Close

कहानी- ख़ामोशी 3 (Story Series- Khamoshi 3)

“ये लीनाजी का क्या चक्कर है? बार-बार ‘था’ बोल रहे थे, जबकि उनकी पत्नी तो अभी ‘ज़िंदा’ हैं.” “मैडम होकर भी नहीं हैं.” “क्या मतलब?” रति ने पूछा. “आज से क़रीब चार साल पहले मैडम को पैरालिसिस का अटैक हुआ था. मैडम कोमा में चली गई थीं. दो-ढाई साल तो साहब ने अकेले ही मैडम को संभाला. फिर दोस्तों के समझाने पर डेढ़ साल पहले मुझे काम पर रखा. पर कमाल की बात तो ये है कि पता नहीं कैसे साहेब को बिना मैडम के बोले ही पता चल जाता है कि कब उन्हें बाथरूम जाना है, कब टीवी देखना है, कब भूख लगी है, कब कहानी सुननी है... साहब तो मैडम को तैयार भी ख़ुद ही करते हैं. वो तो आज आप लोग आ गए, इसलिए मैंने कर दिया.” हर पार्टी की जान हुआ करती थी लीना. कोई भी मुझे आमंत्रित करता, तो उसके पहले उसका अनुरोध होता... “भई, अकेले मत आना, भाभी को ज़रूर लेकर आना.” लीना का कहीं भी जाकर उसी परिवार का हो जाना मुझे बहुत परेशान करता था. मैं उसे अक्सर कहा करता था, ‘तुम गेस्ट से कब होस्ट बन जाती हो, पता ही नहीं चलता.’ सबसे इतना घुल-मिल जाती थी.” “खाना अच्छा बनाती हैं वो?” रति के इस सवाल पर मुस्कुरा दिए थे अरविंद. “जी नहीं. लीना को तो खाना बनाना आता ही नहीं था. हां, मगर उसे खाना खिलाना आता था. इतने प्यार और इतने सलीके से वह खाना सर्व करती थी कि दो रोटी खानेवाला पांच खा जाता. मेरे दोस्त अक्सर कहा करते थे कि भाभीजी को दिल जीतना आता है. मेरा जवाब होता कि तेरी भाभी को बातें बनाना जो आता है. कभी-कभी तो मुझे लगता कि मैंने एक औरत से नहीं, टेप रिकॉर्डर से शादी कर ली हो.” यह भी पढ़ें: 10 छोटी बातों में छुपी हैं 10 बड़ी ख़ुशियां “पर अरविंदजी आप बार-बार ‘था’ का इस्तेमाल क्यों कर रहे हैं? लीनाजी तो...” इससे पहले कि अरविंद कुछ कहते विमला आ गई थी. “साहब मैं चलती हूं. खाना बना दिया है और मैडम के कपड़े भी बदल दिए हैं.” “विमलाजी, एक मिनट रुकिए. आपकी तनख़्वाह निकालकर रखी है. अभी लेकर आता हूं.” अरविंदजी के अंदर जाते ही शेखर ने विमला से पूछ लिया था, “ये लीनाजी का क्या चक्कर है? बार-बार ‘था’ बोल रहे थे, जबकि उनकी पत्नी तो अभी ‘ज़िंदा’ हैं.” “मैडम होकर भी नहीं हैं.” “क्या मतलब?” रति ने पूछा. “आज से क़रीब चार साल पहले मैडम को पैरालिसिस का अटैक हुआ था. मैडम कोमा में चली गई थीं. दो-ढाई साल तो साहब ने अकेले ही मैडम को संभाला. फिर दोस्तों के समझाने पर डेढ़ साल पहले मुझे काम पर रखा. पर कमाल की बात तो ये है कि पता नहीं कैसे साहेब को बिना मैडम के बोले ही पता चल जाता है कि कब उन्हें बाथरूम जाना है, कब टीवी देखना है, कब भूख लगी है, कब कहानी सुननी है... साहब तो मैडम को तैयार भी ख़ुद ही करते हैं. वो तो आज आप लोग आ गए, इसलिए मैंने कर दिया.” “टीवी... बाथरूम... इसका मतलब अब काफ़ी सुधार आ गया है उनकी हालत में.” “तब से अब तक बस इतना सुधार आया है कि मैडम कोमा से तो बाहर आ गई हैं, लेकिन...”         पल्लवी पुंडिर

अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORIES

Share this article

https://www.perkemi.org/ Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Situs Slot Resmi https://htp.ac.id/ Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor https://pertanian.hsu.go.id/vendor/ https://onlineradio.jatengprov.go.id/media/ slot 777 Gacor https://www.opdagverden.dk/ https://perpustakaan.unhasa.ac.id/info/ https://perpustakaan.unhasa.ac.id/vendor/ https://www.unhasa.ac.id/demoslt/ https://mariposa.tw/ https://archvizone.com/