“आरतीजी, आप बुरा न मानें. आपने रिया को कुछ ज़्यादा ही आज़ादी दे रखी है. लड़की है... कल को शादी होगी. क्या इस तरह पूरे दिन ससुराल में मैच देखती रहेगी और हर चौके-छक्के पर उसकी सास उसे चाय-पकौड़े खिलाती रहेगी.”
“यह क्या ममा, आज फिर आपने लंच बॉक्स में आलू का परांठा रख दिया?” रिया ने अंदर आते ही बैग सोफे पर पटक दिया और भुनभुनाते हुए अपने कमरे में चली गई.
“सॉरी बेटा.” कहते हुए आरतीजी भी उसके पीछे चली गईं. यह देखकर ड्रॉइंगरूम में बैठी दोनों पड़ोसन मीनाक्षी और सुजाता आपस में बोल पड़ीं.
“बड़ी अजीब है आरती की बेटी. यह भी नहीं देखा कि कोई बैठा है, कम से कम उनका तो लिहाज़ कर लेती.”
“ऐसी ज़िद्दी और नकचढ़ी लड़कियां ही ससुराल में एडजस्ट नहीं कर पातीं. यहां तो आरती इसके नखरे सह रही है, सास थोड़े ही सहेगी.”
तभी आरतीजी आ गई, तो वे दोनों चुप हो गईं. वे चलने लगीं, तो आरतीजी बोली, “प्लीज़, आप लोग थोड़ी देर और बैठिए न. मैं गैस पर चाय का पानी चढ़ाकर आई हूं. बस, रिया कपड़े बदल ले, फिर उसकी पसंद की अदरकवाली चाय और प्याज़ के गरम-गरम पकौड़े बनाऊंगी. उसका मूड भी ठीक हो जाएगा और हम सब एक साथ चाय और पकौड़ों का आनंद भी उठा लेगें.”
“नहीं नहीं... आरतीजी हम तो चलते हैं. आप रिया का मूड ठीक करो. हम फिर कभी चाय पीने आ जाएंगे.” थोड़े व्यंग्यात्मक स्वर में कहते हुए वे दोनों वहां से निकल पड़ीं.
आरतीजी, रिया के साथ अभी महीनाभर पहले ही इस कॉलोनी में शिफ्ट हुई हैं. दोनों अकेले रहती थीं. आसपास किसी से मेलजोल भी नहीं कर पाती थीं. रिया सुबह नौ बजे ऑफिस निकल जाती थी. उसके बाद आरतीजी घर का काम निबटाकर अपना लेखन कार्य करती थीं. वह लेखिका थीं. उन्हें पढ़ने का भी शौक था.
पास-पड़ोस की महिलाओं ने सोचा कि यह नई पड़ोसन कामवालीबाई के बारे में पूछने के लिए तो आएगी ही, लेकिन आरतीजी को बाई की ज़रूरत ही नहीं थी. एक तो उनका फ्लैट छोटा था. फिर दो लोगों के बीच ज़्यादा काम भी नहीं था. दोनों मिल-जुलकर काम निबटा लेती थीं. 15 दिन बीत गए, तो उन महिलाओं के सब्र का बांध टूट ही गया. सो मीनाक्षी, सुजाता और नीलिमा पहुंच ही गईं उनके यहां उनके निजी जीवन की जानकारी लेने और मेलमिलाप बढ़ाने. नाम आदि पूछने की औपचारिकता पूर्ण हो चुकी थी. उनके बीच थोड़ा-बहुत आना-जाना भी शुरू हो गया था, लेकिन आरतीजी किसी के यहां नहीं जा पाती थीं, क्योंकि उनके पास एक तो व़क्त नहीं था. दूसरे सास-बहू, जेठानी-देवरानी की बुराई-भलाई करने में उन्हें बिल्कुल भी रुचि नहीं थी और उन महिलाओं की बातचीत का मुख्य विषय यही होता था.
