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कहानी- ढलती सांझ के प्रेममयी रंग 3 (Story Series- Dhalti Sanjh Ke Premmayi Rang 3)

 

थोड़ी देर बाद अंकल ने दवाइयां निकालीं और ख़ुद भी लीं व आंटी को भी दीं. कितनी परवाह कर रहे थे वे आंटी की, जैसे एक प्राण हो दोनों. “अब आप आराम करिए. आज दोपहर को भी आपने ज़रा आराम नहीं किया. सफ़र की तैयारी में ही लगे रहे.” आंटी ने कहा. “अच्छा लाओ तुम्हारा बिस्तर लगा दू्ं.” अंकल ने कहा. “अरे, मैं लगा लूंगी.” आंटी ने कहा, लेकिन तब तक अंकल पैकेट से चादर निकाल कर फटाफट नीचे की बर्थ पर बिछाने लगे. तकिया रखकर उन्होंने एक चादर कंबल के अंदर लगाकर रख दी.

        ... विशाखा को याद ही नहीं कि वह और रोहित कभी इस तरह से पास बैठकर इतने आत्मीय हुए होंगे. परिवार के उत्तरदायित्व के बीच कभी समय ही नहीं मिला और अब जब समय है, तो वह उम्र बहुत पीछे छूट गई सी लगती है विशाखा को. पुनः उन गलियों की ओर मुड़ना हास्यास्पद चेष्टा लगती है. असमय ही विशाखा प्रौढ़ता का ही नहीं वरन जैसे वृद्धावस्था का परिपक्व और गंभीर चोला ओढ़ कर बैठ गई. यह निकटता, यह अंतरंगता सब 20-30 की उम्र को शोभा देता है. जीवनभर सबने इतना आदर दिया, मान दिया कि अनायास मन ख़ुद को बुज़ुर्ग मान बैठा और वैसा ही आदर्श आचरण करने लगा, लेकिन आज क्यों यह आवरण झूठा-सा, बेवजह-सा प्रतीत हो रहा है.   यह भी पढ़ें: सफल अरेंज मैरिज के एक्सक्लूसिव 15 मंत्र (15 Exclusive Relationship Mantra For Successful Arrange Marriage)   बाहर सांझ गहराने लगी थी. नारंगी लाल नीले बैंगनी रंग आसमान में छा रहे थे, जिन पर रात अपना आंचल लहराने के लिए उतरने की तैयारी में थी. सांझ भी कितनी सुंदर होती है और ना जाने क्यों आज तो ये सांझ उसे और प्यारी लग रही थी. क़रीब आठ बजे विशाखा और अंकल-आंटी ने अपना लाया खाना मिल बांटकर खाया. थोड़ी देर बाद अंकल ने दवाइयां निकालीं और ख़ुद भी लीं व आंटी को भी दीं. कितनी परवाह कर रहे थे वे आंटी की, जैसे एक प्राण हो दोनों. “अब आप आराम करिए. आज दोपहर को भी आपने ज़रा आराम नहीं किया. सफ़र की तैयारी में ही लगे रहे.” आंटी ने कहा. “अच्छा लाओ तुम्हारा बिस्तर लगा दू्ं.” अंकल ने कहा. “अरे, मैं लगा लूंगी.” आंटी ने कहा, लेकिन तब तक अंकल पैकेट से चादर निकाल कर फटाफट नीचे की बर्थ पर बिछाने लगे. तकिया रखकर उन्होंने एक चादर कंबल के अंदर लगाकर रख दी. “तुम्हारा भी बिस्तर लगा दूं बेटी?” अंकल अब विशाखा से बोले. “नहीं... नहीं... अंकल मैं लगा लूंगी.” विशाखा संकोच से भर कर बोली. मदद तो उसे उनकी करनी चाहिए थी, लेकिन पिता शायद ऐसे ही होते हैं.   यह भी पढ़ें: पति-पत्नी के रिश्ते में भी ज़रूरी है शिष्टाचार (Etiquette Tips For Happily Married Couples)   अंकल अपनी बर्थ पर भी चादर लगाकर ऊपर जाकर लेट गए. आंटी भी तकिए पर सिर रख कर लेट गईं. ऊपर से अंकल की तांकझांक ज़ारी थी.

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें

Dr. Vinita Rahurikar डॉ. विनीता राहुरीकर       अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES

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