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कहानी- तुम्हारी थोड़ी-सी बेसफ़ाई 6 (Story Series-Tumahri Thodi Si Besafai 6)

मैं थैक्स कहते हुए झेंप गया था. आधे से ज़्यादा कंपटीशन तो मुझे पता भी नहीं थे कि कब हुए. एग्ज़ाम कब शुरू होकर ख़त्म हो जाते हैं, मैं जान तक नहीं पाता. बहुत सारे पैरेंट्स को टीचर्स समझा रही थीं, बच्चे को टाइम दिया करिए. उसको ये सिखाइए, वो सिखाइए और मेरी ओर शाबासियों का ढेर लगा था. मैं असहज महसूस कर रहा था, इन शाबासियों पर मेरा कोई हक़ नहीं था.

        ... “हां, हैलो... चायपत्ती का डिब्बा कहां है?” मैंने बहाने से फोन किया. “डिब्बा वहीं है, ध्यान से देखो और करोगे क्या डिब्बे का? चाय बनी रखी है. छान लो. टेबल पर नाश्ता और टिफिन भी रखा है.” रसोई में चाय लेने गया, तो वो जो प्यार की लहर मुझे भिगोने लगी थी, वो गायब हो चुकी थी. कप वाली रैक पर कम से कम छह-सात तरह के अलग-अलग कप थे, जिनमें से एक-दो के हैंडिल भी टूटे हुए थे. बगल में सिंक पर एक मैला-कुचैला कपड़ा सिकुड़कर बैठा हुआ था, जिस पर दो-तीन प्रजातियों के कीड़े मंडरा रहे थे. बहुत हिम्मत करके राशनवाली आलमारी खोली, लेकिन उतनी हिम्मत कम पड़ गई! एक सी दाल, तीन-चार डिब्बों में थोड़ी- थोड़ी रखी हुई, न्यूक्लियर फैमिली जैसी लग रही थीं. सबको एक साथ भरकर, एक खानदान बनाकर मुझे चैन मिला. कुछ मसाले छोटी-छोटी पुड़ियों में छुपे बैठे थे, उनको डिब्बियों में डाला. फिर फ्रिज की सफ़ाई, कमरों की सफ़ाई. सब कुछ निपटाकर बैठा तो घर, घर जैसा लग रहा था. वैसा जैसा मैं देखना चाहता था. बस इसी साफ़ घर में चिंटू दौड़ता हुआ दिखता रहे और मुस्कुराती हुई नीलू. मुझे इन दोनों की याद आने लगी थी, फोन उठाया तो देखा नीलू का मैसेज आया था, ‘चिंटू के यहां पीटीएम है आज. 2 बजे से पहले जाना है.’ आज से पहले मैं कभी किसी मीटिंग के लिए स्कूल गया ही नहीं था, हमेशा नीलू ही जाती थी. मैंने झिझकते हुए क्लास में कदम रखा, टीचर मुझे पहचानते हुए मुस्कुरा दीं. “प्लीज़ कम... आए मस्ट से योर चाइल्ड इज़ अ जीनियस.” उन्होंने मेरे सामने चिंटू की एग्ज़ाम रिपोर्ट, सर्टिफिकेट्स, ट्रॉफी, मेडल्स का ढेर लगा दिया था. मैं हैरान था. वो बोलती जा रही थीं. “हर फील्ड में एक्सेल कर रहा है वो, ऑफकोर्स क्रेडिट गोज टू हिज़ पैरेंट्स!” यह भी पढ़ें: स्पिरिचुअल पैरेंटिंग: आज के मॉडर्न पैरेंट्स ऐसे बना सकते हैं अपने बच्चों को उत्तम संतान (How Modern Parents Can Connect With The Concept Of Spiritual Parenting) मैं थैक्स कहते हुए झेंप गया था. आधे से ज़्यादा कंपटीशन तो मुझे पता भी नहीं थे कि कब हुए. एग्ज़ाम कब शुरू होकर ख़त्म हो जाते हैं, मैं जान तक नहीं पाता. बहुत सारे पैरेंट्स को टीचर्स समझा रही थीं, बच्चे को टाइम दिया करिए. उसको ये सिखाइए, वो सिखाइए और मेरी ओर शाबासियों का ढेर लगा था. मैं असहज महसूस कर रहा था, इन शाबासियों पर मेरा कोई हक़ नहीं था. मन में कई तरह के सवाल घूम रहे हों, तो अकेलापन काट खाने को दौड़ता है. मेरे लिए ये तीन-चार दिन काटना बहुत मुश्किल हो रहा था. एक बैग में थोड़ा बहुत समान लेकर मैं अगली सुबह दीदी के यहां आ चुका था. “अरे आज तो तुम्हारा भाई आया है, आज भी वही ब्रेड बटर?” जीजाजी ने नाश्ते की टेबल पर मुंह बनाया. मैं मुस्कुरा दिया. गटक तो मैं भी नहीं पा रहा था. दीदी तुनकते हुए बोलीं, “भाई के यहां तो सुबह-सुबह बनता है, सब्ज़ी-परांठा. इतना हैवी तो अपने यहां कोई खाता भी नहीं. वैसे हेल्दी भी नहीं रहता इतना भारी.” जीजाजी ब्रेड स्लाइस हवा में लहराते हुए हंसे, “ये बहुत हेल्दी है ना!” अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें... [caption id="attachment_153269" align="alignnone" width="196"]Lucky Rajiv लकी राजीव[/caption]         अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORIES  

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