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कहानी- एआई (Short Story- AI)

संगीता माथुर

"... विज्ञान हमें रास्ता दिखाता है. लेकिन मंज़िल तक जाने का रास्ता हमें ख़ुद तय करना होता है. सवाल परस्पर दोषारोपण का नहीं, परस्पर सहयोग से सर्वश्रेष्ठ चयन का है. हर नए आविष्कार की तरह ए आई भी अभी संदेह के घेरे में है..."

रचनाजी ने गुपचुप प्रोफेसर पति राव साहब के स्टडी में झांका. जैसी कि उम्मीद थी वे आंखें बंद किए, कुर्सी पर सिर टिकाए गहरी सोच में लीन थे. शायद स्वतंत्रता दिवस पर दिए जाने वाले अपने भाषण की रूपरेखा तय कर रहे होंगे. रचनाजी का अनुमान ग़लत नहीं था. कुलगुरु प्रोफेसर राव की सोच की शुरुआत तो अपने भाषण की रूपरेखा से ही हुई थी. वे एक-एक महत्वपूर्ण बिंदु काग़ज़ पर नोट करते जा रहे थे. अपने भाषण वे स्वयं ही लिखना पसंद करते थे. मां को बेटे से ज़्यादा कौन समझ सकता है? यूनिवर्सिटी को वे मात्रतुल्य दर्जा ही देते हैं और उसकी साख को शीर्ष तक पहुंचाने के लिए प्रयत्नरत रहते हैं. इसी प्रयास की श्रृंखला में सरकार से अनुशंसा कर उन्होंने यूनिवर्सिटी में एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) ब्रांच खुलवाई थी. अपने स्वतंत्रता दिवस भाषण में शिक्षा मंत्रीजी को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित कर वे सरकार का आभार व्यक्त करना चाह रहे थे और इसे विद्यार्थियों तथा यूनिवर्सिटी की उत्तरोत्तर प्रगति में एक महत्वपूर्ण माइलस्टोन घोषित करने वाले थे. लेकिन इधर कुछ दिनों से घटनाक्रम कुछ ऐसा घट रहा था कि उन्हें लगने लगा था कि एआई ब्रांच खुलवाने की पहल करके उन्होंने बहुत बड़ी ग़लती कर दी है. विशेषतः उस गुमनाम पत्र ने उनकी नींद उड़ाकर रख दी है.

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प्रोफेसर साहब, एआई को प्रमोट करना आप अपनी बहुत महत्वपूर्ण उपलब्धि समझ रहे होंगे. लेकिन मैं आपको आगाह करना चाहती हूं कि ऐसा करके आप लाखों-करोड़ों बच्चों को मौत के मुंह में धकेल रहे हैं. मेरी 28 साल की हंसमुख और जीवन से भरपूर बेटी इसी एआई की वजह से मुझसे छिन गई है. ट्रैंकिंग उसका पैशन था. पहाड़ की चोटियों को फतह करने वाली मेरी ज़िंदादिल बेटी अपने अंदर के डिप्रेशन से हारकर मौत को गले लगा बैठी और हमें पता ही नहीं चला. उसकी मौत के पांच महीने बाद हमें पता चला कि वह महीनों से चैट जीपीटी आधारित एक एआई थेरेपिस्ट हैरी से अपनी आत्महत्या की सोच साझा कर रही थी. जबकि अपने असली थेरेपिस्ट से उसने यह बात छुपाई थी. वह एआई चैटबॉट से खुलकर बातें करती रही, लेकिन इंसानों से नहीं. उसने कई बार एआई थेरेपिस्ट से कहा कि वह आत्महत्या के विचारों से जूझ रही है और ठीक होना चाहती है. एआई ने उसे प्रोफेशनल मदद लेने, ध्यान लगाने और