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कहानी- स्वप्न 4 (Story Series- Swapan 4) 

"... इंटरव्यू बंद कर प्रणव के साथ वक़्त गुज़ारने के इरादे से रिसेप्शन पर सूचना भी भिजवा दी थी. वहीं खड़े प्रणव ने इंटरव्यू जारी रखने का आग्रह किया. यह कहकर कि बाहर चंद लोग ही बचे हैं और उसे पूरी उम्मीद है कि उनमें से सशक्त उम्मीदवार मुझे मिल जाएगा. उसका इशारा तुम्हारी ओर ही था. तभी तुम अंदर आईं. तुम्हें देखते ही मेरी बांछें खिल गई, पर मैं यह ज़ाहिर नहीं करना चाहती थी कि तुम मेरी परिचित हो. मैं चाहती थी वे ख़ुद देखें कि मैंने योग्यतम को चुना है. मेरी उम्मीद के अनुरूप तुम हर कसौटी पर खरी उतरी. मुझे आज भी तुम पर गर्व है." 

        ... मुझे बाहर निकलते देख प्रणव मेरी ओर लपका, पर तभी मैंने उधर से गुज़र रही टैक्सी फुर्ती से रोकी और लपककर उसमें सवार हो गई. प्रणव ठगा-सा मुझे जाता देखता रह गया. मेरे अहं को इससे काफ़ी संतुष्टि मिली थी. पर घर लौटते तक अहं का यह घड़ा मां को सामने पाकर फूट पड़ा. मैं मां के गले लगकर फूट-फूटकर रो पड़ी. बरसों का संचित लावा भी इस विस्फोट के साथ फूटकर बाहर निकल आया था. मां देर तक मुझे ढाढ़स बंधाती रही थीं.   सप्ताह बीतते-बीतते मैं फिर से सामान्य होकर रोज़गार समाचार देखने लगी थी कि तभी आसमानी बिजली की तरह मुझे अपना नियुक्तिपत्र प्राप्त हुआ. देर तक मुझे अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हुआ. मां को सूचित करने से पूर्व मैं अपने संशय की पुष्टि कर लेना चाहती थी, इसलिए नियुक्ति पत्र लेकर तुरंत कॉलेज  पहुंच गई. पहली भेंट एच. आर. से ही हुई. उसने मुझे बधाई दी, तो मैंने चकित होकर पूछा, "क्या वाकई मैं चयनित हो गई हूं?  "इतने अच्छे इंटरव्यू के बाद भी आपको शक था क्या?  "पर मैडम के बेटे प्रणव भी तो उम्मीदवार थे?  "नहीं. वे तो विदेश रहते हैं. आप एक बार मैडम से मिल आइए.  मुझे देखते ही मृदुला मैडम का चेहरा फूल-सा खिल उठा. उन्होंने मुझे सीने से लगा लिया.  "कहां गुम रही इतने बरसों तक? तुम्हें साथ लेकर मैंने क्या-क्या सपने देख डाले थे कि हम शिक्षा जगत में एक नई क्रांति लाएंगे. जानती हो, वर्तमान नंबर वन की दौड़ वाली शिक्षा पद्धति से मैं बहुत असंतुष्ट हूं. एक नई शिक्षा व्यवस्था का प्रारूप तैयार करने, लागू करवाने में तुम जैसी सहायक की बहुत आवश्यकता थी. तुम नहीं मिली तो मैंने प्रणव को तैयार करना चाहा, पर वह मशीनों से प्यार करनेवाला इंसान इस पचड़े से दूर ही रहना चाहता था, इसलिए इंजीनियरिंग करने विदेश चला गया. पढ़ाई पूरी करके वहीं नौकरी करने लगा है."    यह भी पढ़े: एग्ज़ाम टाइम: क्या करें कि बच्चे पढ़ाई में मन लगाएं? (Exam Time: How To Concentrate On Studies)    "इंटरव्यू वाले दिन वह यहीं..?"  "हां तब वह आया हुआ था. मुझे छोड़ने कॉलेज आया, तो यहीं रूक गया. सोचा साथ ही लौटैगे. कोई भी ढंग का उम्मीदवार न आता देखकर मैं हताश हो गई थी. इंटरव्यू बंद कर प्रणव के साथ वक़्त गुज़ारने के इरादे से रिसेप्शन पर सूचना भी भिजवा दी थी. वहीं खड़े प्रणव ने इंटरव्यू जारी रखने का आग्रह किया. यह कहकर कि बाहर चंद लोग ही बचे हैं और उसे पूरी उम्मीद है कि उनमें से सशक्त उम्मीदवार मुझे मिल जाएगा. उसका इशारा तुम्हारी ओर ही था. तभी तुम अंदर आईं. तुम्हें देखते ही मेरी बांछें खिल गई, पर मैं यह ज़ाहिर नहीं करना चाहती थी कि तुम मेरी परिचित हो. मैं चाहती थी वे ख़ुद देखें कि मैंने योग्यतम को चुना है. मेरी उम्मीद के अनुरूप तुम हर कसौटी पर खरी उतरी. मुझे आज भी तुम पर गर्व है."  मृदुला मैडम की आंखों में छलकते अपनत्व और स्नेह में मुझे कहीं भी दोगलापन नज़र नहीं आ रहा था. द्रोणाचार्य, अश्वत्थामा जैसे ऐतिहासिक पात्र भी मेरी आंखों से ओझल होने लगे थे, क्योंकि मैडम द्वारा दिखाया गया स्वप्न अब शनैः शनैः मेरी आंखों में भी उतरने लगा था. 

 

[caption id="attachment_182852" align="alignnone" width="246"] संगीता माथुर [/caption]      यह भी पढ़े: खेल-खेल में बच्चों से करवाएं एक्सरसाइज़ और ख़ुद भी रहें फिट         अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORIES           

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