कहानी- काठ की गुड़िया 3 (Story Series- Kath Ki Gudiya 3)
मैं ख़ामोश बैठी रही. कहती भी क्या? न स्वागत में कुछ कहने को मन किया, न ही कुशलक्षेम पूछने की ज़रूरत. सच कहा गया है कि प्रेम की असली त्रासदी यह नहीं कि प्रेमीजन बिछड़ जाते हैं, अपितु असली त्रासदी यह है कि प्रेमी युगल साथ रहते हुए भी उनका आपसी प्यार ख़त्म हो जाता है. एक दिन यही शख़्स मेरे सामने प्रणय निवेदन लेकर खड़ा था और मैं भी कैसी बावरी ही हो गई थी उसके प्यार में. आज उसे देख न मन मचला है, न ही दिल की धड़कन बेकाबू हुई है. एक बार नज़र भर देख लेने की भी इच्छा नहीं हुई इस स्वार्थी शख़्स को. एक अजब-सी विरक्ति भर चुकी है मन में.
मेरा आत्मसम्मान जाग चुका था. मैं अब विवश और असहाय, आर्थिक और सामाजिक रूप से पति पर आश्रित नहीं रह गई थी.
बहुत देर से बाहर घंटी बज रही थी. कमलाबाई किसी काम में व्यस्त थी, इसलिए मैंने ही जाकर दरवाज़ा खोला. सामने देवव्रत खड़े थे. सोच रही थी कि भीतर आने को कहूं अथवा नहीं कि वह स्वयं चलकर भीतर आ बैठे. थके-हारे से. बेव़क्त बुढ़ा गए थे. चेहरे पर स़िर्फ उम्र ही अपने निशान नहीं छोड़ती, किस भांति जिया गया जीवन इसका निचोड़ भी अंकित हो जाता है चेहरे पर.
मैं ख़ामोश बैठी रही. कहती भी क्या? न स्वागत में कुछ कहने को मन किया, न ही कुशलक्षेम पूछने की ज़रूरत. सच कहा गया है कि प्रेम की असली त्रासदी यह नहीं कि प्रेमीजन बिछड़ जाते हैं, अपितु असली त्रासदी यह है कि प्रेमी युगल साथ रहते हुए भी उनका आपसी प्यार ख़त्म हो जाता है. एक दिन यही शख़्स मेरे सामने प्रणय निवेदन लेकर खड़ा था और मैं भी कैसी बावरी ही हो गई थी उसके प्यार में. आज उसे देख न मन मचला है, न ही दिल की धड़कन बेकाबू हुई है. एक बार नज़र भर देख लेने की भी इच्छा नहीं हुई इस स्वार्थी शख़्स को. एक अजब-सी विरक्ति भर चुकी है मन में. असहज हो उठे उस मौन को तोड़ते हुए देव ने ही बात शुरू की है, “मैं तुम दोनों को लिवाने आया हूं.”
यहभीपढ़े: रिश्तों को संभालने की फुर्सत क्यों नहीं हमें (Relationship Problems And How To Solve Them)
“क्यों?” मेरे मुंह से बेसाख़्ता निकला.
“उम्र के इस पड़ाव पर हम दोनों को ही एक-दूसरे की ज़रूरत है इला...”
बहुत कुछ कहना चाहा मैंने, मसलन- ‘ज़रूरत तो मुझे तब भी थी देव और देखा जाए, तो कुछ अधिक ही थी. यूं भी हमारे समाज में स्त्री को हर उम्र में पुरुष रूपी कवच की ज़रूरत रहती ही है. तब आपने यह क्यों नहीं सोचा? मेरे लिए न सही अपनी बेटी के लिए ही सोचा होता. परंतु पंद्रह वर्ष पूर्व यह सब सुनने का इनमें धैर्य नहीं था और आज कहने का कुछ लाभ नहीं.’ मैंने बस इतना ही कहा, “मुझे आपकी ज़रूरत तब थी, क्योंकि मैंने स्वयं को आप पर निर्भर बना रखा था, पर आज नहीं है. इतने वर्षों के संघर्ष ने मुझे इतना मज़बूत तो बना ही दिया है कि मैं पुरुष के सहारे बिना जी सकूं.”
इस बीच पारुल भी वहां आ बैठी थी. देव ने आशापूर्ण निगाह उस पर डाली, जिसका मतलब समझ पारुल ने स्वयं ही कहा, “मां की बात तो आप सुन ही चुके हैं. अब रही मेरी बात, तो मुझे आपकी वह कोठी नहीं चाहिए. जब मुझे उस घर की सुरक्षा की ज़रूरत थी, तब तो वह मुझे मिली नहीं और आज मुझे उसकी ज़रूरत नहीं है. मां को बेटी पैदा करने की सज़ा दी थी आपने. बहुत ़िज़ल्लत व कष्ट झेलने पड़े थे मां को इस अपराध के लिए, पर अब मैं बड़ी हो गई हूं. यथासंभव प्रयत्न करूंगी कि मां का शेष जीवन सुखमय बीते. इस तरफ़ से आपको चिंता करने की बिल्कुल ज़रूरत नहीं और अपने लायक घर भी बनवा ही लूंगी, इतना सामर्थ्य है मुझमें. अब रही बात आपकी, यदि आपको अपने बेटे पर भरोसा न हो, यदि वह आपकी देखभाल करने में सक्षम न हो, तो मुझे बताइएगा. बेटी हूं तो क्या, मैं करूंगी आपकी देखभाल की व्यवस्था. मानवता के नाते हम अजनबियों की देखभाल भी तो करते ही हैं न!”
“अपने किए की सज़ा भुगत रहा हूं आज. क्या तुम मुझे माफ़ नहीं करोगी?” देवव्रत ने एक बार फिर एक दयनीय दृष्टि मुझ पर डाली, पर वह मेरा मन नहीं पिघला सकी.
“इंसान अपनी ग़लती मान ले, तो अवश्य वह माफ़ी का अधिकारी है, लेकिन मैं यह जानती हूं कि तुम जो आज मेरे द्वार पर आए हो, तो इसलिए नहीं कि मेरे लिए तुम्हारा प्रेम जगा है या कि तुम्हें अपने किए पर पछतावा है, बल्कि अपना बिखरा घर संभालने के लिए आज तुम्हें मेरी ज़रूरत आन पड़ी है. प्यार तो तुम स़िर्फ अपने से ही करते हो बस. पर मैं भी कोई काठ की गुड़िया नहीं, जिससे जब चाहा खेल लिया, जब चाहा उठाकर ताक पर रख दिया.
यहभीपढ़े: ख़ुश रहना है तो सीखें ये 10 बातें (10 Easy Things Successful People Do To Stay Happy)
तुम यह अपेक्षा करते हो कि बीच के इतने वर्ष जब मैं अकेली जूझती रही, वह सब रातें, जो मैंने अपने और पारुल के भविष्य की चिंता में जाग कर गुज़ारी हैं, वे सब अपनी स्मृति से पोंछ दूं, तो चलो मैं यह भी प्रयत्न कर सकती हूं, लेकिन मुझे एक बात का सही उत्तर दो. यदि मैं तुम्हारा त्याग कर किसी और के साथ रहने लगती, तो तुम मुझे माफ़ कर देते क्या?”
उत्तर इतना स्पष्ट था कि मौन रहने को विवश हो गए देवव्रत.
उषा वधवा