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कहानी- एक और एक ग्यारह 5 (Story Series- Ek Aur Ek Gyarh 5)

“कुछ भी हो, मैं कटिबद्ध हूं उन सबको अपने किए की सज़ा दिलवाने के लिए.” पूर्वा ने कहा. “जब तक मैं उन शैतानों को दंड न दिलवा दूंगी, मुझे चैन नहीं पड़ेगा. अपने पैरों पर खड़ा हो जाने की प्रतीक्षा कर रही थी. जितना क्रोध मुझे उन बदमाशों पर है, उतना ही अपने माता-पिता पर भी है, जिन्होंने मेरा साथ देने की बजाय मेरा मुंह ही सिल दिया. बेबस कर दिया मुझे.”

          “परन्तु मुझे तो तुम्हीं से काम था.” कहकर वह फिर से चुप हो गया. समझ नहीं पा रहा था कि कैसे अपने मन की बात रखे उसके सामने. कैसे शुरू करे? शब्द नहीं तलाश पा रहा था. मुश्किल से ही उसने हिम्मत जुटाई और पूछा, “क्या तुम मुझसे विवाह करोगी?” “नहीं.” पूर्वा ने एक ही शब्द कहा, पर उस शब्द में जाने कड़वाहट थी कि तिरस्कार, समस्त पुरुष जाति के प्रति क्रोध था या कि घृणा, स्वयं पर दया थी अथवा अपने परिवार के प्रति आक्रोश, कुछ न कर पाने की विवशता थी या फिर इन सबका मिला-जुला भाव. भीतर घुमड़ते सब भावों से लड़कर पूर्वा ने कहा, “आप जानते नहीं कि मेरे संग क्या हुआ है.” “जानता हूं. सब कुछ जानता हूं.” “तो दया कर रहे हो मुझ पर?” “नहीं मैं दया नहीं कर रहा, पर मैं उस घटना को उतना महत्व भी नहीं दे रहा, जितना कि तुम दे रही हो. मुझे तुम अच्छी लगती हो और इतना ही काफ़ी है मेरे लिए. मैं सिर्फ़ तुम्हारी रज़ामंदी चाहता हूं. जितना मेरी समझ में आया है, तुमने कोई अपराध नहीं किया, जुल्म हुआ है तुम्हारे संग और अपराधी वह हैं जिन्होंने ऐसा किया है, तुम नहीं.” “सच में आप ऐसा सोचते हो?” पूर्वा के मुख से निकला और नवीन ने ‘हा’ं में सिर हिला दिया. पूर्वा को विश्‍वास नहीं हुआ कि कोई अन्य भी उस हादसे को ठीक उसी नज़रिए से देखने को तैयार है, जिस तरह वह स्वयं. घोर आश्‍चर्य से भरी वह नवीन को देखने लगी. इन्सान नहीं किसी खिलौने की तरह इस्तेमाल की गई थी वह और विडम्बना यह कि दोष भी उसी के सिर मढ़ा गया था. दंड उसी को भुगतना पड़ा था. जीवनभर का दंड!   यह भी पढ़ें: आपकी पत्नी क्या चाहती है आपसे? जानें उसके दिल में छिपी इन बातों को(8 Things Your Wife Desperately Wants From You, But Won't Say Out Loud)     नवीन ज़रा-सा बाईं ओर को खिसका, बस, ज़रा-सा ही. संकेत भर कि ‘मैं तुम्हारी हर मुश्किल में तुम्हारे साथ हूं. जब चाहो सहायता पाने को हाथ बढ़ा सकती हो.’ बहुत कुछ था पूर्वा के मन में. लबालब भरा हुआ. पर चाहकर भी कुछ बोल नहीं पा रही थी. नवीन पर नज़र टिकाए उसकी आंखों से अश्रुओं की ऐसी धार बहने लगी, जिसे रोकना मुश्किल हो गया. पर यह आंसू दुख के नहीं थे, एक समाधान पा लेने की तसल्ली के थे. उसका दर्द समझ सके, ऐसा मित्र पाने का एहसास था शायद. उसके भीतर जो वर्षभर में लावा एकत्रित हो रहा था, वही अब राह पा बहने लगा था. गर्म, सुलगता लावा. कब नवीन के पास आकर उसने नवीन के कन्धे पर सिर रख लिया, इसका भान दोनों में से किसी को नहीं हुआ. आंसू कितने प्रकार के हो सकते हैं? इस पर भी शोध होनी चाहिए कभी. क्रोध बह जाने पर पूर्वा को एक बार फिर अपना ध्येय याद आया. “कुछ भी हो, मैं कटिबद्ध हूं उन सबको अपने किए की सज़ा दिलवाने के लिए.” पूर्वा ने कहा. “जब तक मैं उन शैतानों को दंड न दिलवा दूंगी, मुझे चैन नहीं पड़ेगा. अपने पैरों पर खड़ा हो जाने की प्रतीक्षा कर रही थी. जितना क्रोध मुझे उन बदमाशों पर है, उतना ही अपने माता-पिता पर भी है, जिन्होंने मेरा साथ देने की बजाय मेरा मुंह ही सिल दिया. बेबस कर दिया मुझे.” “मैं दूंगा तुम्हारा साथ उन अपराधियों को दंड दिलवाने के लिए.” नवीन ने कहा. “मैं तुम्हारी बात से पूरी तरह सहमत हूं. ऐसे लोग दंड नहीं पाते, तभी तो उनका हौसला बढ़ता है. और जो समाज अपने कमज़ोर वर्ग की रक्षा करने की बजाय उसे कठघरे में खड़ा कर दे, वह समाज भी अपराधी है. जब तक मैं अपना वचन पूरा न कर लूं, जब तक उन अपराधियों को दंड न मिल जाए, मैं तुम पर विवाह के लिए ज़ोर नहीं डालूंगा, यह मेरा वादा है.”   यह भी पढ़ें: महिलाएं जानें अपने अधिकार (Every Woman Should Know These Rights)   अगली छुट्टियों में जब पूर्वा नवीन को अपने परिवार से मिलवाने अपने घर ले जा रही थी, तो उसके चेहरे पर अटूट शांति थी और मन आत्मविश्‍वास से भरपूर था. सच कहते हैं, जीवन संघर्ष में यदि एक के साथ एक मिलकर खड़ा हो जाए, तो वह दो नहीं ग्यारह बन जाते हैं. Usha Wadhwa उषा वधवा   अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES

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