
पर उसका डर ग़लत था. रंगत हार गई थी और शुभम के प्यार ने उसके जीवन में न जाने कितने रंग भर दिए थे. वह अक्सर कहता था, “शेड्स ऑफ लव दिखते हैं तुम्हारे चेहरे पर जब तुम मुझे देखती हो. बहुत प्यार करती हो तुम मुझसे.”
“और तुम भी तो.” वह कहती तो शुभम उसकी आंखों में झांकने लगता और वह मदहोश होने लगती.
सन्नाटा पसरा हुआ था. उस समय वहां ज़्यादा लोग नहीं होते हैं. दोपहर बाद लोग आते हैं. पन्ने पलटने पर भी आवाज़ आ रही थी.
“आप क्या नर्स हैं? लगता है पढ़ने की शौकीन हैं या किसी कोर्स की तैयारी कर रही हैं. यह तो बहुत अच्छी बात है. इंसान को हमेशा कुछ न कुछ पढ़ते रहना चाहिए और फिर हमारी लाइब्रेरी में तो हर विषय से संबंधित पुस्तकें उपलब्ध हैं. किसी किताब को ढूंढ़ने में मेरी सहायता की ज़रूरत हो, तो बताइएगा.”
निवेदिता उस समय पुस्तक पढ़ने में इतनी खोई हुई थी कि यह सवाल सुनकर चौंक गई. उसने सिर उठाकर हैरानी से उसकी ओर देखा. एक युवक होंठों पर मुस्कान लिए खड़ा था. उसके हाथ में कुछ किताबें थीं. वह अवश्य ही लाइब्रेरी में काम करता होगा. उम्र होगी कोई 34-35 साल. सिर के बाल न के बराबर ही थे. मोटे फ्रेम का चश्मा पहना हुआ था. चारखाने वाली शर्ट और ढीली पैंट के साथ चप्पल... कुल मिलाकर एक ऐसा इंसान लग रहा था, जो बस अपनी ज़िंदगी को घसीट रहा हो. रंग लेकिन गोरा था.
निवेदिता को उसके टोकने पर पहले पहल जो खीझ हुई थी, वह अब गायब हो गई थी. लड़के भी इतने गोरे होते हैं? उसके मन में सवाल उठा! लेकिन उनकी रंगत पर कौन ध्यान देता है? निवेदिता का ध्यान गया था हमेशा की तरह. लड़का हो या लड़की... जब भी पहली बार किसी से मिलती है, रंगत पर ही ध्यान जाता है. काश! वह भी...
“किस सोच में डूब गईं? मैंने आपको शायद डिस्टर्ब कर दिया.”
“नहीं, इट्स ओके. मैं एक रिसर्च स्कॉलर हूं. लेकिन आपको ऐसा क्यों लगा कि मैं नर्स हूं?” निवेदिता का स्वर थोड़ा तल्ख़ हो गया था.
“सॉरी, मैंने बस ऐसे ही कह दिया था.” वह जानती थी कि उसके मन में ख़्याल क्यों आया था. पर फिर भी जान-बूझकर अनजान बनी रही. ऐसा कोई पहली बार तो हुआ नहीं था. हां, बस नर्स पहली बार किसी ने समझा था, वरना लोग पूछते थे कि बंगाली हो या फिर समझते थे कि वह दक्षिण भारतीय है.

“आपके मन में कोई तो ख़्याल आया होगा तभी तो पूछा न, वरना ऐसे ही मेरे नर्स होने की बात कैसे दिमाग़ में आती? कुछ मन में खटक रहा है, कुछ चुभ रहा है तो पूछ डालिए न? आपके चेहरे पर फैली हैरानी के भावों को देखकर तो नहीं लगता कि आपकी जिज्ञासा शांत हुई है.” निवेदिता की तल्ख़ी और बढ़ गई थी.
“नहीं मैडम.” वह बुरी तरह से झेंप गया था. “बताइएगा अगर आपको कोई किताब चाहिए होगी तो? मैं मदद कर दूंगा ढूंढ़ने में.”
निवेदिता ने कोई उत्तर नहीं दिया, तो वह वहां से चला गया और न जाने कहां जाकर अदृश्य हो गया.