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रिया देखने में बहुत ख़ूबसूरत और आकर्षक थी. जब वह तैयार होकर ऑफिस के लिए निकलती, तो सभी उसे घूर-घूरकर देखतीं. सबकी नज़र में रिया ज़िद्दी, नकचढ़ी और संस्कारहीन लड़की थी, इसलिए वे सब अक्सर आरतीजी से कहतीं, “आरतीजी, प्लीज़ बुरा मत मानिएगा, रिया को अच्छे संस्कार दीजिए. कुछ मैनर्स सिखाइए. आप तो इसकी हर बात मानती हैं. सिर पर चढ़ा रखा है आपने. कल को दूसरे घर जाएगी, तो सास थोड़े-ही इसके नखरे उठाएगी. सारा दोष आप पर ही आएगा कि आपने इसे अच्छे संस्कार नहीं दिए हैं.”
आरतीजी मुस्कुराकर कहतीं, “नहीं नहीं... ऐसा नहीं है. बहुत संस्कारी है मेरी रिया. सुबह ऑफिस जाती है. शाम को थकी-हारी लौटती है, तो मैं उसे गरमागरम चाय बनाकर देती हूं. चाय पीते ही उसकी थकान उड़न छू हो जाती है और गुलाब-सी खिल जाती है वह. एक चाय के बदले वह मुझ पर ढेर सारा प्यार लुटाती है. यह क्या कम है. फिर हम दोनों मिलकर अपना मनपसंद खाना बनाते हैं, साथ में खाते हैं. वह अपने ऑफिस की सारी बातें शेयर करती है. मैं भी अपनी रचनाओं के बारे में उससे डिसकस करती हूं. कभी-कभी वह मुझे लिखने के लिए नई और रोचक जानकारियां देती है.”
यह बात सुनकर वे सब महिलाएं बोर होने लगीं. आरतीजी की बात बीच में काटकर सुजाता बोल पड़ी, “और रिया के पापा?”
“वह एक साल के लिए कंपनी के काम से अमेरिका गए हैं.”
इधर मीनाक्षी के बेटे अंश का दिल ख़ूबसूरत रिया पर आ गया. उसे अपने लिए रिया जैसी स्मार्ट और जॉबवाली लड़की चाहिए थी. वह स्वयं भी आकर्षक होने के साथ-साथ एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में अच्छे पद पर कार्यरत था. उसने रिया का ज़िक्र अपनी मां मीनाक्षी से किया था. मीनाक्षी को रिया पसंद तो थी, लेकिन उसकी आदतें पसंद नहीं थीं. उसे नौकरीवाली ख़ूबसूरत बहू तो चाहिए थी, लेकिन घर के कामकाज करने के साथ-साथ सास की ग़ुलामी करनेवाली बहू की भी तलाश थी और रिया उनके इन मापदंडों पर खरी नहीं उतर रही थी.
वह नहीं चाहती थी कि रिया उसकी बहू बने, लेकिन अंश ने ज़िद पकड़ ली थी. आख़िर एक दिन बेटे की ज़िद और उसके दबाव में आकर वह इस बारे में बात करने अपनी सहेलियों के साथ आरतीजी के घर पहुंच ही गई.
“आरतीजी क्षमा चाहती हूं, आज रविवार के दिन अचानक आना हुआ. आप बहुत व्यस्त होंगी और रिया भी घर पर होगी?”
“नहीं नहीं... आज हम बिल्कुल फ्री हैं. मौज-मस्ती के मूड में हैं, क्योंकि रिया आज अपना फेवरेट क्रिकेट मैच देख रही है. एक बॉल तक नहीं छोड़ती है. मैच देखने की बेहद शौकीन है. जिस दिन मैच होता है, उस दिन तो वह ऑफिस से छुट्टी तक ले लेती है.” तभी अंदर से रिया की ताली बजाते हुए ख़ुशी से भरपूर आवाज़ आई, “कोहली का छक्का! इसी बात पर ममा प्लीज़ एक कप अदरकवाली चाय हो जाए.”
