फिल्म अक्टूबर की कहानी
फिल्म 'अक्टूबर' की कहानी होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई करनेवाले डैन यानी वरुण धवन की है जो एक फाइव स्टार होटल में इंटर्नशिप कर रहा है. डैन अपना एक रेस्तरां खोलने का सपना देखता है, लेकिन किसी भी काम को गंभीरता से नहीं लेता. इसलिए इंटर्नशिप के दौरान उसकी हरकतों और अनुशासनहीनता की वजह से उसे बार-बार निकाले जाने की चेतावनी दी जाती है. वहीं दूसरी तरफ उसकी बैचमेट शिवली (बनिता संधू) बहुत मेहनती और अनुशान का पालन करनेवाली स्टूडेंट हैं. फिल्म की कहानी में शिवली और डैन के बीच कई ऐसे मौके आते हैं जो उनके बीच अनकहे प्यार की दास्तान को बयान करते हैं. वरुण धवन की गैर मौजूदगी में होटल का स्टाफ न्यू ईयर पार्टी करता है और इसी पार्टी में शिवली तीसरी मंजिल से नीचे गिर जाती है. हादसे के बाद वो कोमा में चली जाती हैं और उसकी इस हालत का डैन पर गहरा असर पड़ता है. एक दिन बातचीत के दौरान डैन की एक दोस्त उसे बताती हैं कि हादसे से ठीक पहले शिवली ने पूछा था कि डैन कहां है. बस यही बात डैन के दिमाग में घर कर जाती है कि शिवली ने आखिर ऐसा क्यों पूछा था और इसी सवाल का जवाब पाने के लिए वो अपना सारा काम छोड़कर अस्पताल के चक्कर लगाने लगता है. इस दौरान शिवली धीरे-धीरे रिकवर करती है, लेकिन बिना कुछ बोले वो एक दिन इस दुनिया से चली जाती है.अनकहे प्यार की है दास्तान
इस फिल्म में प्रेम कहानी तो है, लेकिन वो स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं देती है. पर इसका हर एक दृश्य डैन और शिवली के बीच एक अनकहे प्यार का अहसास ज़रूर कराता है. इस फिल्म में शुरू से लेकर अंत तक जिस तरह की घटनाएं घटती हैं, उसे देखकर दर्शकों के दिल में एक बैचेनी पैदा हो सकती है और यह बेचैनी भी प्यार के सुकून का अहसास दिलाती है. 'अक्टूबर’ एक धीमी फिल्म है इसलिए इसमें एक-एक चीज़ को आहिस्ता-आहिस्ता दिखाया गया है. फिल्म की रफ्तार धीमी होने के बावजूद यह दर्शकों को बोर बिल्कुल नहीं लगेगी. इसकी सबसे खास बात तो यह है कि प्यार के इस अनकहे अहसास को बयान करने के लिए संवादों का ज़्यादा सहारा नहीं लिया गया है.एक्टिंग और सिनेमेटोग्राफी
इस फिल्म में वरुण धवन अपनी एक्टिंग से हैरान कर देते हैं. उन्होंने फिल्म में डैन के किरदार की मासूमियत और संजीदगी को बहुत ही बेहतरीन तरीके से पेश किया है. अपनी पहली फिल्म में ही बनिता संधू अपनी एक्टिंग से बेहद प्रभावित करती हैं. शिवली की मां के रूप में गीतांजलि राव ने बेहतरीन अभिनय किया है. फिल्म की सिनेमेटोग्राफी बहुत सुंदर है. इस फिल्म में दिल्ली के लैंडस्केप और कुल्लू के दृश्यों को बेहद खूबसूरती के साथ दर्शकों के सामने पेश किया गया है. फिल्म का बैकग्राउंड म्यूज़िक भी बेहतरीन है. इस फिल्म का हरसिंगार से गहरा संबंध है. फिल्म की नायिका शिवली को हर साल अक्टूबर महीने का इंतजार रहता है, क्योंकि इस महीने में हरसिंगार के फूल खिलते हैं. शिवली को ये फूल बहुत प्रिय होते हैं और वरुण धवन उसके लिए ये फूल चुनकर लेके जाते हैं.साइलेंट थ्रिलर फिल्म है मरक्यूरी
फिल्म- मरक्यूरी निर्देशक- कार्तिक सुब्बाराज कलाकार- प्रभुदेवा, सनथ रेड्डी, दीपक परमेश, इंदुजा रेटिंग- 3/5 वरुण धवन की अक्टूबर के साथ ही प्रभुदेवा की फिल्म 'मरक्यूरी' भी सिनेमाघरों में रिलीज़ हो चुकी है. यह एक साइलेंट यानी मूक फिल्म है, जिसके किरदार गूंगे बहरे हैं. इस फिल्म में संवाद नहीं, लेकिन गूंगे-बहरों की सांकेतिक भाषा इस फिल्म में संवादों की कमी को खलने नहीं देती है. मरक्यूरी रोमांच से भरी एक हॉरर-थ्रिलर फिल्म है, इसलिए अगर आप रूटीन से हटकर कोई अलग फिल्म देखना चाहते हैं तो मरक्युरी आपकी उम्मीदों पर खरी उतर सकती है.फिल्म 'मरक्यूरी' की कहानी
मरक्यूरी फिल्म की कहानी भी काफी दिलचस्प है. फिल्म में दक्षिण भारत के एक गांव को दर्शाया गया है. जिसकी हवा में मरक्यूरी (पारा) का ज़हर घुलने की वजह से गर्भवती महिलाओं की कई संतानें मूक-बधिर और नेत्रहीन पैदा हुई. यह कहानी ऐसे ही पांच युवाओं की है, जो गर्भ में ज़हरीले रसायनों से प्रभावित होने के कारण बोल-सुन नहीं पाते, लेकिन सामान्य लोगों की तरह जिंदगी का लुत्फ उठाते हैं. मौज-मस्ती की एक रात इन युवाओं से दुर्घटना हो जाती है, जिसमें एक व्यक्ति (प्रभु देवा) मारा जाता है. जिसके बाद इस व्यक्ति की आत्मा बदला लेते हुए, अपने हत्यारों को चुन-चुन कर मारती है, लेकिन यहां कहानी में ट्विस्ट है. जिसे जानने के लिए आपको यह फिल्म देखनी पड़ेगी. यह भी पढ़ें: 65वां राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार: श्रीदेवी को बेस्ट एक्ट्रेस और विनोद खन्ना को दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड
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