ऐसी कई फिल्में होती हैं, जो अच्छे कॉन्टेंट के बावजूद फ्लॉप हो जाती हैं और कई ऐसी फिल्में भी होती है, जिसकी स्क्रिप्ट में दम नहीं होता, लेकिन उस फिल्म में बड़ा स्टार हो तो वह 100 करोड़, 200 करोड़ और 300 करोड़ के क्लब में पहुंच जाती हैं.
हम अक्सर फिल्मों में अच्छी कहानियां ढूंढते हैं, उनकी बात करते हैं लेकिन जब ऐसी फिल्में रिलीज होती हैं तो पब्लिक उसे नकार देती है. यहां हम आपको ऐसी ही 8 बॉलिवुड फिल्मों के बारे में बता रहे हैं जिनकी कहानी, कॉन्टेंट, एक्टिंग, डायरेक्शन सब ज़बरदस्त थे, जो भारत की तरफ से ऑस्कर्स में भेजी जा सकती थीं, लेकिन हमारे ऑडियंस ने ही इन्हें रिजेक्ट कर दिया और कई बेहतरीन फिल्में सक्सेस से वंचित रह गईं.
मदारी
सोशल-थ्रिलर ड्रामा पर बेस्ड फिल्म 'मदारी' में इरफान खान ने एक ऐसे आम इंसान का किरदार निभाया था, जिसकी जिंदगी का हादसा, उसे देश के सिस्टम को सबक सिखाने के लिए मजबूर कर देता है. ये फ़िल्म आपको सच्चाई के रास्तों का आभास दिलाती हुई एक ऐसी दुनिया में ले जाती है, जहां एक आम आदमी पुल गिरने से दब कर मर गए अपने बेटे का बदला लेने के लिए देश के गृहमंत्री के ‘राजकुमार’ का अपहरण कर लेता है. वह सत्ता से न्याय चाहता है कि पुल बनाने में जो लोग भी शामिल थे, उन्हें तुरंत सजा मिले. इरफान खान की इस फिल्म में एक खूबसूरत कहानी के जरिए सरकार के कामकाज की खामियों को उजागर किया गया था. इसमें दिखाया गया था कि एक पिता अपने बेटे से कितना प्यार करता है. कहना न होगा कि ये एक बेहतरीन फ़िल्म थी, जिसे क्रिटिक्स ने पसंद किया, लेकिन ऑडियंस का अच्छा रिस्पांस नहीं मिला.
गली गुलियां
मनोज बाजपेयी स्टारर इस फिल्म को बेस्ट साइकॉलॉजिकल थ्रिलर ड्रामा में से एक माना गया. फ़िल्म में गजब का सस्पेंस था. लीक से हटकर एक बहुत अच्छा सब्जेक्ट, बेहतरीन डायरेक्शन और मनोज बाजपेयी की बेस्ट एक्टिंग वाली यह फिल्म मास्टरपीस थी, इस बात में कोई दो राय नहीं, लेकिन इस फ़िल्म को दर्शक ही नसीब नहीं हुए और एक अच्छी फिल्म को बुरा हश्र देखना पड़ा. ये बात अलग है कि इस फिल्म के लिए मनोज को मेलबर्न के इंडियन फिल्म फेस्टिवल में बेस्ट ऐक्टर का अवॉर्ड भी मिला था.
डिटेक्टिव ब्योमकेश बख्शी
ब्योमकेश बक्शी नाम के उपन्यास पर आधारित दिबाकर बनर्जी की इस फिल्म में सुशांत सिंह राजपूत की बेहतरीन परफॉर्मेंस देखने को मिली. इस फ़िल्म के लिए सुशांत ने बहुत मेहनत भी की थी. फिल्म के किरदार को समझने के लिए उन्होंने चार महीने तक किसीसे बात नहीं की थी, सिर्फ किरदार के साथ ही रहे थे.
इसकी कहानी काफी अच्छी थी जो कि कोलकाता की गलियों में ले जाती है और ड्रग स्मगलर्स से भरी है. फिल्म की तारीफ तो हुई थी, लेकिन इसे दर्शकों का कुछ खास प्यार नहीं मिल सका था. सुशांत के अभिनय को भी काफी सराहा गया था, लेकिन इस फिल्म का भी वही हाल हुआ कि लोग सिनेमाघरों तक नहीं पहुंचे.