“ओके बेटा. अभी बनाती हूं. अगर दूसरी साइड से धोनी भी छक्का लगा दे, तो फिर साथ में प्याज़ के पकौड़े भी बना दूंगी.” आरतीजी ने हंसते हुए ज़ोर से कहा, तो मीनाक्षी से न रहा गया.
“आरतीजी, आप बुरा न मानें. आपने रिया को कुछ ज़्यादा ही आज़ादी दे रखी है. लड़की है, कल को शादी होगी, क्या इस तरह पूरे दिन ससुराल में मैच देखती रहेगी और हर चौके-छक्के पर उसकी सास चाय-पकौड़े खिलाती रहेगी.”
“मीनाक्षीजी, रिश्तों में आज़ादी और बंधन कहां से आ गए? अगर मैं रिया की भावनाओं का ख़्याल रखती हूं, तो वह भी मेरे ज़ज़्बात का पूरा सम्मान करती है. मेरी परवाह करती है, मेरे स्वास्थ्य की, मेरे मन, इच्छाओं और शौक की... मैं कभी-कभी पढ़ते-लिखते व़क्त इतना खो जाती हूं कि वह चाय वगैरह मेरे पास मेरे बिना मांगे ही रख जाती है. हमेशा मुझे लिखने के लिए उत्साहित करती रहती है. ऑफिस से छुट्टी लेकर मुझे विश्व पुस्तक मेले में ले जाती है. घरेलू कामकाज में भी बराबर मेरी मदद करती है.”
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“यह तो उसका कर्त्तव्य है.” मीनाक्षी तपाक से बोली.
“अगर यह उसका कर्त्तव्य है, तो उसको यह हक़ नहीं है कि वह मुझसे साधिकार चाय मांग सके... मुझसे ग़ुस्सा कर सके... मुझसे रूठे...”
“आरतीजी, देखो आप जो कह रही हैं ना वह सब ठीक है, लेकिन ये चोंचले और नखरे स़िर्फ मां ही उठाती है, सास नहीं.” मीनाक्षी हाथ नचाते हुए व्यंग्यात्मक स्वर
में बोली.
“अरे, उस दिन कैसे आप पर ग़ुस्सा कर रही थी कि आज फिर आलू का परांठा
रख दिया.”
“तो क्या हो गया? ग़लती मेरी ही थी ना. मैंने एक दिन पहले भी आलू का परांठा रख दिया था और याद नहीं रहा. दूसरे दिन भी रख दिया. मीनाक्षीजी, सच तो यह है जब बच्चियां ग़ुस्सा होती हैं, तो बहुत क्यूट लगती हैं. ढेर सारा प्यार आता है उन पर. जब रिया ग़ुस्सा होती है, तो मैं उसे छेड़ती हूं, ‘रिया, तुम तो ग़ुस्से में पहले से और भी ज़्यादा ख़ूबसूरत लग रही हो’ यह सुनकर वह हंस देती है और लाड़ से गले लगकर कहती है कि थैंक्स ममा, लव यू सो मच. सच, उस समय ऐसा लगता है जैसे ममता के मामले में मुझसे धनी और कोई नहीं है.”
“फिर भी, आज तो आप पूरा दिन बंध ही गईं न? न कुछ लिख पाएंगी और न कुछ पढ़ पाएंगी.”
“अरे, ऐसा कुछ नहीं है. आज सुबह जल्दी ही हम दोनों ने मिलकर सारे ज़रूरी काम कर लिए हैं. ब्रेकफास्ट भी कर लिया है. दोपहर में स़िर्फ खिचड़ी खाएंगे और रात को डिनर के लिए बाहर जाएंगे. आज का दिन पहले ही प्लान कर रखा है.”
