“मैं उन्हें समझाने की कोशिश कर अब हार चुकी हूं.”“आप हार जायेंगी तो कैसे सब ठीक होगा? आदत धीरे-धीरे ही जाती है.”“तो पुरुष ऐसी आदत डालते ही क्यों हैं जो जाती नहीं? क्या सुलेख को तम्बाकू के ख़तरे मालूम नहीं थे? मेरी समझ में नहीं आता, जब सिगरेट के पैक पर लिखा होता है- ‘स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है’, तब सरकार इसे प्रतिबंधित क्यों नहीं करती? ‘तम्बाकू निषेध दिवस’ भी मनाना है और तम्बाकू खुलेआम उपलब्ध भी रहे.”“आपका ग़ुस्सा ठीक है, पर पुरुषों को फील्ड में काम करना होता है, बड़े तनाव रहते हैं. एकाग्रता बनाये रखने के लिये लोग ऐसी आदतें पाल लेते हैं.”“आप भी दिनभर व्यस्त रहते हैं, तरह-तरह के रोगियों से जूझना होता है तो क्या एकाग्रता बनाये रखने के लिये आपको भी व्यसन की ज़रूरत होती है?”चिकित्सक मुस्कुराने लगे. कामाक्षी ने अबूझ भाव से उन्हें निहारा.
“पढ़ी-लिखी पत्नी ख़तरनाक होती है. पति को स्वतंत्र नहीं रहने देती. जान लो हम ठाकुर औरत की मुट्ठी में नहीं रहेंगे.”
“हां राज-पाट तो ख़त्म हो गया, ठकुराइस के नाम पर व्यसन बचे रह गये. तुम लोग व्यसन को पुरुषार्थ मानते आये हो. कैसा है यह पुरुषार्थ, जिसे शराब या तम्बाकू का सहारा चाहिये और कैसा है यह समाजशास्त्र कि जितना ऊंचा आदमी, उतनी ऊंची शराब. तब तो हम स्त्रियां भली कि उनमें जो भी ताक़त और साहस है, उसका केंद्र उनके भीतर है. उन्हें किसी व्यसन की ज़रूरत नहीं.”
“डायलॉगबाजी बंद करोगी?”
“सही सलाह देना गुनाह है तो लो, आज से चुप हूं. दुख की बात यह है कि पुरुष के दुष्कर्म स्त्री की नियति बन जाते हैं. मुझे डर है घर में जहां-तहां पड़ी तम्बाकू की पुड़िया देख, मेरे दोनों बेटे यह व्यसन न करने लगें.”
“तुम्हारा रोज़-रोज़ का भाषण सुन कर करेंगे ही. इसीलिये कहता हूं बात को इतना न बढ़ा दो कि लड़के प्रभावित हों.”
घबरा जाती थी तानिया. बेटों को बार-बार सचेत करती- “तुम दोनों तम्बाकू-सिगरेट को छुओगे भी नहीं.”
वह दोपहर बाद चिकित्सक के घर पहुंची. वह चिकित्सक व उनकी पत्नी कामाक्षी से कुछ आयोजनों में मिल चुकी थी, अत: चिकित्सक ने उसे बरामदे में बने क्लीनिक में न बैठाकर भीतर कलाकक्ष में बैठाया. कामाक्षी को भी वहीं बुला लिया. चिकित्सक विषय पर आये-
“...सूर्यवंशीजी की स्थिति आप जान ही चुकी हैं. आपको उनका मनोबल बनाये रखना होगा. मुझे आशा है, आप स्थिति को भली प्रकार सम्भालेंगी. उन्हें तम्बाकू छोड़ना ही होगा. यह कठिन ज़रूर है, पर असम्भव नहीं. आप उन्हें अच्छी तरह समझती हैं, इसलिये सौहार्द्र बनाये रख कर उन्हें भरोसा दें.”
तानिया नहीं कह सकी सुलेख को अच्छी तरह समझने का उसका दावा ग़लत साबित हुआ.
“मैं उन्हें समझाने की कोशिश कर अब हार चुकी हूं.”
“आप हार जायेंगी तो कैसे सब ठीक होगा? आदत धीरे-धीरे ही जाती है.”
“तो पुरुष ऐसी आदत डालते ही क्यों हैं जो जाती नहीं? क्या सुलेख को तम्बाकू के ख़तरे मालूम नहीं थे? मेरी समझ में नहीं आता, जब सिगरेट के पैक पर लिखा होता है- ‘स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है’, तब सरकार इसे प्रतिबंधित क्यों नहीं करती? ‘तम्बाकू निषेध दिवस’ भी मनाना है और तम्बाकू खुलेआम उपलब्ध भी रहे.”
“आपका ग़ुस्सा ठीक है, पर पुरुषों को फील्ड में काम करना होता है, बड़े तनाव रहते हैं. एकाग्रता बनाये रखने के लिये लोग ऐसी आदतें पाल लेते हैं.”
“आप भी दिनभर व्यस्त रहते हैं, तरह-तरह के रोगियों से जूझना होता है तो क्या एकाग्रता बनाये रखने के लिये आपको भी व्यसन की ज़रूरत होती है?”
चिकित्सक मुस्कुराने लगे. कामाक्षी ने अबूझ भाव से उन्हें निहारा.
बात आगे भी जारी रहती, किंतु संबंधित नर्सिंग होम से एमरजेंसी कॉल आ गया.
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“जाना होगा. हम डॉक्टरों की ज़िंदगी यही है, दूसरों की ज़िंदगी बचाते-बचाते हमारी अपनी निजता नहीं रह जाती.”
चिकित्सक जाने को उध्दत हुये तो तानिया भी चलने लगी.
कामाक्षी ने रोका, “आप पहली बार आई हैं, चाय पीकर जायें.”
तानिया रुक गई. बात व्यसन पर ही होती रही. उसी तारतम्य में कामाक्षी कह बैठी, “आप तो अपने पति के तम्बाकू से ही परेशान हो गईं. यहां तो होटल राज़दरबार में रोज़ रात को जुये और मदिरा की महफ़िल सजती है... हां, डॉक्टर साहब की बात कर रही हूं.”
तानिया चौंक गई, “चिकित्सक को तो मदिरापान के ख़तरे मालूम होते हैं फिर भी... उनका यह आचरण आपको दुख नहीं देता? “देता है, पर अब मैं डॉ. साहब के गुण-दोषों में ही न उलझ कर उन पक्षों पर ध्यान केंद्रित करती हूं, जो मुझे सुख देते हैं. यह आसान स्थिति है.”
“पर जब तनाव, दबाव या घुटन हो तब दूसरे पक्ष पर ध्यान ही कहां जाता है? मैं तो विद्रोह कर अब चुप बैठ गई हूं और सुलेख को उनके हाल पर छोड़ दिया है.”
“हां, एक दिन हमारी सहनशक्ति जवाब दे जाती है और तब हम मौन हो जाते हैं या विद्रोही. लोग सहसा विश्वास नहीं कर पाते डॉ. साहब जो नगर के सबसे सिद्ध चिकित्सक हैं, शराब पीकर, जुआ खेल कर देर रात घर आते हैं. इनके देर रात घर आने पर पहले मैं ख़ूब कलह करती थी. शोर सुन कर मेरी तीनों बेटियां जाग जाती थीं.”
“लेकिन डॉ. साहब के बारे में आपको यह सब कैसे पता चला?” तानिया ने बीच में टोका.
सुषमा मुनीन्द्र
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