उत्साहित बातें मुझमें नई ऊर्जा का संचार कर देतीं. मैं अनायास ही उसकी तुलना क्वीन फिल्म की बिंदास नायिका से करने लगती.   यह भी पढ़ें: कैसे निपटें इन 5 मॉडर्न रिलेशनशिप चैलेंजेस से? (How To Manage These 5 Modern Relationship Challenges?)     जैसे-जैसे उसके भारत लौटने का समय समीप आ रहा था, उसके लिए कमरे की मेरी तलाश भी बढ़ती जा रही थी. एक-दो कमरे मेरी नज़र में थे, जिन्हें मैं अगली बार फोन आने पर उससे डिस्कस करनेवाली थी. पर नीति तो आजकल फोन पर हम यहां घूमे, वहां गए, ये ख़रीदा, वो खाया के अलावा कोई बात ही नहीं करती थी. मैं उसकी ख़ुशी में ख़ुश थी. पर कभी-कभी मन ही मन झुंझला उठती थी. मैं यहां उसके लिए अच्छी लोकेशन, अच्छी हाउसमेट, अच्छा कमरा ढूंढ़ते खप रही हूं और उसे कोई परवाह ही नहीं है. उसी रात उसका फोन आ गया था और मैं उठाते ही शुरू हो गई थी. "तुझे इंडिया वापस आना भी है या वहीं बसने का इरादा कर लिया है? कितने कमरे छान मारे हैं मैंने तेरे लिए? एक यह, एक वो..." मैं उसे गिनाने लग गई थी. "सॉरी यार, पर अब इसकी ज़रूरत नहीं है." "क्या मतलब?" मैं चौंकी थी. "कमरा नहीं लेगी? तो क्या फिर से क्षितिज के साथ रहने जा रही हैं?" "मैं बाद में बात करती हूं." उसने फोन काट दिया था. मेरा आक्रोश फूट पड़ा था. ‘व्यर्थ ही छकाया मुझे. पहले ही बोल देती कि लौटकर उसी खूंटे में बंधना है... एक मिनट, कहीं क्षितिज उसे मनाने पीछे-पीछे यूरोप तो नहीं पहुंच गया? अवश्य ऐसा ही हुआ है. तभी वह हम ख़ूब घूमे, वहां गए... आदि बोलती रहती है. और मुझ औघड़ ने कभी पूछा भी नहीं कि यह हम कौन? इसे उसका यूपी एक्सेंट ही समझती रही.' नीति को लेकर मेरे मन में फिर से आशंका के बादल घुमड़ने लगे थे. यह भावुक लड़की फिर से उसके झांसे में न आ जाए? यदि इस बार टूटी, तो फिर कभी नहीं जुड़ पाएगी. बहुत सवेरे नीति का फोन आया देख मैं हड़बड़ाकर उठी. "ओह सॉरी! मैं तो भूल ही गई थी कि वहां अभी पूरी सुबह नहीं हुई है. तुझे बताने को इतनी उतावली हो रही थी. कल जॉन साथ था. वैसे तो उसे सब पता है, पर फिर भी उसके सामने इतना खुलकर बात नहीं हो पाती..." मैंने बीच में ही टोक दिया था, "यह जॉन कौन है?" "मेरा सोलमेट! लंदन ऑफिस में हमारी मुलाक़ात हुई थी. अब वही मुझे पूरा यूरोप घुमा रहा है. साथ काम करते, घूमते हम एक-दूसरे के इतना समीप आ गए हैं कि अब सपने में भी दूर होने की नहीं सोच सकते. समझ लो जॉन मेरे उतना ही क़रीब है, जितना मेरा फेवरेट तकिया. जब मैं थक जाती हूं, तो उस पर आराम कर लेती हूं. उदास होती हूं, तो उस पर आंसू बहा लेती हूं. ग़ुस्सा होती हूं, तो उस पर एक-दो पंच जमा देती हूं और जब ख़ुश होती हूं, तो अपने से लिपटा लेती हूं. परिवार के नाम पर उसकी मां है. मेरी ख़ुशी के लिए वे इंडिया आकर बसने को तैयार हैं. जल्द ही हम अपने भविष्य को लेकर कोई ठोस निर्णय ले लेंगे. तुम्हारे अब तक के साथ के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया. इंडिया लौटने पर ज़रूर मिलेंगे."   यह भी पढ़ें: क्या आपका बॉयफ्रेंड मैरिज मटेरियल है? (Is Your Boyfriend Marriage Material?)     उधर से फोन कट चुका था, पर मैं अब भी हतप्रभ-सी फोन थामे बैठी थी. ‘धड़ाक’ की आवाज़ हुई, तो मैं चौंककर पीछे मुड़ी. तेज हवा से खिड़की का पलड़ा खुल गया था. ठंडी हवा के झोंके से मुझे एहसास हुआ कि बाहर मौसम बदल रहा है. [caption id="attachment_182852" align="alignnone" width="246"] संगीता माथुर[/caption]         अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES

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