“असत्य पर सत्य की जीत का स्लोगन अधूरा है. बच्चों को दशहरा-दीवाली को विजयदशमी नहीं विजय-यात्रा के रूप में पढ़ाया जाना चाहिए. रामलीला रावण दहन की नहीं, राम के संघर्ष की होनी चाहिए. वास्तव में राम की कहानी व्यक्तित्व के विकास के सोपानों की कहानी है. दूसरे की सहायता के लिए छोटी-छोटी लड़ाइयों को लड़कर जीतने से बनते गए आत्मविश्वास और जुड़ते गए संगठन की कहानी है.
... फिर मैं अलग-अलग अदालतों के कठघरों में चीख रहा हूं. मैं गवाह हूं कि पापा ने बात ऐसे ही शुरू की थी, क्योंकि मैं उनके पीछे ही खड़ा था. मेरे पिता लगातार विनम्रता से समझा रहे थे, पर फिर भी वो मदोन्मत्त युवक आपे से बाहर होते गए. उन्होंने घबराहट में कार से बाहर निकल आए मेरे परिवार पर जान-बूझकर गाड़ी चढ़ाई. योर ऑनर मैं अच्छे से पहचानता हूं उन्हें. उन्होंने जान-बूझकर गाड़ी चढ़ाई, दोबारा वापस लाकर चढ़ाई और तब तक निडर होकर वहां खड़े रहे जब तक... ये ‘हिट एंड रन’ भी नहीं, ये क़त्ल है. मैं पुलिस स्टेशन में हूं और वो संवेदनशील इंस्पेक्टर कह रहा है, "जितना मैं कर सकता था किया. उन्हें हवालात की हवा चखाई, पर अब मैं कुछ नहीं कर पाऊंगा. मेरा तबादला हो गया है." मेरा वकील कह रहा है, "बहुत ताक़तवर लोग हैं वो, बहुत ऊपर तक पहुंच है उनकी. तभी तो इतना घमंड है उन्हें कि कोई उनका कुछ बिगाड़ नहीं सकता. उनके वकील के पास जो ताक़तें हैं, उनके आगे मेरी प्रतिभा और न टिक पाएगी." और मेरे सामने फिर वही दृश्य चलने लगता है. ग़ुरूर में डूबे उनके शब्द गूंजने लगते हैं, "अबे बुड्ढे, हमें सिखाता है! हमें? पता है हम कौन हैं?” रोहन हांफने लगा था, पर धीरे-धीरे ज्वालामुखी शांत हो गया और एक भयानक सम्माटा पसर गया हमारे बीच.
फिर उसका ज़र्द, लेकिन प्रभावशाली स्वर गूंजना शुरू हुआ, "हर सुबह उठने पर सीने में एक आग महसूस करता हूं, पर पिछले कुछ सालों से रात होते-होते जब किसी का मैसेज आ जाता है कि उसकी समस्या सुलझ गई, तो इस सुकून के साथ नींद आ जाती है कि मेरे दिल में धधक रही आग पर किसी भूखे का खाना पक गया. पिछले साल सर का देहांत हो गया...” हमने देखा बोलते हुए रोहन की पलकें छलछला आईं. पता है उन्होंने मरते समय मुझे क्या अंतिम सीख दी? सिखाते तो वो ये सब अपनी कक्षाओं में भी थे, पर शायद तुमने तब ध्यान न दिया हो. “असत्य पर सत्य की जीत का स्लोगन अधूरा है. बच्चों को दशहरा-दीवाली को विजयदशमी नहीं विजय-यात्रा के रूप में पढ़ाया जाना चाहिए. रामलीला रावण दहन की नहीं, राम के संघर्ष की होनी चाहिए. वास्तव में राम की कहानी व्यक्तित्व के विकास के सोपानों की कहानी है. दूसरे की सहायता के लिए छोटी-छोटी लड़ाइयों को लड़कर जीतने से बनते गए आत्मविश्वास और जुड़ते गए संगठन की कहानी है. अपने चरित्र को उस उच्चतम सोपान तक विकसित करने की कहानी है, जहां पहुंचकर मानव का आत्मबल इतना दृढ़ हो जाता है कि वो कितनी भी ताक़तवर बुराई पर विजय पा सकता है.” हम रोहन की शर्तों पर उसके फॉलोअर बनकर एक नई संघर्ष यात्रा के राही बन गए. आत्मविश्वास से लबरेज़, संगठन की ताक़त से प्रफुल्लित. आज पांच लोगों के मन में ‘कुछ नहीं हो सकता’ के राक्षस का दहन और ‘करके रहेंगे’ के देव का उदय हुआ था. रोहन को नींद आएगी न!
भावना प्रकाश
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