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कहानी- पैरों की डोर 7 (Story Series- Pairon Ki Dor 7)

मंगती उसे देखकर चौंक गई. उसे नए रूप में सोनी को देखकर बड़ा अचरज हो रहा था. उसने उसे पहले हर जगह से छू कर देखा. अचानक उसने सोनी को बांहों से कसकर पकड़ बुरी तरह झकझोरा जैसे पूछ रही हो कहां चली गई थी मुझे छोड़कर. एक बार भी मेरी याद नहीं आई तुझे... और फिर उसके गालों पर तड़ातड़ इतने थप्पड़ बरसाए कि उसके दोनों गाल लाल हो गए.

        ... मां ने उसके लिए जो कुछ किया था वह हर कोई मां ऐसे हालात में नहीं कर सकती थी. मां के पास ममता की कमी न थी, पर कोई भविष्य नहीं था. उतनी दूर तक वह सोच ही नहीं सकती थी. घर के बारे में भी उसने कभी नहीं सोचा. सोचती भी कैसे? उसके लिए रूपया चाहिए था. सोनी के लिए इतना ही बहुत था कि सुबह-शाम वह उसे होटल में पेट भर खाना खिला देती. सोनी और मंगती की परिस्थिति को देखकर होटलवाले भी उनसे सहानुभूति रखते. सोनी की किस्मत इस मामले में अच्छी थी, जो उसे पहले रेनू जैसी मैडम, रहीम जैसे काका और आशा जैसी दोस्त मिली थी. सबने मिलकर उसकी जिंदगी को सही राह दिखा दी थी. उस पर वह बहुत संभल कर चल रही थी. सालभर बाद उसने इंटर का प्राइवेट फॉर्म भर दिया. देखते ही देखते उसने अच्छे नंबरों से बारहवीं पास कर ली. बीए की पढ़ाई करने के साथ वह अब कंपटीशन की तैयारी भी कर रही थी. अब मैडम की बिटिया आरुषि भी स्कूल जाने लगी थी. वह जितने समय तक स्कूल में रहती सोनी उतनी देर कोचिंग सेंटर चली जाती. नौकरी की तैयारी करते हुए उसने बीए पास कर लिया. उसके बाद एक साल की कड़ी मेहनत की बदौलत वह बैंक में क्लर्क की नौकरी के लिए चुन ली गई थी. जिस दिन उसकी नौकरी लगी, उसकी खुशी का ठिकाना न था. यह बात उसने सबसे पहले आशा और उसके बाद रहीम काका को बताई. नौकरी लगते ही वह सीधे अपनी मां के पास पहुंच गई. मंगती उसे देखकर चौंक गई. उसे नए रूप में सोनी को देखकर बड़ा अचरज हो रहा था. उसने उसे पहले हर जगह से छू कर देखा. अचानक उसने सोनी को बांहों से कसकर पकड़ बुरी तरह झकझोरा जैसे पूछ रही हो कहां चली गई थी मुझे छोड़कर. एक बार भी मेरी याद नहीं आई तुझे... और फिर उसके गालों पर तड़ातड़ इतने थप्पड़ बरसाए कि उसके दोनों गाल लाल हो गए. उसके बाद वह उससे लिपट कर फूट-फूट कर रोने लगी. वह अब भी उसे बार-बार छू कर पागलों की तरह चूम रही थी.   यह भी पढ़ें: महिलाएं बन रही हैं घर की मुख्य कमाऊ सदस्य (Women Are Becoming Family Breadwinners)   सोनी इसके लिए मानसिक रूप से पहले से तैयार थी. आखिर उसने मां को बिन बताए उससे दूर सहेली के पास जाने का इतना बड़ा अपराध किया था. जिसने भी यह भावुक दृश्य देखा उसकी आंखें भर आईं. सोनी रहीम काका से लिपट कर रो पड़ी. "कैसी है बिटिया?" "अच्छी हूं काका. आपका धन्यवाद आपने मां का इतना ख्याल रखा." "मैंने नहीं ऊपरवाले ने उसे यह सब सहने की शक्ति दी है." मंगती की बेटी का नया रूप देख कर सब हैरान थे. किसी को यह पता नहीं लग सका कि वह इतने वर्षों तक कहां थी? सब अपनी ओर से अटकले लगा रहे थे और उसके बारे में तरह-तरह की बातें बना रहे थे. सोनी को इसकी कोई परवाह न थी. मां से लिपट कर वह भी बहुत