सोनचिड़िया
डकैत ड्रामा पर आधारित इस फ़िल्म की शूटिंग मध्य प्रदेश के चंबल में की गई. रिस्क लिया गया, अपने कैरक्टर के लिए सुशांत और बाकी ऐक्टर्स ने काफी मेहनत की. डकैत, पुलिस, लड़ाई, हमला जैसी चीजों से भरी होने के बाद भी फिल्म अपराध पर बेस्ड नहीं थी, बल्कि अपराध करने के बाद अपराधियों के हालात की कहानी थी.
फिल्म में जाति प्रथा, पितृसत्ता, लिंग भेद और अंधविश्वास को दिखाया गया था. फिल्म में ये भी दिखाया गया कि क्यों बदला लेने और न्याय में अंतर है. कहानी, निर्देशन, अभिनय, तकनीकी हर लिहाज से सोनचिड़िया काफी मजबूत फ़िल्म थी, क्रिटिक्स ने भी इसे जमकर सराहा. इसमें सुशांत सिंह के एक्टिंग की खूब तारीफ हुई. लेकिन उनकी इस फिल्म का हाल भी वैसा ही हुआ, जैसा ब्योमकेश बख्शी के साथ हुआ. इस फिल्म में भी ऑडियंस ने अपना इंट्रेस्ट नहीं दिखाया.
शौर्य
बेहतरीन फिल्मों की बात होगी तो 'शौर्य' का ज़िक्र ज़रूर होगा. आर्मी बैकग्राउंड वाली फिल्म ‘शौर्य’ एक गंभीर और विचारोत्तेजक फिल्म है. इस फिल्म के जरिये डायरेक्टर ने कई गंभीर मुद्दे दर्शकों के सामने रखे थे. फ़िल्म में सेना और मनुष्य स्वभाव के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलुओं को दिखाया था. सेना की पृष्ठभूमि होने के बावजूद इस फिल्म में वॉर या खून-खराबा नहीं था. फ़िल्म में के के मेनन और राहुल बोस जैसे एक्टर्स ने जबरदस्त परफॉर्मेंस दी थी इसके बाद भी दर्शकों ने फिल्म को नकार दिया.
कड़वी हवा
संजय मिश्रा बॉलीवुड के टैलेंटेड ऐक्टर्स में से एक हैं. हालांकि, उन्हें पहचान काफी देर से मिली. फिल्म 'कड़वी हवा' में जमीन से जुड़े मुद्दों पर बात की गई कि कैसे किसान को जलवायु परिवर्तन के कारण मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. फिल्म को दूसरी कन्ट्रीज में पसंद किया गया लेकिन जब यह भारत में रिलीज हुई, तो ऑडियंस ने इसे पूरी तरह से साइडलाइन कर दिया.
सिटीलाइट्स
छोटे शहरों की सच्चाई और बड़े शहरों के जीवन की बारीकियां दिखाती मानव विस्थापन पर आधारित फिल्म सिटीलाइट्स एक बेहतरीन फ़िल्म थी. फ़िल्म में दिखाया गया था कि छोटे शहरों से पलायन करके लोग उम्मीदें और सपने लिए बडे शहरों में आते हैं,
यहां आकर वो दो जून की रोटी के लिए संघर्ष करते हैं, लेकिन उनके साथ किस तरह बुरा बर्ताव किया जाता है. यहां तक कि किसी पास उनके जीवन में झांकने की फुर्सत तक नहीं होती.
यह एक ऐसे परिवार की कहानी है जो राजस्थान से मुंबई पहुंचती है और फिर उनका संघर्ष शुरू होता है. राजकुमार राव और पत्रलेखा दिल से अपने कैरक्टर में घुस गए थे ताकि सब सच लगे और ज्यादा से ज्यादा लोग कनेक्ट करें लेकिन ऐसा नहीं हो सका. बॉक्स ऑफिस पर फिल्म कोई कमाल नहीं दिखा सकी.
ओए लकी लकी ओए
बिल्कुल अलग कंटेंट और कॉन्सेप्ट पर आधारित इस ब्लैक कॉमेडी फिल्म ने मुश्किल से बॉक्स ऑफिस पर सिर्फ 6 करोड़ की कमाई की जबकि अभय देओल ने इस फिल्म में जबरदस्त एक्टिंग की थी. इसका ह्यूमर हल्का नहीं था, जैसा कई फिल्मों का होता है, लेकिन यहां भी दर्शकों ने अच्छे कॉन्टेंट को स्वीकार नहीं किया और फिर बॉक्स ऑफिस पर फेल हो गई.