Close

कहानी- बंधन और मुक्ति 1 (Story Series- Bandhan Aur Mukti 1)

  शाश्वत की फोटो पेट पर रखकर बच्चे की धड़कन सुना रही थी कि रुलाई हिचकियों में बदल गई. तभी अस्थमा के अटैक के साथ दर्द उठ गया. मां की पुकार पर सुकेश दौड़े. उसकी जीने की इच्छा मर चुकी थी. फिर भी मौत से संघर्ष कर रही थी. शाश्वत की आख़िरी निशानी को हर हाल में बचाने, उसके नाम को ज़िंदा रखने के लिए. शाश्वत उसके पति ही नहीं, उसका पहला प्यार भी थे. बचपन का प्यार, रूह की गहराइयों में बसा तृप्त प्यार. सुहासिनी ने सासू मां का हाथ अपने पेट पर रखा, “इसे ही धड़कन कहते हैं? ये मेरे बच्चे की धड़कन है न?” सासू मां की आंखों में ख़ुशी के आंसू छलछला आए और होंठ लंबी मुस्कान की शक्ल में आधे गोल हो गए. “फिर आज तो तुम लोग खाना बाहर खाओगे. मैं सिर्फ अपना ही बनवा लेती हूं." “आपकी ये बात मुझे बिल्कुल अच्छी नहीं लगती. आप स्पेशल ओकेज़न पर भी बाहर साथ नहीं चलतीं. आज मैं आपकी एक न सुनूंगी." सुहासिनी रूठकर लाड़ लड़ाते हुए उनकी गोद में सिर रखकर लेट गई “पता है, मम्मीजी, शाश्वत कब से इस दिन का इंतज़ार कर रहे हैं, पर अभी उन्हें शाम तक और इंतज़ार करना पड़ेगा. फोन जो नहीं ले गए हैं.” “क्यों?” मां के चेहरे पर चिंता उभर आई. “अरे वो कोई सीक्रेट मिशन है आज. कह रहे थे मोबाइल से लोकेशन का पता..." सीक्रेट मिशन सफल हो गया, पर बच्चे की धड़कन सुनने से पहले ही शाश्वत की धड़कन देश पर निछावर हो गई. कॉलोनी का घर खाली करना पड़ा, तो सासू मां के साथ शाश्वत की यादें समेटकर ससुराल आ गई. शाश्वत के एक दूर के रिश्ते के भाई सुकेश हर कदम पर साथ निभा रहे थे. उसे अस्थमा था, जिसमें भावुक या उत्तेजित होने पर अटैक आने की संभावना हमेशा बनी रहती थी. गर्भावस्था में ये अटैक बहुत ख़तरनाक थे. फिर भी इन्हें न आने देना उसके बस में न था. सासू मां के कहने पर सुकेश उनके साथ ही रहने लगे. वो हर तरह से उनकी देखरेख करते. सातवां महीना, रात के तीन बजे थे. शाश्वत की फोटो पेट पर रखकर बच्चे की धड़कन सुना रही थी कि रुलाई हिचकियों में बदल गई. तभी अस्थमा के अटैक के साथ दर्द उठ गया. मां की पुकार पर सुकेश दौड़े. उसकी जीने की इच्छा मर चुकी थी. फिर भी मौत से संघर्ष कर रही थी. शाश्वत की आख़िरी निशानी को हर हाल में बचाने, उसके नाम को ज़िंदा रखने के लिए. शाश्वत उसके पति ही नहीं, उसका पहला प्यार भी थे. बचपन का प्यार, रूह की गहराइयों में बसा तृप्त प्यार. बच्चे को फौजी बनाने का उनका सपना पूरा करने की प्रबल इच्छाशक्ति ही वो तिनका था, जिसे पकड़कर वो ज़िंदगी की नाव डूबने से बचा रही थी. यह भी पढ़ें: कोरोना योद्धा: परिवार से दूर परिवारों के लिए… (Corona Warriors: The Poignant Story Of Courage, Sacrifice And Compassion) कमज़ोर बंटी को गहन चिकित्सा में रखा जाना था और उसे दूध के लिए अस्पताल में ही रहना था. सासू मां अटेंडेंट के बिस्तर पर सोतीं और सुकेश बाहर कॉरीडोर में ज़मीन पर. एक महीने बाद घर आते ही वो बच्चे का चेहरा उनकी तस्वीर को दिखाने गई. विह्वल सी उसे फौजी बनाने का अपना संकल्प दोहरा रही थी और सासू मां कृतज्ञ, अभिभूत सी सुकेश के सिर पर हाथ रख आशीर्वादों की वर्षा कर रही थीं. बंटी दस महीने का था जब सुकेश ने चिंतित स्वर में अपने तबादले की बात बताई. सुनकर मां कुछ देर गुमसुम-सी बैठी रहीं, फिर उनका हाथ अपने हाथ में लेकर वो कह दिया जिस पर अमल करना तो दूर वो सुनने तक को तैयार नहीं थी. सुकेश भी अचकचा गए. bhavana prakash भावना प्रकाश अधिक कहानी/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां पर क्लिक करें – SHORT STORIES Kahani

Share this article