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कहानी- एक रस्म प्यार की 6 (Story Series- Ek Rasm Pyar Ki 6)
"कुछ बात करनी थी. सॉरी कहना था..." मैंने धीरे-से कहा, वो आराम से बोली, "मैंने पहले भी कहा था आपको. मैं कुछ उम्मीद नहीं कर रही हूं, मुझे मजबूरी में नहीं बांधना है ये रिश्ता." मैंने हाथ पकड़कर उसको अपने पास बैठा लिया था.
"मैं उस दिन... होली वाले दिन के लिए सॉरी नहीं बोल रहा हूं.. उसके बाद वाले सारे दिनों के लिए बोल रहा हूं, मैं बेवकूफ़ हूं यार..."
... अगली सुबह मां ने मंदिर जाने का प्रोग्राम तय कर लिया था. मंदिर में प्रसाद चढ़ाकर हम लोग निकले कि तभी पेड़ के नीचे, तिलक लगाए बैठे एक बाबा ,सबको आवाज़ दे रहे थे, "बाबा का आशीर्वाद ले लो बेटा. टीका लगवा लो. जोड़ी बनी रहेगी."
भइया-भाभी सेल्फी लेने में तल्लीन थे, मैं मां-पापा के साथ आगे बढ़ गया था, लेकिन विनीता चलते-चलते अचानक रुक गई थी. बाबा से टीका लगवाकर, उनको पैसे देकर उसने हाथ जोड़कर कुछ कहा था, मैं ठिठक गया था. इन प्रार्थनाओ में मुझे ही तो मांगा गया था.
घर लौटते समय, मन में एक के बाद कई तरह के ख़्याल आते जा रहे थे. व्यू मिरर में पीछे बैठी विनीता को देखते हुए मैं कुछ अलग ही महसूस कर रहा था. ये केवल मेरी भाभी की बहन, मेरी मेहमान नहीं है. ये वो भी लड़की नहीं है, जिसको मैंने रंग समझकर सिंदूर लगा दिया था. ये कोई मजबूरी से जुड़ा रिश्ता नहीं है... हम ऐसी रस्म से जुड़ चुके थे, जो मेरे लिए समय से पहले हो गई थी और शायद इसीलिए मैं बचकर भागने लगा था.
शाम को विनीता जानेवाली थी. मेरा दिल बुझता-सा जा रहा था. मां और भाभी रसोई में थीं. मैंने विनीता के कमरे का दरवाज़ा खटखटाया... वो अपना सामान सूटकेस में रखते हुए रुक गई, "अंदर आ जाऊं?"
पूछते हुए मैं वहीं जाकर बैठ गया. विनीता सकपका गई थी!
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"कुछ बात करनी थी. सॉरी कहना था..." मैंने धीरे-से कहा, वो आराम से बोली, "मैंने पहले भी कहा था आपको. मैं कुछ उम्मीद नहीं कर रही हूं, मुझे मजबूरी में नहीं बांधना है ये रिश्ता." मैंने हाथ पकड़कर उसको अपने पास बैठा लिया था.
"मैं उस दिन... होली वाले दिन के लिए सॉरी नहीं बोल रहा हूं.. उसके बाद वाले सारे दिनों के लिए बोल रहा हूं, मैं बेवकूफ़ हूं यार..."
मैं विनीता का हाथ पकड़े हुए एक बार में ही सारी बात बोल गया था! उसकी आंखों में आंसू झिलमिला आए थे.
वो अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन इस बार मैं हाथ छोड़नेवाला नहीं था. मैंने भरे गले से अपनी बात पूरी की, "मेरे लिए ये रस्में, ये सिंदूर इतना मायने ही नहीं रखती थीं, ये सच है. लेकिन इससे भी बड़ा सच ये है कि मैं शुरू से ही तुमको पसंद करता हूं... और अब समझ में आया है कि मैं तुमसे प्यार करता हूं, बस अब तक ज़िम्मेदारी से भाग रहा था. ये कोई मजबूरी में बंधा रिश्ता नहीं है.. मेरी आंखों में देखो, मैं सच कह रहा हूं."
विनीता ने सिर उठाकर मेरी आंखों में देखा, मैंने उसकी हथेली और कसकर थाम ली थी...हम दोनों की आंखों में आंसू झिलमिला रहे थे और आनेवाले कल के सपने भी.
[caption id="attachment_153269" align="alignnone" width="196"] लकी राजीव[/caption]
लकी राजीव
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