Close

कहानी- तेरा साथ है कितना प्यारा… 3 (Story Series- Tera Saath Hai Kitna Pyara… 3)

 

'यह कैसी पीढ़ी तैयार हो रही है? जिसके लिए मानवता का कोई मोल ही नहीं है. ग़लती शायद हम शिक्षक वर्ग की ही है. बच्चों को नंबर गेम में जुटाकर हमने उन्हें इंसानियत, प्रकृति, व्यावहारिक जीवन सभी से दूर कर दिया है. बच्चे को अगर उपहार न दिया जाए, तो वह कुछ ही समय रोएगा, किन्तु यदि संस्कार न दिए जाए, तो वह ज़िंदगीभर रोएगा.'

        ... "फिर से वही बोरिंग रूटीन शुरू." सोचते हुए वह बाथरूम में घुस गई. नहाकर बाहर निकली, तो नज़र अपने सूटकेस पर पड़ी. ‘अभी तो दीदी के यहां से लाया सूटकेस भी खाली करना है.' सूटकेस खोलते ही उसकी नज़र ऊपर रखी इंद्रजाल कॉमिक्स पर पड़ी. बचपन में वह और दीदी इन्हें कितने शौक से पढ़ती थी. "मैं मां से ले तो आई थी, पर अब पढ़ने की फ़ुर्सत ही नहीं मिलती. सोचती हूं इस बार रद्दी मैं निकाल दूं." दीदी ने कहा था. "नहीं... नहीं... मैं ले जाती हूं. प्रशांत कहते हैं इस वक़्त मुझे अच्छा साहित्य पढ़ना चाहिए." पुस्तके उलटते-पलटते अचानक नव्या की आंखें चमक उठीं. महाराणा प्रताप, लक्ष्मीबाई, पन्ना धाय... यही सब चैप्टर तो उसे पढ़ाने है बच्चों को. बच्चों के आते ही नव्या ने मुस्कुराकर उनका स्वागत किया. हालचाल पूछा, फिर उन्हें एक-एक कॉमिक पकड़ा दी. "इन्हें आपस में बदल-बदलकर पढ़ना. उसके बाद मैं तुम्हें कोर्स की किताब से पढ़ाऊंगी."   यह भी पढ़ें: बच्चों की बौद्धिक क्षमता को प्रभावित करते हैं खिलौने… (Toys Affect The Intellectual Ability Of Children)     बच्चों को रुचि से रंगीन चित्रकथाएं पढ़ते देख नव्या ने मन ही मन एक और योजना बना ली. धीरे-धीरे उसने साइंस, ज्योग्राफी के चैप्टर प्रोजेक्टर पर रंगीन चित्रों के माध्यम से कहानी के रूप में समझाने आरंभ कर दिए. कभी टैरेस पर तो कभी गार्डन में क्लास लगा लेती. स्तनपाई, सरीसृप, पक्षी आदि के बारे में जानकारी देने हेतु वह बच्चों को जू भी घुमा लाई. बांध पनबिजली आदि की जानकारी देने हेतु उन्हें सरदार सरोवर बांध की विजिट करा लाई. किचन में पिज़्ज़ा, थालीपीठ बनाना सिखाते हुए उन्हें प्रांतीय व्यंजनों की जानकारी देती. कभी नर्सरी ले जाकर तरह-तरह के पौधों का ज्ञान कराती. प्रशांत देख रहा था बच्चे उत्साह से सब गतिविधियों में भाग लेते, तो नव्या दुगने उत्साह से उन्हें सिखाने की तरक़ीब खोजने में जुट जाती. यहां तक कि घर लौटने के वक़्त बच्चों के चेहरे लटक जाते. "मैम, घर पर पापा-मम्मी की टोका-टाकी से खीज होती है." बच्चे शिकायत करते. "जीवन में आपको रोकने-टोकनेवाला कोई है, तो उसका एहसान मानिए. क्योंकि जिन बागों में माली नहीं होते, वे जल्दी ही उजड़ जाते हैं. शिक्षा तो आप कहीं से भी प्राप्त कर सकते हो, पर संस्कार आपको घर से ही मिलेंगे." नव्या प्यार से समझाती.   यह भी पढ़ें: एग्ज़ाम गाइड- कैसे करें परीक्षा की तैयारी? (Exam Guide- How To Prepare For The Examination?)     उस दिन प्रशांत के संग अस्पताल से बाहर निकलते उसने जो दृश्य देखा उसने उसके दिमाग़ की चूले हिला दी. लोग सड़क पर गिरे व्यक्ति को उठाने की बजाय उसका वीडियो बना रहे थे. प्रशांत उसे उठाकर अंदर ले गया, तो बाहर इंतज़ार करती नव्या सोचने पर विवश हो गई. ‘यह कैसी पीढ़ी तैयार हो रही है? जिसके लिए मानवता का कोई मोल ही नहीं है. ग़लती शायद हम शिक्षक वर्ग की ही है. बच्चों को नंबर गेम में जुटाकर हमने उन्हें इंसानियत, प्रकृति, व्यावहारिक जीवन सभी से दूर कर दिया है. बच्चे को अगर उपहार न दिया जाए, तो वह कुछ ही समय रोएगा, किन्तु यदि संस्कार न दिए जाए, तो वह ज़िंदगीभर रोएगा.'

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें

शैली माथुर           अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES

Share this article