हार्ट फेलियर धीरे-धीरे बढ़ने वाली बीमारी है. इसमें हृदय की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं. इसका मतलब यह नहीं है कि हृदय ने काम करना बंद कर दिया है ना ही इसका यह मतलब है कि शरीर का यह अंग जरूरत भर खून नहीं पंप कर पा रहा है. भारत में हार्ट फेलियर करीब 8 से 10 मिलियन लोगों को प्रभावित करता है. इससे मोटे तौर पर देश भर में 1.8 मिलियन लोगों को अस्पताल में दाखिल होना पड़ता है. इसके अच्छे-खासे बोझ के बावजूद लोग स्थिति को आमतौर पर नहीं जान पाते हैं और इसे ठीक से नहीं समझते हैं.
• अनुसंधान से पता चलता है कि कोविड मायोकार्डिटिस की एक बड़ी वजह है, जो हार्ट फेलियर का कारण बन सकता है
• भारतीयों में कार्डियोवैस्कुलर बीमारियां पश्चिम के लोगों के मुकाबले जल्दी पैदा होती है.
• विशेषज्ञों का सुझाव है कि नियमित स्क्रीनिंग और बेहतर उपचार पर ध्यान दिया जाए.
कोविड महामारी की दूसरी लहर के महीनों बाद भारत में हार्ट फेलियर के मरीज काफ़ी प्रभावित हुए हैं. हेल्थकेयर सेवाएं संक्रमण से निपटने पर केंद्रित हैं, ऐसे में कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों के मरीज़ों की न चाहते हुए भी अनदेखी हो रही है.
डॉ. जमशेद दलाल, निदेशक, कार्डिएक साइंसेज, कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल, मुंबई ने कहा, “भारत में हार्ट फेलियर के बढ़ते मामलों के मद्देनजर इसे जन स्वास्थ्य की प्राथमिकता के रूप में शीघ्र मान्यता दिए जाने की आवश्यकता है. अपने अस्पताल में हम हर महीने दर्जन भर से ज्यादा हार्ट फेलियर के मरीजों को भर्ती होते देखते हैं. हार्ट अटैक के करीब 10 प्रतिशत मरीज को हार्ट फेलियर का अंदेशा रहता है.इस पुरानी और गंभीर बीमारी के प्रति जागरूकता बढ़ाना आवश्यक है ताकि चेतावनी संकेतों को पहचानना सुनिश्चित किया जा सके. समय रहते बीमारी का पता लगाने और रोग प्रबंध की व्यवस्था सुनिश्चित की जा सके. हालांकि, एक और बाधा है जिसे दूर किए जाने की आवश्यकता है और वह है बताए गए उपचार का अनुपालन नहीं होना या कम होना. अब नई ड्रग थेरेपी उपलब्ध है जो अस्पताल में भर्ती करने की आवश्यकता में उल्लेखनीय कमी लाती है और मरीज के बचे रहने की संभावना बेहतर करती है. दूसरी ओर, बताए गए इलाज का अनुपालन नहीं करने से जटिलताएं बढ़ सकती हैं और इससे अस्पताल में दाखिल करने का जोखिम भी बढ़ेगा. जागरूकता और सहायता से बीमारी का समय रहते प्रभावी इलाज हो सकता है और इस तरह हार्ट फेलियर के मरीज ज्यादा समय तक जिन्दा रह सकते हैं और साथ ही प्रतिकूल लक्षण कम होंगे.”
युवा भारतीयों के बीच बढ़ते मामले
भारतीयों में युवाओं में कार्डियोवैस्कुलर बीमारियां पश्चिम के लोगों के मुकाबले जल्दी होती हैं जो चिन्ताजनक है. तनावपूर्ण जीवनशैली, आहार संबंधी खराब आदतें, शराब या नशे की लत तथा पर्याप्त शारीरिक गतिविधि की कमी इसके कारण हैं. हार्ट फेलियर के लक्षणों को शुरू में ही पहचान लेना जरूरी है. आम लक्षणों में सांस फूलना, थकान, एड़ी, पैरों या पेट में सूजन और सोने में मुश्किल. अन्य संकेतों में रात में खांसी, घरघराहट, भूख न लगना और तेज धड़कन आदि शामिल हैं.
ट्रिकल डाउन इफेक्ट: एनसीडी और कोविड हार्ट फेलियर के बड़े कारण हैं
हाइपरटेंशन जैसे तेजी से बढ़ते एनसीडी के मामले और डायबिटीज भारत में स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्या के रूप में उभरे हैं. हार्ट फेलियर के मामले बढ़ने में इसका भी योगदान है. डायबिटीज के मरीजों में हार्टफेलियर की आशंका दूसरों के मुकाबले दोगुनी के करीब होती है. भारत में डायबिटीज के मरीजों की संख्या दुनिया भर में दूसरे नंबर पर है. हार्ट फेलियर का कारण मायोकार्डिटिस या हृदय की मांसपेशियों का सूजन (मायोकार्डियम) हो सकता है. कोविड मायोकार्डिटिस के लिए एक गंभीर वजह है. इससे किसी भी व्यक्ति का मायोकार्डिटिस का डर 15.7% तक बढ़ सकता है. बुजुर्ग मरीजों और पुरुषों में यह ज्यादा प्रमुखता से देखा जाता है.
रूटीन चेक-अप के दौरान समय पर बीमारी का पता चल जाने से बीमारी को मैनेज किया जा सकता है.
हार्ट फेलियर को कैसे मैनेज करें?
जीवनशैली और आहार संबंधी बदलाव में स्मोकिंग छोड़ना, तनाव मैनेज करना, लिक्विड का पर्याप्त सेवन, नमक कम खाना, टीकाकरण और नियमित एक्सरसाइज़ शामिल हैं. लेकिन अक्सर लोग इसको फ़ॉलो नहीं करते और इन नियमों का पालन न करना भी एक बड़ी वजह है कि ये बीमारी बढ़ रही है.
वर्ल्ड हार्ट डे के मौके पर हार्ट फेलियर की इस बढ़ती समस्या को समझने और नियमित जांच, डायग्नोसिस तथा बीमारी को मैनेज करने को लेकर जागरूकता बढ़ाना अत्यावश्यक है, ताकि आपका दिल सुरक्षित रहे!
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