रोई. मां के मैले-कुचैले दामन से लिपट कर उसका बचपन लौट आया था. उसे छूकर मंगती को तसल्ली हो गई थी कि उसकी बेटी सकुशल थी. "चल मां मेरे साथ." " कहां?" उसने चौंककर पूछा. "अपने घर और कहां? वही तो अब तेरा भी घर है." " मेरा घर?" मंगती उसका मुंह देखकर बोली. उसके बाद उसने एक नजर अपने पुराने से मैले-कुचैले बिस्तर पर डाली जैसे कह रही हो मेरी दुनिया तो यही है. "इसे भी साथ ले जाना चाहती है." "हां." सोनी ने एक बड़ा सा बैग खरीदा. मंगती ने झट से उसमें अपना सारा सामान समेट दिया. सोनी भी इस काम में मां की मदद कर रही थी. अपने पीछे लोगों के बनाने के लिए ढेर सारी बातें छोड़ कर वह उसी दिन सामान और मां के साथ अपनी तैनाती की जगह पर आ गयी. सोनी की प्रगति को देखकर मैडम शर्मा, आशा के पापा और आशा बहुत खुश थे. आखिर उन्होंने ही उसे अतीत की उस अंधेरी खाई से निकालने में बहुत मदद की थी. भले ही यह क़ानून की नज़र में जुर्म था, पर उन्हें संतोष था कि उन्होंने सोनी की इच्छा का सम्मान करके उसे नया जीवन दे दिया था. "इस समय प्रकाशी कहां है?" रेनू ने पूछा तो वह वर्तमान में लौट आयी . "मेरे साथ है. मैडम एक आप ही तो है, जिसने उसके नाम को जिंदा रखा मेरे नाम के साथ जोड़कर. नहीं तो सब उसे मंगती के नाम से जानते हैं. आज मैं आपको उनसे मिलाती हूं." इतना कहकर सोनी ने मैडम को स्कूटी में बिठाया और अपने घर ले आयी. घर आकर जैसी ही प्रकाशी ने दरवाज़ा खोला सामने मैडम को देखकर चौंक गई. उसने आगे बढ़ कर रेनू के पैर छू लिए. "यह क्या कर रही हो?" यह भी पढ़ें: पराए होते बेटे, सहारा बनतीं बेटियां ( Are theirs sons, daughters evolving resort)   "मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि कभी मेरे सिर पर भी छत होगी. यह सब आपके कारण संभव हुआ है मैडमजी." "मेरे नहीं सोनी के कारण." "पहली बार रास्ता तो आपने ही दिखाया था. इस मंगती की बेटी को आपने कहां पहुंचा दिया है." "फिर वही बात. मैंने कुछ नहीं किया मैं तो यह टीचर हूं. यह तो मेरा काम है बच्चों को स्कूल भेजना और सही रास्ता दिखाना." " मैडमजी आपके दिखाये हुए रास्ते पर सोनी आज तक चल रही है. आप इसे राह नहीं दिखाती, तो शायद आज यह भी अपना भविष्य सड़कों पर तलाश रही होती." प्रकाशी के मुंह से इतनी बड़ी बात सुनकर रेनू को बड़ी हैरानी हुई. उसने एक नजर सोनी और दूसरी प्रकाशी पर डाली. "अच्छी संगत में रहने से इंसान अच्छी बातें सीख जाता है. अब मां को और मुझे छत और सुरक्षा दोनों मिल गई है. मां को बात करने का सलीका भी आ गया है." सोनी बोली. उसके बाद प्रकाशी ने रेनू के लिए चाय बनाई. सच में उसके हाथ में गजब का जादू था. उसने उसमें अपना इतना प्यार उड़ेला कि चाय जरूरत से ज्यादा अच्छी बनी थी. थोड़ी देर बात करके रेनू वहां से चली गयी. सोनी से मिलकर उसकी सारी जिज्ञासाएं शांत हो गई थी. प्रकाशी को नए रूप में देखकर उसे बहुत अच्छा लगा. उसे बड़ा संतोष था कि सोनी के दृढ़ निश्चय ने उसे मंगती की बेटी की जगह आज एक काबिल इंसान बना दिया था. Dr. K. Rani डॉ. के. रानी         अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORIES  

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