“चलो, फिर हम तो चले. आप तो अब खिचड़ी बनाएंगी.” नीलिमा थो़ड़ा मुस्कुराकर, लेकिन व्यंग्यात्मक स्वर में बोली.
“अरे, उसमें कितना व़क्त लगेगा? दाल-चावल बिन रखे हैं. बस, धोकर कुकर में चढ़ानी है खिचड़ी.”
लेकिन वह तीनों रुकी नहीं. रिया मैच का आनंद ले रही थी, तो आरतीजी पत्रिका लेकर पढ़ने बैठ गईं और एक ब्रेक में रिया ने खिचड़ी भी बनने के लिए रख दी.
मीनाक्षी ग़ुस्से में तमतमा रही थी. “ऐसी नकचढ़ी और ज़िद्दी लड़की को मैं अपने घर की बहू हरगिज़ नहीं बना सकती, जो बिस्तर से ही चाय ऑर्डर करे. मैं आज ही अंश को साफ़-साफ़ बोल दूंगी. अगर तुझे इस लड़की से शादी करनी है, तो पहले मुझसे रिश्ता तोड़ना होगा.”
“बिल्कुल सही कह रही है तू.” सुजाता ने चिंगारी लगाते हुए कहा, “ऐसी लड़की को बहू बनाना ख़ुद अपनी ज़िंदगी में आग लगाना है.”
“तू बच गई मीनाक्षी, क्योंकि रिया के व्यवहार और तेवर के तूने पहले ही साक्षात् दर्शन कर लिए.” नीलिमा ने भी फुलझड़ी छोड़ दी.
“आरतीजी अपनी बेटी की इतनी तारीफ़ करती हैं उसे सिर-आंखों पर बिठाने के साथ-साथ उसके नाज़-नखरे सहती हैं. क्या अपनी बहू को ऐसे रख पाएंगी?”
“कभी नहीं.” कहते हुए सुजाता ने बुरा-सा मुंह बनाया.
“अरे, ये सब छोड़ो. मुझे यह बताओ कि अंश के ऊपर से रिया का भूत कैसे उतारा जाए? वह तो पूरी तरह से रिया पर लट्टू हो गया है.” मीनाक्षी चिंतित स्वर में बोली.
“अंश तो गया तेरे हाथ से मीनाक्षी, अब तू रिया की चाकरी के लिए तैयार हो जा.” नीलिमा ने चुटकी ली.
“चाकरी! वह भी बहू की? माई फुट.” मीनाक्षी पैर पटकते हुए बोली.
अंश के सिर से रिया का भूत उतारने के लिए वे तीनों योजनाएं बनाने लगीं.
अगले दिन वैलेंटाइन डे था. उसका विरोध करने उन्हें जाना था. वे सब खाली थीं. सो एक संस्था बना रखी थी. वैलेंटाइन डे वाले दिन वे दोपहर को निकल पड़ीं. सबसे पहले वे एक रेस्टॉरेंट में घुस गईं. वहां का एक दृश्य देखकर तो वे सभी हक्की-बक्की रह गईं, लेकिन मीनाक्षी की आंखों में एक विजयी चमक उभर आई. सामने की टेबल पर एक हैंडसम युवक और रिया दीन-दुनिया से बेख़बर आलिंगनबद्ध थे.
मीनाक्षी व्यंग्य से बोली, “यह देखो, आरती की संस्कारी लड़की रिया! कितनी बेशर्मी से लड़के के गले लगकर खड़ी है. मेरे लिए तो बहुत बढ़िया है यह प्रणय दृश्य. अभी फोटो खींचकर अंश को भेजती हूं, ताकि उसके सिर से रिया का भूत उतर जाए और शाम को आरती के घर जाकर उनकी संस्कारी बेटी के सुंदर संस्कारों के दर्शन करवाऊंगी.” कहते हुए मीनाक्षी ने मोबाइल से धड़ाधड़ कई फोटो खींच लिए और वहां से निकल गई दूसरी जगह अपने मिशन के लिए. इस बीच उसने वे सारे फोटो अंश को फॉरवर्ड कर दिए और शाम को पहुंच गई आरतीजी के घर. संस्कारी रिया की छवि दिखाने और उसके क़िस्से सुनाने.