उसने नर्स क्यों समझा यह बात भी समझ आ गई थी. ज़्यादातर नर्स दक्षिण भारतीय होती हैं या ईसाई समुदाय की. उनकी रंगत उनके वातावरण के अनुरूप होती है. ऐसा नहीं है कि उत्तर भारतीय या किसी अन्य प्रांत की लड़कियों के रंग दबे हुए नहीं होते, पर आमतौर नर्स के प्रोफेशन में दक्षिण भारत की लड़कियां ही देखने को मिलती हैं. वजह में वह नहीं पड़ना चाहती, किसी का रंग दबा हुआ है या सांवली रंगत है तो क्या? उसके गुणों को तो देखो! उसकी क्षमताओं को तो सराहो, पर हमारा समाज लड़कियों के आकाश छूने के बावजूद एक बंधी बंधाई धारणा लेकर आज भी चल रहा है. गोरा रंग मायने लड़की सुंदर है... क्या सांवली लड़की सुंदर नहीं हो सकती?
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उसके लिए इस तरह के सवाल नए नहीं हैं. बचपन से ही कभी व्यंग्यात्मक तो कभी आलोचनात्मक टिप्पणियां सुनती बड़ी हुई है.
“तेरे भाई-बहन तो गोरे हैं, फिर तू सांवली कैसे है? मतलब रंग क्यों इतना दबा है?” स्कूल में सहेलियां अपनी हंसी को होंठों के बीच दबाए पूछतीं.
“तेरे नैन-नक्श ब्राह्मणों की लड़की जैसे नहीं हैं. कोलकाता में पैदा हुई थी क्या? बंगाल के पानी का असर दिखता है तुझ पर.” कॉलेज में फ्रेंड्स बात को घुमाकर पूछतीं.
‘सांवली क्यों? सीधे-सीधे काली क्यों नहीं कह देतीं.’ वह मन नहीं मन कुढ़ती सोचती. ग़ुस्से से भरी घर लौटती, तो मां उसके गालों को चूमती कहतीं, “बोलने दे जिसे जो बोलना है. तू तो मेरी कृष्णकली है. रंग तो शरीर का बाहरी आवरण है. अपने मन को इतना सुंदर और दृढ़ बना कि उसकी चमक से सबकी आंखें चौंधिया जाएं.”
पापा हमेशा उसे कुछ बनने को प्रेरित करते और बड़ी बहन और भाई, ‘हमारी लाड़ली बहन...’ कहकर उस पर लाड़ बरसाते. परिवार की देहरी के अंदर वह सुरक्षित महसूस करती थी. अपने आत्मविश्वास को संभाल पाती थी. हालांकि रिश्तेदार मम्मी को सुनाने से चूकते नहीं थे कि न जाने निवेदिता की शादी कैसे होगी. बहुत मुश्किल होगा इसके लिए रिश्ता ढूंढ़ना. मानो शादी ही अंतिम लक्ष्य है लड़की के जीवन का!
घर की देहरी से बाहर कदम रखते ही उसे पता था कि व्यंग्य बाण तो झेलने ही पड़ेंगे. हीनभावना ने बहुत बार उसके आगे बढ़ने के मार्ग को अवरुद्ध किया. उसके आत्मविश्वास को डिगाया. कुछ बनने की ज़िद के साथ संघर्ष करते हुए वह इतना तो समझ ही गई थी कि समाज गोरी चमड़ी को पसंद करता है. जो व्हाइट कलर पर इतराती लड़कियों को ख़ूूबसूरत और उस जैसी सांवली-काली रंगत वाली लड़की को बदसूरत मानता है. मज़े की बात तो यह है कि यह सोच जो उन्नीसवीं सदी में थी, वह इक्कीसवीं सदी में भी कायम है. जब लड़कियां हर क्षेत्र में अपनी काबिलियत का लोहा मनवा चुकी हैं.
रंगत क्या इतनी ज़रूरी चीज़ है? कितना कुछ छीना है इस रंगत ने उससे. स्टेज पर जाने से कतराती रही, लोगों से मिलने से डरती रही. अपनी बात कहते हुए भी झिझक होती थी. सोचती है अगर शुभम उसकी ज़िंदगी में नहीं आया होता, तो क्या वह कभी गोरी न होने की छटपटाहट से बाहर निकल पाती.
