Close

कहानी- इक बूंद… 3 (Story Series- Ek Boond… 3)

“मेघा, तुम्हारी तरह मेरी भी एक बेटी है जूही... जो तुमसे महज़ दस साल छोटी होगी. मैं चाहता हूं कि वो भी तुम्हारी तरह प्रतिभाशाली हो, लेकिन आज तुम्हें देखकर मुझे डर लगता है कि कहीं मेरी जूही ने भी महज़ आकर्षण के कारण मेरे प्यार, स्नेह, समर्पण और कंसर्न को दरकिनार कर दिया तो क्या होगा? मेरे पढ़ाने का ढंग, तुम लोगों से जुड़ जाना मेरा प्रोफेशन है. कीट्स की कविताओं  को पढ़ाना मेरी रोज़ी-रोटी है. अपने परिवार के पालन-पोषण का ज़रिया मात्र है.” घुटनों के बीच सिर छुपाए मेघा रो पड़ी थी. अटकते शब्दों में इतना कहा, “मेरे लिए फिर से आपका सामना करना, सब कुछ नॉर्मल होना, आसान नहीं है.” कैसे बताते कि उनकी बेटी आज अपने टीचर की वजह से अवसाद में आई है. नहीं, कुछ भी हो... मेघा में इन परिस्थितियों से निकलने की शक्ति तो फूंकनी ही पड़ेगी. अगले ही पल वो मेघा के सामने खड़े थे. “कैसी हो मेघा?” “आपके उस दिन के कठोर व्यवहार के बाद मैं कैसी हो सकती हूं?” मेघा के कठोर शब्दों से अविचलित वो बोले, “जानती हो मेघा, इन दिनों तुम्हारे स्कूल ना आने से किसी को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा, सिवाय तुम्हारे मम्मी-पापा के. वो चिंता में घुल रहे हैं कि उनकी परवरिश और समर्पण में कहां चूक हो गई, जिससे तुम आज इस अवसाद में हो. अगर उन्हें पता चला कि तुम्हारी इस हालत के पीछे मेरा अपरोक्ष रूप से हाथ है, तो सोचो मैं ख़ुद से कैसे नज़रें मिलाऊंगा. ख़ुद को संभालो मेघा, विश्‍वास करो. कल जब तुम अपने बचपने को याद करोगी, तो तुम्हें हंसी आएगी सोचकर कि किस तरह तुम अपने टीचर के प्रति आकर्षण को प्यार समझ बैठी.” मेघा की आंखों में आंसू तैरने लगे थे, उस व़क्त उसके सिर पर हाथ रखते हुए कहा था, “मेघा, तुम्हारी तरह मेरी भी एक बेटी है जूही... जो तुमसे महज़ दस साल छोटी होगी. मैं चाहता हूं कि वो भी तुम्हारी तरह प्रतिभाशाली हो, लेकिन आज तुम्हें देखकर मुझे डर लगता है कि कहीं मेरी जूही ने भी महज़ आकर्षण के कारण मेरे प्यार, स्नेह, समर्पण और कंसर्न को दरकिनार कर दिया तो क्या होगा? मेरे पढ़ाने का ढंग, तुम लोगों से जुड़ जाना मेरा प्रोफेशन है. कीट्स की कविताओं  को पढ़ाना मेरी रोज़ी-रोटी है. अपने परिवार के पालन-पोषण का ज़रिया मात्र है.” घुटनों के बीच सिर छुपाए मेघा रो पड़ी थी. अटकते शब्दों में इतना कहा, “मेरे लिए फिर से आपका सामना करना, सब कुछ नॉर्मल होना, आसान नहीं है.” “यही तो परीक्षा की घड़ी है कि तुम किस तरह ख़ुद का सामना करोगी. मेरी चिंता मत करो. मेरे लिए तुम्हारी ग़लती वैसी ही है, जैसी अन्य किसी की कोई उद्दंडता, जिसके लिए मैं हमेशा अपने स्टूडेंट्स को डांटता-फटकारता और माफ़ करता आया हूं. उन सबके पीछे मेरा एक ही