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कूल दिखने की चाह में युवाओं की बदलती ये लाइफ़स्टाइल हैबिट्स कितनी हेल्दी, कितनी अनहेल्दी? (The Pressure To Be Cool: Changing Lifestyle Habits Among Youth- Healthy Or Unhealthy?)

आजकल सभी का फ़ेवरेट शब्द हैं कूल और ख़ासतौर से युवाओं का तो ये बेहद पसंदीदा शब्द है. हर किसी को कूलदिखना है, अपनी लाइफ़स्टाइल भी कूल दिखानी है, कपड़ों से लेकर एटिट्यूड तक कूल होना चाहिए… और इन्हीं केचक्कर में युवा एक-दूसरे से ज़्यादा कूल लगने की चाह में ऐसा कुछ करने लग जाते हैं जो न तो उनकी ज़िंदगी के लिएऔर न सेहत के लिए ठीक होता है. हलांकि कुछ ऐसी भी आदतें हैं जो दरअसल अच्छी भी होती हैं और कूल लगने केचक्कर में वाक़ई यंगस्टर को सुपरकूल हो जाते हैं. आइए जानें कौन सी हैं ये लाइफ़स्टाइल हैबिट्स… 

लक्ज़री लाइफ़: आजकल तो सबको चाहिए लक्ज़री लाइफ़ और वो भी बिना ज़्यादा मेहनत के. महंगे शौक़, ब्रांडेड चीज़ेंऔर खर्च करने के लिए हो बहुत सारा पैसा. महंगे शौक़ रखना ग़लत नहीं, लेकिन दूसरों की देखा-देखी अपनी चादर सेज़्यादा पैर फैलाने की कोशिश सही है क्या? बच्चे पैरेंट्स पर दबाव डालते हैं कि मेरे सभी फ्रेंड्स के पास स्मार्ट फ़ोन है तोमेरे पास क्यों नहीं. और अगर डिमांड पूरी नहीं होती तो या तो बच्चे ज़िद्दी व बाग़ी होने लगते हैं या वो ग़लत रास्ता औरतरीक़ा अपनाने लगते हैं. 

बेहतर होगा कि पैरेंट्स बच्चों पर नज़र रखें कि उनका फ्रेंड सर्कल कैसा है और उनके पास अचानक बहुत सी महंगी चीज़ेंया पैसे तो नहीं मिलने लगे?

पार्टी हार्ड, ड्रिंक मोर: पार्टी करना इन दिनों यंगस्टर का शग़ल बन गया है. कम उम्र में ही वो नशा करने से परहेज़ नहीं करतेऔर ये उम्र भी ऐसी ही होती है जो बंदिशों को तोड़ना एंजॉय करती है. कभी-कभार पार्टी करने में बुराई नहीं, लेकिन ध्यानरखें कि बच्चे किस तरह की पार्टी में किस तरह के दोस्तों के साथ जाते हैं. क्या देर रात नशे में तो घर नहीं लौटते? ये नशाकहां तक सीमित है- सिगरेट, शराब या ड्रग्स? ये न सोचें कि हमारे बच्चे तो ये सब करते ही नहीं, हम बच्चों की जासूसीकरने को नहीं कह रहे लेकिन उनके प्रति बेपरवाह होना सही नहीं. उनको भटकने से रोकने के किए आपकी नज़र उन परज़रूर होनी चाहिए. कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार स्कूली बच्चों में पिछले कुछ सालों से नशे की लत बढ़ती जा रही है. 

सेक्स से परहेज़ नहीं: एक्सपेरिमेंट करने की चाह में कब युवा हदें पार कर जाते हैं उसका अंदाज़ा खुद वो भी नहीं लगापाते. पढ़ाई या आगे बढ़ने की उम्र में उनकी अच्छी ख़ासी एक्टिव सेक्स लाइफ़ होती है, जो न उनके भविष्य के लिए और नसेहत के लिए अच्छी होती है. अच्छा होगा कि पेरेंट्स बढ़ते बच्चों से दोस्ताना व्यवहार रखें ताकि वो अपनी जिज्ञासाएं औरशंकाएं आपसे शेयर कर सकें. उनको सेक्स एजुकेशन दें और सेफ सेक्स के बारे में भी समझाएं.

सोशल मीडिया की लत: आजकल जो सोशल मीडिया पर नहीं है वो तो आउट डेटेड माना जाता है. लेकिन सोशल मीडियापर दिनरात रहने से न सिर्फ़ स्वास्थ्य पर असर पड़ता है बल्कि ग़लत रिश्ते भी बनने के चान्स बढ़ जाते हैं, बच्चे क्राइम काभी शिकार हो सकते हैं. पोर्न देखने की भी उनको आदत पड़ जाती है. हो सके तो बच्चों के सोशल मीडिया अकाउंट कीजानकारी रखें.