‘रंगत का काबिलियत पर असर- क्या रंगत और काबिलियत का परस्पर संबंध है’ यही विषय चुना था उसने अपनी रिसर्च का. रिसर्च के दौरान वह हर तबके और उम्र की लड़की और लड़कों से मिली. मनोवैज्ञानिकों, समाजशास्त्रियों व बुद्धिजीवियों से बात की. समाज की सोच को समझा. त्वचा का रंग हमारी योग्यता को साबित नहीं कर सकता, इसी पर लेक्चर देने एक संस्था में गई थी. एक तरह से वह एक एनजीओ ही था, जो लड़के-लड़कियों को जीवन में तैयार होने के लिए विभिन्न कार्यक्रम चलाता था. एनजीओ का संस्थापक शुभम भंडारी भी युवा ही था. वह उसका वक्तव्य सुन अभिभूत हो गया था.

“मैं आपकी सोच की प्रशंसा करता हूं और इस मुहिम में आपका साथ देना चाहता हूं.रंग, चाहे गोरा हो या काला या सांवला हमारे व्यक्तित्व को निर्धारित नहीं कर सकता. गुण और मन की सुंदरता ही इंसान का सही आकलन करने का माध्यम होने चाहिए. अगर मैं कहूं कि यू आर वेरी ब्यूटीफुल तो आप मुझे अन्यथा तो नहीं लेंगी? सच में मिस त्रिवेदी आपके व्यक्तित्व में एक आकर्षण है. आपका श्यामल सौंदर्य आपको एक पहचान देता है.” निवेदिता ने उसकी आंखों में झांका था, कहीं उपहास तो नहीं उड़ा रहा?
वह भी शायद समझ गया था उसकी आंखों की भाषा को. एकदम बोला था, “यह बात मैं दिल से कह रहा हूं, आपका मन और मान रखने के लिए नहीं.”
“थैंक्यू, निवेदिता इतना ही कह पाई थी, पर उसने अपने गालों पर एक तपिश महसूस की थी. लाज की लाली की तपिश. खादी का ऑफ व्हाइट कुरता और जींस पहनी हुई थी उसने. बाल हद से ज़्यादा घुंघराले थे. ऐसे कि जिनमें किसी की उंगली फंस जाए तो निकालने के लिए जद्दोज़ेहद करनी पड़े. उसके गोरे चेहरे पर टिकी आंखों में चमक थी, जिनमें से मासूमियत झलक रही थी और उसके लिए प्रशंसा का भाव था.
हॉल में लगातार तालियां बज रही थीं. उसके बाद सवाल शुरू हो गए. उसने महसूस किया कि केवल वही नहीं है, जो रंगत की वजह से आज तक हीनभावना का शिकार रही थी, बल्कि बहुत सी लड़कियां, यहां तक कि लड़के भी इसका शिकार थे. उसके वक्तव्य ने उन्हें कॉम्प्लेक्शन कॉम्प्लेक्स से निकलने को प्रेरित किया था. लेकिन वह जानती है कि समाज की इस बात को लेकर बनी धारणाएं इतनी आसानी से उन्हें इससे बाहर नहीं आने देंगी.
शुभम से मुलाक़ातें होने लगीं और वह उसकी ज़िंदगी में शामिल हो गया किसी सुकून देने वाले घने वृक्ष की तरह. वह जब भी आसपास होता, निवेदिता को लगता कि उसकी छाया उसे तीखी धूप और बारिश की तेज़ बौछारों से बचा लेगी.
काश! सबको शुभम जैसा इंसान मिल जाए. काश! हर लड़की की ज़िंदगी में भी शुभम जैसा कोई व्यक्ति हो, जो उसे आत्मविश्वास से भर दे, जो उसे जीना सिखा दे. निवेदिता के सामने किताब खुली थी, लेकिन वह बीते समय के पन्ने पलट रही थी.
उसी से मिलकर लौटी थी उस रोज़. शुभम ही उसे घर छोड़ गया था.
जाते-जाते बोला था, “आई एम प्राउड ऑफ यू निवेदिता.”
उस व़क्त निवेदिता को लगा था कि वह इस दुनिया की सबसे ख़ुशक़िस्मत लड़की है. प्यार हो गया था उसे शुभम से. वह भी देख रही थी उसकी आंखों में उसके प्रति प्रशंसा के साथ-साथ प्यार के ढेर सारे रंग.
हालांकि डरती भी थी. न जाने कब उसकी रंगत उनके बीच में आ जाए. आख़िर समाज और परिवार का दबाव शुभम को भी तो उससे दूर कर सकता था.
पर उसका डर ग़लत था. रंगत हार गई थी और शुभम के प्यार ने उसके जीवन में न जाने कितने रंग भर दिए थे. वह अक्सर कहता था, “शेड्स ऑफ लव दिखते हैं तुम्हारे चेहरे पर जब तुम मुझे देखती हो. बहुत प्यार करती हो तुम मुझसे.”