पॉजिटिव सोचने की सलाह दी. लेकिन ये सुझाव स़िर्फ शब्दों तक सीमित रहे. बेटी की आत्महत्या की योजना जानने के बावजूद एआई ने कोई अलर्ट नहीं लिया. एआई उसे किसी से बात करने की सलाह देता रहा. लेकिन उसमें कोई अलर्ट सिस्टम एक्टिव नहीं हुआ. अगर उसमें ऐसा कोई सुरक्षा तंत्र होता, तो मेरी बेटी की जान बच सकती थी. एआई की अपनी सीमाएं हैं. उसने सलाह मात्र दी. बात की गहराई को नहीं समझा. हैरी माइंडफुलनेस, डायट, जर्नलिंग जैसी सलाह देती रही, सहानुभूति जताती रही. यही यदि इंसानी थेरेपिस्ट होता, तो बात की गहराई को समझकर तुरंत इमर्जेंसी प्लान बनाकर उसकी जान बचा लेता. एआई की कमज़ोरी यह है कि वह सहज उपलब्ध रहता है और सामनेवाले को जज नहीं करता. इसलिए लोग उससे खुलकर बात करते हैं जैसे कि मेरी बेटी करती रही. लेकिन यही एआई की सबसे बड़ी कमज़ोरी भी है कि वह ग़लत सोच को चुनौती नहीं देता. इससे यूजर एक डिजिटल बुलबुले में फंसा रह जाता है. एआई कभी भी इंसानी थेरेपिस्ट जैसे जवाबदेह नहीं बन सकता. इंसानी थेरेपिस्ट एक एथिकल कोड से बंधे होते हैं और आत्महत्या की स्थिति में ज़रूरी कदम उठाते हैं. पर एआई स़िर्फ सुझाव देता है. कोई कार्यवाही नहीं करता. जैसा कि मेरी बेटी के केस में हुआ. वह हमें भरोसा दिलाती रही कि वह ठीक है. एआई के साथ मिलकर उसने हमसे सच्चाई छुपाकर रखी. एआई ने उसे ऐसा ब्लैक बॉक्स दिया, जिससे हम परिजन उसकी हालत की गंभीरता को समझ नहीं पाए. यहां तक कि आत्महत्या से पहले छोड़ा नोट भी उसने एआई की मदद से लिखा.

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उसने चैटबॉट से ऐसा संदेश तैयार करवाया, ऐसे शब्द डलवाए, जिससे उसके माता-पिता यानी हमें कम से कम दुख हो. लेकिन हमारे दर्द को कोई कम नहीं कर सकता. यदि एआई में सुरक्षा फीचर्स होते, तो स्थिति अलग होती. हमारी बेटी आज ज़िंदा हमारे पास होती. एआई में सुरक्षा फीचर्स और जवाबदेही होना बहुत ज़रूरी है. मैं एआई पर हत्या का इल्ज़ाम नहीं लगा रही. उसने मेरी बेटी को नहीं मारा, पर उसने उसे छुपने-छुपाने का रास्ता दिया. बेटी को अपनी पीड़ा छुपाने का एक आसान ज़रिया दिया और इस तरह अप्रत्यक्ष में उसकी मौत का कारण बना. उसके संगी साथियों से पता चला कि करियर की कड़ी प्रतिस्पर्धा के बीच वह अपने काम और लाइफस्टाइल के बीच बैलेंस बनाए रखने का असफल प्रयास कर रही थी. अधिकांश जेन ज़ी 9 से 5 की नौकरी को नहीं अपनाना चाहते हैं. वे सख़्त वर्क शेडयूल को ख़त्म करना चाहते हैं. वर्कलाइफ बैलेंस को वे सैलरी से ऊपर रखते हैं. डिजिटल दुनिया में पले-बढ़े होने के बावजूद जेन ज़ी इन पर्सन लर्निंग पसंद करते हैं. एआई बेस्ड लर्निंग टूल्स उन्हें कम पसंद आ रहे हैं. फेस टू फेस मीटिंग और प्रैक्टिकल प्रोजेक्ट्स ज़्यादा असरदार साबित हो रहे