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कहानी- मेघा की शादी 2 (Story Series- Megha Ki Shadi 2)

 

“सही बताओ, गोलू ने बीएससी कर लिया. इत्ता सा था वो? और वो जो तीन बहनें थीं कोनेवाली. क्या नाम... हां, पूनम, नीलम.. वो तीनों.. हैं? तीनों की शादी हो गई?” मेघा की हैरानी पर खीजते हुए मैंने कहा, “अब इतना क्या चौंक रही हो? तुम्हारी भी तो शादी हो रही है. तुम बड़ी हुई, बाकी दुनिया उतनी ही रहेगी?” इस बात पर कुछ पलों का सन्नाटा रहा, फिर हम दोनों ख़ूब तेज़ हंसने लगे थे.

        ... सबके जाते ही मैंने मां से कहा, “मेघा बड़ी शांत हो गई है. पहले कितनी चिबिल्ली थी. बात-बात पर चीखने-चिल्लाने लगती थी.” “बड़े होकर थोड़ी सब पहले जैसे रहते हैं. तुम भी तो बहुत उजड्ड थे.” मां ने मुझे टोक दिया, लेकिन थोड़ा रुककर बोलीं, “वैसे आज तो हमें भी बहुत चुप लगी. पिछले साल एक फंक्शन में मिले, तब तो ख़ूब हंस-बोल रही थी सबसे. अब पता नहीं, शादी की टेंशन होगी.” मां तो अपने सवाल का जवाब ख़ुद ही देकर निश्‍चिंत हो गई थीं, लेकिन मेघा की उदास आंखें मुझे उलझा हुआ छोड़ गई थीं! अगली सुबह मेरी आंखें अदरक कूटने की आवाज़ से खुलीं. ये पुराना झगड़ा था मेरा और मां का. मैं आंखें मिचमिचाते हुए थोड़ा चिड़चिड़ाते हुए रसोई तक आया, “मां प्लीज़, संडे को तो रहम करतीं.” आगे की बात मेरे हलक में अटककर रह गई थी. मां के साथ रसोई में मेघा भी खड़ी थी. आसमानी रंग का सूट पहने, कमर तक के बाल खुले हुए, गीले बाल.. “गुड मॉर्निंग. बड़ी जल्दी नहा-धोकर आ गई तुम?” हड़बड़ाकर मैं शायद कुछ ग़लत बोल गया था. मेघा हंसते हुए बोली, “तो चली जाऊं?” मैं भी कान पकड़कर हंसने लगा था. मेघा आज उलझी हुई, उदास नहीं लग रही थी. हमारे बीच झिझक का एक पर्दा अब भी था, लेकिन झीना होता जा रहा था. “आंटी, अब वो सब भी दे दीजिए, जिसके लिए मैं आई थी.” मेघा को चाय पीते हुए जैसे कुछ याद आया. मां ने बड़े आराम से कहा, “तुम वो डोंगे और चम्मच ले जाओ. बाकी सब अभी आशीष लेकर आ रहा है तुम्हारे यहां.”   यह भी पढ़ें: शादी से पहले और शादी के बाद, इन 15 विषयों पर ज़रूर करें बात! (15 Things Every Couple Should Discuss Before Marriage)   मां ने किसी और काम के लिए मेरी संडेवाली नींद छीनी होती, तो मैं शायद झुंझला जाता, लेकिन आज कुछ बात अलग थी. मैं गुनगुनाते हुए तैयार होने चला गया था. मां हैरान थीं और मैं भी, आख़िर मुझे हुआ क्या था? अपने घर के लोगों में आए अंतर हमें पता नहीं चलते. वो तो हमारे रिश्तेदार बताते हैं, जो बहुत दिनों बाद ये तो बहुत लंबा हो गया कहकर चौंक जाते हैं! यही हाल हमारे शहरों का होता है. हमारे साथ आगे बढ़ते शहर हमें वैसे ही लगते हैं, जब तक कोई बाहर से आकर अंतर ना बताने लगे. मेघा और मैं उसके घर की बालकनी पर खड़े होकर बातें कर रहे थे और वो हर दूसरी बात पर ऐसे ही चौंक जाती थी! कभी दूर दिखती इमारतों को देखकर, कभी पुराने लोगों की बातें जानकर. “सही बताओ, गोलू ने बीएससी कर लिया. इत्ता सा था वो? और वो जो तीन बहनें थीं कोनेवाली. क्या नाम... हां, पूनम, नीलम.. वो तीनों.. हैं? तीनों की शादी हो गई?” मेघा की हैरानी पर खीजते हुए मैंने कहा, “अब इतना क्या चौंक रही हो? तुम्हारी भी तो शादी हो रही है. तुम बड़ी हुई, बाकी दुनिया उतनी ही रहेगी?” इस बात पर कुछ पलों का सन्नाटा रहा, फिर हम दोनों ख़ूब तेज़ हंसने लगे थे. पुरानी बातें एक बार फिर शुरू हो चुकी थीं और मेघा के सवाल, उसका चौंकना भी. अगले चार-पांच दिनों में जैसे हम बचपनवाले आशीष-मेघा हो गए थे. बचपन के जुड़े नाते बीज की तरह होते हैं, सालों पड़े रहें मिट्टी में, कुछ नहीं होता... बस अपनेपन की एक फुहार पड़ने की देर होती है और झट से अंकुर निकल आता है! इतने सालों बाद मेघा से मिलते ही ऐसा ही एक अंकुर मेरे मन में भी फूट पड़ा था. और शायद उसके मन में भी.   यह भी पढ़ें: किस महीने में हुई शादी, जानें कैसी होगी मैरिड लाइफ? (Your Marriage Month Says A Lot About Your Married Life)   पता नहीं कितनी बातें उसके पास रहती थीं, मुझे बताने के लिए... कितनी परेशान रहती थी, मेरी राय जानने के लिए, “आजकल लहंगे के साथ दो दुपट्टे देते हैं. ये देखो आशीष, ब्लू और रेड, दो हैं इसके साथ. कौन-सा सिर पर लें, कौन-सा कंधे पर...” मेघा के ऐसे ऊलजुलूल सवाल सुनकर मैं झल्ला जाता, “अरे यार, ये लड़कियोंवाली बातें तुम मुझसे ना किया करो. मुझे क्या पता, मैंने नहीं पहना कभी लहंगा-चुन्नी.”

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें...

[caption id="attachment_208091" align="alignnone" width="213"]Lucky Rajiv लकी राजीव[/caption]  

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