
अनुपम खेर की 'तन्वी द ग्रेट' भावनाओं से भरपूर एक संवेदनशील विषय पर बनी ख़ूबसूरत फिल्म है. तन्वी ऑटिज़्म पीड़ित है. लेकिन उसने अपने ख़्वाबों और अपने जीने के तरीक़े में कभी भी अपनी इस समस्या को हावी होने नहीं दिया. इसमें परिवार ने भी उनका पूरा साथ दिया. हमेशा स्पेशल फील करवाने के साथ तन्वी के स्वाभिमान को बनाए रखने के साथ हौसला अफजाई की. कभी तन्वी को यह महसूस ही नहीं होने दिया कि वह अलग है, बल्कि बकौल पिता कैप्टन समर रैना, करण टैकर के तन्वी स्पेशल है, किसी से कम नहीं. मां विद्या, पल्लवी जोशी और दादा कर्नल प्रताप रैना, अनुपम खेर भी तन्वी की जर्नी में साथ रहे, कभी प्यार से, तो कभी नाराज़गी और गुस्सा भी अपने रंग दिखाते रहे.

तन्वी को जब अपने पिता के सपने के बारे में पता चलता है, तब वह उसे पूरा करने का ठान लेती है. क्या तन्वी अपने मक़सद में कामयाब हो पाती है? क्या है तन्वी के पापा सपना? इसे जानने के लिए फिल्म तो देखनी ही होगी. साथ ही ज़िंदगी के इस फ़लसफ़े को भी समझना होगा की कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती. फिर चाहे वो मंज़िल व लक्ष्य कितना भी मुश्किलों भरा क्यों न हो.

करण टैकर ने अपने छोटे से रोल में प्रभावित किया. संगीतकार गायक राजा साहब की भूमिका में बोमन ईरानी कभी हंसाते तो कभी इमोशनल कर देते हैं.

आर्मी ऑफिसर के रूप में जैकी श्रॉफ तो हमशा ही जंचते हैं. अरविंद स्वामी ने भी लंबे अरसे के बाद किसी हिंदी फिल्म में गज़ब की पैठ जमाई है सेना के अधिकारी वाला उनका अंदाज़ लाजवाब है. पल्लवी जोशी ने एक ऑटिज्म बच्ची की मां को किस तरह से अपनी बच्ची को संभालना चाहिए बख़ूबी दर्शाया है. स्कॉटिश एक्टर इयान ग्लेन और नासिर भी प्रशंसनीय रहे. सभी कलाकारों ने अपना शत-प्रतिशत दिया और इस फिल्म को ख़ास बनाने में मदद की.

अपनी पहली ही फिल्म में तन्वी बनी शुभांगी दत्त ने कमाल का अभिनय किया है. यह उनकी एक्टिंग की जादूगरी ही तो थी कि लोग उनसे जुड़ गए और इमोशनल होते चले गए. एक पल को तो यह भी ख़्याल नहीं रहता कि यह कलाकार है. ऐसा लगता है वाकई में यह ऑटिस्टिक बच्ची है, जो अपने भावनाओं को व्यक्त कर रही है. इसके लिए अनुपम खेर जी को बहुत-बहुत बधाई, क्योंकि इसका क्रेडिट उनके निर्देशन को भी जाता है. अनुपम और शुभांगी की दादा-पोती के रूप में केमिस्ट्री देखते ही बनती है.
भारत में रिलीज़ होने से पहले अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी फिल्म को काफ़ी सराहना मिल चुकी है. आर्मी लाइफ, वहां की जीवनशैली, परिवारों का संघर्ष... सारांश यही है कि हमें ज़िंदगी को हमेशा भरपूर जीना चाहिए, जैसा कि अनुपम जी के पिता ने उन्हें आखिरी वक़्त कहा था 'लिव लाइफ' जो वे आज भी करते आ रहे हैं.

फिल्म के अंत मैं अनुपम खेर की भतीजी तन्वी का दिखाना, जो इस फिल्म को बनाने के लिए उनकी प्रेरणास्रोत रही हैं, मां दुलारी, भाई राजू खेर और भाभी का दिखना भी सुखद लगता है.
फिल्म की कहानी अनुपम खेर ने अभिषेक दीक्षित और सुमन अंकुर के साथ मिलकर लिखी है. एम. एम. कीरावनी का संगीत लुभाता है. गीतकार कौसर मुनीर के गीत दिलों को छूते हैं. सेना की जय... गाना जोश भरा है.
अनुपम खेर को इस फिल्म को बनाने में फाइनेंशियल भी स्ट्रगल करना पड़ा. पर दस सहयोगियों कहे या निर्माता बने, की मदद से आख़िरकार कामयाबी हाथ लग ही गई.

फिल्म के खास आकर्षण रहे हैं- भारतीय तिरंगे के प्रति प्रेम.. सियाचिन में झंडा लहराने और देशभक्ति का जज़्बा.. सेना-फौजियों की ज़िंदगी और उनकी बहादुरी... सैन्य ट्रेनिंग, उत्तराखंड के लैंसडाउन की ख़ूबसूरती...
- ऊषा गुप्ता
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