उद्देश्य तो रहता है, तुम सबको सही मार्ग पर जाते देखना. तुम तो वर्षा की वो बूंद हो, जो सागर में गिरने योग्य है. सागर में गिरोगी तो सागर कहलाओगी. गंदे पोखर में गिरने से वैसी ही हो जाओगी. तुम्हें दूषित जल बनते देखना तुम्हारे माता-पिता व टीचर्स के बस में नहीं होगा. हम सबको तब अच्छा लगेगा, जब तुम सागरमय होकर हमें गौरवान्वित करोगी. करोगी ना हमें गौरवान्वित? संभालोगी ना ख़ुद को.” मेघा की आंखों से झर-झर आंसू बहने लगे. यह भी पढ़ेराशि के अनुसार चुनें करियर (What Your Zodiac Sign Says About Your Career) उसके बाद मेघा स्कूल नहीं आई, लेकिन उसकी मम्मी ने बताया कि वो जी-तोड़ मेहनत कर रही है. इम्तहान हुए. रिज़ल्ट आया, मेघा ने सबको चौंका दिया, नाइंटी फाइव पर्सेंट लाकर. एक दिन सुकीर्ति ने एक बड़ा-सा कार्ड दिया, जिसमें मेघा ने बड़े अक्षरों में ‘सॉरी’ लिखा था. साथ में थी चंद पंक्तियां- ‘मिलने की हिम्मत नहीं थी, पर बिना कुछ कहे जाती, तो मन पर बोझ रहता. सर, उम्मीद है आपने मेरी उस दिन की ग़लती को माफ़ कर दिया होगा. आपके कहे अनुसार वर्षा की बूंद बनकर सागर में गिरने के लिए पूरा ज़ोर लगा दूंगी, ताकि मेरे मम्मी-पापा की तरह आप भी एक दिन मुझ पर गर्व करें. मेरी ग़लती का वो प्रायश्‍चित भी होगा. आपकी स्टूडेंट मेघा.’ समीर सर का मन भर आया था. सुकीर्ति पूछ रही थी, “ऐसी क्या ग़लती हो गई थी इससे.” समीर सर कह रहे थे, “बच्चे हैं, आए दिन कुछ ना कुछ करते रहते हैं. हमें भी कहां याद रहती हैं इनकी ग़लतियां.” अतीत के पन्नों की इबारतें उभरकर फिर धुंधली पड़ने लगी थीं. इबारतों की जगह मेघा का आज सुबह मुस्कुराता चेहरा था. मेघा का हंसता-खिलखिलाता आत्मविश्‍वास से भरा चेहरा. “पापा इस बार मुझे नाइंटी फाइव से ऊपर लाने हैं. मैं भी मेघा दीदी की तरह मेडिकल में जाऊंगी.” जूही की आवाज़ सुनकर समीर अतीत से बाहर आ गए थे. यह भी पढ़ेशब्दों की शक्ति (Power Of Words) “मम्मी, पापा को देखो आज कितना प्राउड फील कर रहे हैं. मैं भी आपको और पापा को ऐसा प्राउड फील कराऊंगी. जब पापा के स्टूडेंट अपनी सफलता के लिए पापा को क्रेडिट देते हैं, तो मैं तो उनकी बेटी हूं.” समीर ने ध्यान से जूही को देखा, एक पल को लगा मेघा खड़ी है और कह रही हो... ‘थैंक्यू सर...’ उस दिन आपके बोले कड़वे बोल और कठोर व्यवहार मेरे इलाज का एक हिस्सा था. जिसने ना केवल मुझे स्वस्थ किया, बल्कि इस योग्य बनाया कि मैं समाज के अभ्युदय के लिए योगदान करूं. आपके ये शब्द मुझे आगे बढ़ने की प्रेरणा देते रहे. जीवन कीट्स की रोमांटिक कविताओं की तरह सुगम नहीं है. इसमें हिचकोले हैं, जो हमें संभलने की अनवरत प्रेरणा देते है.’ Meenu tripathi       मीनू त्रिपाठी

अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORiES

Share this article