“आरतीजी, रिया नहीं दिखाई दे रही है? कहां है वह? आज तो रविवार है और ऑफिस भी बंद है.”
“मीनाक्षीजी, मै ख़ुद भी परेशान हूं रिया को लेकर. वह अचानक ही घर से निकल गई थी यह कहते हुए कि ममा मैं अभी आती हूं, अब तो बहुत देर हो गई है उसे. उसका मोबाइल भी स्विच ऑफ है.” आरतीजी चिंतित स्वर में बोलीं. वे सब मन ही मन आरतीजी की हालत देखकर ख़ुश हो रही थीं. तभी अचानक दरवाज़ा खुला, जो बंद नहीं था.
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सामने रिया और वह रेस्टॉरेंटवाला युवक साथ थे. रिया दौड़ती हुई आई और आरती के गले लगकर उलाहना, मगर प्यारभरे स्वर में बोली, “ममा आपका बेटा बहुत नॉटी है. पता है, आज इसने जो काम किया है, मेरी तो जान ही निकल गई थी. किसी दूसरे नंबर से मुझे व्हाट्सऐप मैसेज किया- तुम्हारा पति ‘लवबर्ड्स’ रेस्टॉरेंट में किसी लड़की के साथ वैलेंटाइन डे मना रहा है. विश्वास न हो, तो वहां जाकर देखो. मेरे तो होश ही उड़ गए और उल्टे पांव दौड़ पड़ी रेस्टॉरेंट. वहां जाकर देखा, तो ये महाशय ख़ूब ज़ोर से हंस रहे थे मेरी हालत देखकर.”
“लेकिन रोमी तू तो 16 को आ रहा था. आज कैसे?” आरती ने आश्चर्य से पूछा.
“मम्मी, मुझे आना तो 14 तारीख़ को ही था, लेकिन इस वैलेंटाइन डे पर आपकी बहू को सरप्राइज़ देने के लिए मैंने झूठ बोला था कि मुझे 16 को आना है.” रोमी शरारत से मुस्कुराया.
“यू चीटर! मेरी तो जान ही निकल गई थी. तुझे छोड़ूंगी नहीं.” कहते हुए रिया उसकी छाती पर हौले-हौले प्यारभरे मुक्के बरसाने लगी.
फिर आरतीजी से बोली, “प्लीज़ ममा, आप जल्दी से तैयार हो जाइए. पहले ढेर सारी शॉपिंग, मूवी, फिर डिनर और हां प्लीज़ अपने बर्थडे पर मेरी दी हुई जींस और टॉप ही पहनिएगा. उसमें आप एकदम ब्यूटीफुल नज़र आती हैं और फिर पापा से आपकी वीडियो कॉल भी तो होनी है.” शरारती अंदाज़ में रिया बोली.
“नहीं नहीं... आज नहीं... फिर कभी चलूंगी. आज के दिन कबाब में हड्डी नहीं बनना है मुझे.” आरती ने इंकार कर दिया.
“तो ठीक है हम भी नहीं जाएंगे और घर में भी कुछ नहीं खाएंगे. आज भूख हड़ताल है.” रिया और रोमी एक स्वर में बोले.
“ओके. ठीक है बाबा चल रही हूं. तुम दोनों यूं मुंह न फुलाओ. रिया बेटा, मैं तैयार होकर आती हूं, तब तक इन आंटियों को गरमागरम अदरकवाली चाय पिलाओ.”
“ओके ममा.”
“नहीं नहीं बेटा... फिर कभी चाय पीने आएंगे.” यह कहकर वे सब वहां से निकल गईं.
डॉ. अनिता राठौर ‘मंजरी’