हैं. मेरी बेटी शायद यही बैलेंस नहीं बना पा रही थी. उसे एआई को ऐसे टूल के रूप में प्रयुक्त करना था, जिससे वह अपने काम को बेहतर बना सके. ना कि उसके लिए ख़तरा बन जाए. मैं कॉरपोरेट कंपनीज़ को भी ऐसा ही एक पत्र मेल कर रही हूं, जिसमें उनसे गुज़ारिश कर रही हूं कि वे कर्मचारियों को मेंटरशिप, स्थिरता और बेहतर वर्कलाइफ बैलेंस देने की ओर ज़्यादा ध्यान दें न कि उन्हें एआई टूल्स का ग़ुलाम बनाएं. ऑफिस कल्चर और आपका यूनिवर्सिटी कल्चर भी ऐसा हो कि लंच ब्रेक में अनौपचारिक बातचीत को अहमियत दी जाए... लंबे-चौड़े गुमनाम पत्र को पढ़ना समाप्त कर एकबारगी तो प्रोफेसर साहब को लगा था मानो उस गुमनाम महिला की बेटी की असामयिक मौत के ज़िम्मेदार वे हैं. क्या वाकई एआई ब्रांच खुलवाकर उन्होंने हज़ारों बच्चों की ज़िंदगी ख़तरे में डाल दी है? अभी वे इस अपराधबोध से उबर भी नहीं पाए थे कि अख़बार में प्रकाशित एक और ख़बर ने उन्हें झकझोर दिया. अमेरिका में एक 16 वर्षीय किशोर की आत्महत्या के मामले में उसके माता-पिता ने चैट जीपीटी कंपनी और उसके सीईओ को बेटे की मौत के लिए ज़िम्मेदार मानते हुए मुक़दमा दायर कर दिया. उन्होंने सीधे तौर पर एआई कंपनी को आत्महत्या के लिए ज़िम्मेदार ठहराया. उनका आरोप था कि चैट जीपीटी ने उनके बेटे को आत्महत्या के तरी़के बताए और उसकी नकारात्मक सोच को लगातार मान्यता देकर उसे मौत की ओर धकेला. उनका नाबालिग बेटा महीनों तक आत्महत्या से जुड़े सवाल चैट जीपीटी से पूछता रहा और वह उसे सारी जानकारी उपलब्ध कराता रहा. बेटा भावनात्मक रूप से उस पर निर्भर होता चला गया और आत्मक्षति  कर बैठा. किशोर के माता-पिता ने आरोप लगाया कि एआई कंपनी के लिए उनका मुनाफ़ा ही उनकी प्राथमिकता है. इसके लिए वह किसी की जान से खेलने में भी संकोच नहीं करती. जीपीटी का अपडेटेड मॉडल पिछली बातचीत याद रखता है और मानवीय सहानुभूति जताने का व्यवहार करता है, जो संवेदनशील यूजर्स को नुक़सान पहुंचा सकता है. कंपनी ने अपना वैल्यूएशन तो बढ़ा लिया, लेकिन हमारे बेटे की जान की क़ीमत पर. कल को यही सब उनके किसी स्टूडेंट के साथ भी हो सकता है और इसके लिए उन्हें कोर्ट में भी घसीटा जा सकता है. प्रोफेसर राव भयभीत नहीं थे, पर आहत और आशंकित थे. अपने अध्यापन व्यवसाय में वे कई धमकियों और चेतावनियों का सामना कर चुके थे. कभी छात्र नेताओं से, कभी ब्यूरोक्रेट से, तो कभी मंत्री विधायक आदि से उन्हें उनके हितों के विरुद्ध जाने पर धमकियां मिलती रही हैं. पर उन्होंने हमेशा विद्यार्थियों के हितों को सर्वोपरि रखते हुए निर्णय लिए और शिक्षण संस्था की साख बनाए रखी. उनका परिवार भी इस मुहिम में उनके साथ डटकर खड़ा रहा. “परिवार को व्यक्तिगत हानि पहुंचाने की चेतावनियों से डरकर आप कभी कोई ग़लत समझौता नहीं करेंगे.”