“और तुम भी तो.” वह कहती तो शुभम उसकी आंखों में झांकने लगता और वह मदहोश होने लगती.
उस दिन कितनी देर तक शीशे के सामने खड़े हो निवेदिता ने ख़ुद को निहारा था.

“तुम ख़ूबसूरत हो.” उसे लगा था जैसे शुभम की आवाज़ उसके कानों को अपने होंठों से छूते हुए कमरे में गूंज रही है. जब शुभम ने पहली बार यह कहा था तो निवेदिता ने हंसते हुए पूछा था, “किस एंगल से मैं तुम्हें ख़ूबसूरत लगती हूं? रंग देखा है मेरा? आबनूस की लकड़ी जैसा है.”
“तुम्हारी रंगत पर तो कभी मेरा ध्यान गया ही नहीं. मैंने तुम्हारे मन को महसूस किया है और उसमें जो ख़ूबसूरती है, वह मेरी रूह में उतर गई है. अगर तुम अपनी रंगत को लेकर आगे बढ़ने से घबराती हो, तो समझ लो तुम ख़ुद को अंधेरे में गुम करने के लिए स्वयं ही ज़िम्मेदार हो. किसी को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता. सैडिस्ट क़िस्म के लोग ही केवल मज़ाक उड़ाते हैं, वरना मेरे जैसे कद्रदानों की कमी नहीं है दुनिया में.”
ऐसी बदली थी उसकी सोच उसके बाद कि फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा. उसकी सांवली रंगत पर शुभम के प्यार का ऐसा गुलाबी रंग चढ़ा कि उसका रूप निखार गया. वह उसे रंगरेज पिया कहती है. उसके साथ होती है तो गुनगुनाने लगती है, “मैं तो रंग गई पिया तुम्हारे रंग में...” उन्हें साथ देखकर लोगों ने हंस और कौवे की जोड़ी भी कहा, पर शुभम तब उसका हाथ अपने हाथ में कस लेता और कहता, “शेड्स ऑफ लव को हर कोई नहीं समझ सकता.”
“ओह! कितना निहारोगी ख़ुद को?” फिर से शुभम की आवाज़ उसके अपने होंठों से कानों को छूते हुए गूंजी तो वह चौंकी. लाइब्रेरी में लोग आने लगे थे. उसके सामने की कुर्सियां भी भर गई थीं. लाइब्रेरी से बाहर निकलने लगी, तो उसी चारखाने वाली शर्ट और ढीली पैंट के साथ चप्पल पहने युवक से निवेदिता की नज़रें टकराईं. उसके पास आकर धीरे से बोला, “सॉरी.”
निवेदिता को हंसी आ गई. अब कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता उसे.
“शुभम कब आएगा मिलने?” रात को मां ने पूछा.
“इस इतवार.”
“फटाफट मठरी, नमकीन बना लेती हूं्. तूने बताया था कि उसे बहुत पसंद हैं मेरे हाथ की बनी मठरियां.”
“तभी तो हमेशा ले जाती हूं उसके लिए.कहता है जब भी मठरी खाता है, उसे उसकी मां याद आ जाती है.” निवेदिता बोली.
“मां का न होना टीसता है हमेशा. लेकिन उसे बता देना कि मैं हूं उसकी मां अब. खाना भी उसकी पसंद का ही बनाऊंगी. बता दे उसे क्या अच्छा लगता है.” मां का उत्साह छलके ही जा रहा था.
“ओह मां इतना सब करने की ज़रूरत नहीं. ऑनलाइन ऑर्डर कर लेंगे कुछ.”
“कैसे न करूं यह सब? जिस इंसान ने मेरी बेटी के जीवन में रंग भर दिए हैं, उसकी आवभगत नहीं करूंगी क्या?”
“शुक्र है इसके अंदर से यह गोरे-काले का भूत तो उतरा. जीना सीख लिया है मेरी बेटी ने अब.” पापा ने उसके सिर पर हाथ रखते हुए कहा.
इतवार को जब निवेदिता शीशे के सामने खड़े हो तैयार होने लगी, तो उसे लगा फिर से शुभम की आवाज़ उसके अपने होंठों से कानों को छूते हुए गूंजी है, “ओह! कितना निहारोगी ख़ुद को? बहुत सुंदर लग रही हो. आई कैन सी शेड्स ऑफ लव इन योअर आईज़.”
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