ऑनलाइन गेमिंग पड़ सकती है भारी: ऐसे कई मामले आजकल प्रकाश में आए हैं जहां स्कूली बच्चे भी ऑनलाइन गेमिंगके चक्कर में क्राइम तक कर जाते हैं. इन गेम्स की लत लग जाती है और ये पैसे भरकर खेले जानेवाले गेम्स इस कदर उन्हेंजकड़ लेते हैं कि बच्चे अपने पैरेंट्स का क्रेडिट या डेबिट कार्ड भी चुराकर इस्तेमाल करने लगते हैं. एक-दूसरे से गेम मेंआगे बढ़ने के लिए वो आपस में दुश्मन भी बन जाते हैं और कुछ मामलों में संगीन अपराध कर बैठते हैं. पेरेंट्स को अपनेकार्ड्स और फ़ोन का एक्सेस टीनएज बच्चों को नहीं देना चाहिए और उनके फ़ोन पर भी नज़र बनाए रखनी चाहिए. 

कुछ अच्छी आदतें भी हैं, लेकिन इनकी भी अति नुक़सानदायक हो सकती है… 

फिटनेस-बॉडी बनाने का चस्का: फिट रहना अच्छी आदत है लेकिन जल्दी मसल्स व बॉडी बनाने के लिए स्टेरॉड्स याइंटरनेट से जानकारी हासिल करके कुछ भी खा लेना जानलेवा तक साबित हो सकता है. और लड़कियों को इम्प्रेस करनेके लिए बॉडी बनाने से बेहतर हेल्दी और फिट रहने के लिए एक्सरसाइज़ किया जाए. कुछ यंगस्टर तो महज़ दिखावे केलिए जिम जाने की आदत या शौक़ पाल लेते हैं. पेरेंट्स को चाहिए कि उनको समझाएं योग, वॉक, साइक्लिंग-जॉगिंग, मेडिटेशन व डान्सिंग-स्विमिंग से भी फिटनेस बनी रह सकती है. 

ट्रैवल: ये अच्छी आदत है और दोस्तों के साथ ट्रैवल करना का का युवा पसंद करता है. लेकिन ये शौक़ अलग-अलगजगहों व वहां के कल्चर को एक्स्प्लोर करने के लिए हो तो हेल्दी है, पर घरवालों से दूर आज़ाद रहकर, झूठ बोलकरअपनी गर्लफ्रेंड या बॉयफ्रेंड के साथ मौज-मस्ती करने, दारू पीने या ऐसी ही चीज़ों के लिए ट्रैवल करना सही नहीं और येअनसेफ भी हो सकता है. कुछ युवा तो कॉलेज ट्रिप या फ़्रेंड्स पिकनिक कहकर लोकल एरिया में ही लॉज बुक करकेअपने दोस्तों के साथ रहते हैं. पेरेंट्स बच्चों को पॉकेट मनी दें लेकिन बीच-बीच में उसका हिसाब भी लें. कहां जा रहे हैं औरकिसके साथ इसे क्रॉस चेक कर लें. 

ग्रुप स्टडीज़: साथ मिलकर पढ़ाई करना मज़ेदार हो सकता है लेकिन अक्सर यहां पढ़ाई कम और बाक़ी चीज़ें ज़्यादा होतीहैं. फ्रेंड के घर ग्रुप स्टडी के लिए जा रहे हैं कहकर बच्चे कहीं और तो नहीं जा रहे? इसलिए ये ज़रूर पता करें कि किसकेघर बच्चे जा रहे हैं, वहां और कौन-कौन होगा, दोस्तों के साथ-साथ उनके पेरेंट्स के भी फ़ोन नम्बर्स रखें. कई बार ऐसेमामले भी प्रकाश में आते हैं जहां टीनएजर्स अपने ख़ाली फ़्लैट की चाबी दूसरे दोस्तों को मज़े करने, गर्लफ्रेंड को साथ लानेया ऐसी ही चीज़ों के लिए दे देते हैं. 

ये माना स्मार्टफ़ोन से लेकर लैप्टॉप तक आज की ज़रूरत है क्योंकि सारे प्रोजेक्ट्स और जानकारी इन्हीं के ज़रिए मिलतीहै लेकिन टीनएज में थोड़ी नज़र और लगाम रखनी ज़रूरी हो जाती है, वर्ना कूल दिखने की ये चाह महंगी पड़ सकती है. 

  • परी शर्मा 

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