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पत्नी और बच्चे जब-तब ऐसी समझाइश देकर उनका मनोबल बनाए रखते थे. लेकिन यहां तो बात उनके विद्यार्थियों की जान को लेकर आ रही थी, जिनमें उनकी स्वयं की जान बसती थी. भला वे चिंतित कैसे नहीं होते? रचनाजी को भी पति की चिंता का कुछ-कुछ आभास होने लगा था और अनायास ही उन्हें इसका उद्गम स्रोत भी मिल गया. अपना मेल चेक करने के लिए उन्होंने अकाउंट खोलना चाहा, तो प्रोफ़ेसर साहब का मेल अकाउंट खुल गया. वे साइन आउट करना भूल गए थे. और तभी उनके हाथ लग गया वह गुमनाम पत्र. पत्र पढ़ते ही उनके सम्मुख सारा माजरा स्पष्ट हो गया. सीधे सरल पति किस अपराधबोध से गुज़र रहे हैं, सोचकर उनका दिल उनके प्रति सहानुभूति से भर उठा. सपने में भी किसी का अहित नहीं चाहने वाले, विद्यार्थियों को अपनी संतान समान समझनेवाले प्रोफेसर साहब की ऊहापोह वाली मनःस्थिति वे भलीभांति समझ रही थीं. रात को खाना खाते रचनाजी ने पहले कुछ पारिवारिक बातें कीं. पति हां, हूं... करते रहे. जैसी कि उन्हें उम्मीद थी. फिर अचानक उन्होंने टॉपिक बदल दिया. “एआई के आने से मेरे लिए लेक्चर तैयार करना चुटकियों का काम हो गया है, वरना याद है पहले मैं आपको कितना परेशान करती थी! इस विषय से संबंधित पुस्तक लाओ, उस टॉपिक से संबंधित जर्नल चाहिए. थोड़ा आप मदद कर दीजिए.” प्रोफेसर साहब को ख़्याल आया, हां वाकई काफ़ी समय से रचनाजी अपने कॉलेज लेक्चर तैयार करने में उनसे कोई मदद नहीं ले रही हैं. “यहां तक कि स्टूडेंट भी अपने डाउट्स चैटबॉट से ही क्लियर कर लेते हैं. तो हम रोज़ नए टॉपिक्स पढ़ पाते हैं. और यूं देखा जाए, तो किसी चीज़ से फ़ायदा उठाना या नुक़सान भुगतना इंसान के अपने हाथ में है. ख़ूबी और खामी दोनों होती है हर चीज़ में. जो तराशता है, उसे ख़ूबी नज़र आती है और जो तलाशता है उसे खामी नज़र आती है.” तुरूप का इक्का चलाकर रचनाजी बर्तन समेटने लगी थीं. पर कनखियों से उन्होंने गौर किया कि प्रोफेसर साहब की आंखें उम्मीद से चमकने लगी थीं.   “मैं स्टडी में हूं. थोड़ी देर हो जाएगी. स्वतंत्रता दिवस के भाषण को अंतिम रूप देना है.” स्वतंत्रता दिवस के दिन अपने ओजस्वी भाषण से प्रोफेसर साहब ने समां बांध दिया. विशेषतः यूनिवर्सिटी में एआई जैसी नई ब्रांच खुलने की उपलब्धि का वर्णन करते हुए उनका आत्मविश्‍वाास देखने लायक था. “आज का युग तकनीक और विज्ञान का है. जिसमें एआई ने हर पहलू को तीव्रता से बदलना शुरू कर दिया है. एआई चैटबॉट त्वरित संवाद और जानकारी उपलब्ध कराएगा. विद्यार्थी शिक्षा, करियर व रोज़मर्रा के सवालों के आसान और त्वरित जवाब प्रकार अपनी जिज्ञासा शांत कर सकेंगे. स्वास्थ्य सेवाओं में मरीज़ों का इलाज तेज़, सटीक और बेहतर हो पाएगा. कारोबार और बैंकिंग में काग़ज़ी कार्यवाही, लोन प्रोसेसिंग, जोख़िम मूल्यांकन और धोखाधड़ी रोकने जैसे काम सहज हो जाएंगे. सुरक्षा व्यवस्था में सीसी टीवी, फेस रिकॉगनिशन से सुरक्षा मज़बूत बनेगी. अकेलेपन और तनाव झेल रहे लोगों के लिए यह अस्थाई सहारा बनकर उभरेगा. पर हर नए आविष्कार की तरह इसकी भी अपनी सीमाएं हैं. इमोशनल सपोर्ट पाने के लिए हमें इसका प्रयोग सहायक उपकरण की तरह ही करना होगा. इसका अध्ययन करनेवाली आप नई पीढ़ी को इन कमियों को दूर करना होगा. जैसे नाबालिग यूज़र्स के लिए आपको नए पैरेंट्स कंट्रोल्स डेवलप करने होंगे. संकट में फंसे लोगों की मदद के लिए प्रत्यक्ष भागीदारी जैसे क़दम उठाने की सुविधा प्रदान करनी होगी.आईवीएफ भी अब एआई आधारित टूल्स अपनाकर भ्रूण की क्वाालिटी को बेहतर ढंग से समझने में मदद ले रहा है. पहले डॉक्टर अपने अनुभव और जांच के आधार पर तय करते थे कि कौन सा भ्रूण गर्भ में रखने लायक है. एआई यह काम और भी सटीकता से कर रहा है. नाज़ायज फ़ायदा उठाने वाले इसका प्रयोग डिज़ाइनर बेबी बनाने में भी कर सकते हैं, जो नैतिक रूप से सही नहीं होगा. फिर आप लोगों को उसका तोड़ खोजना होगा. यह एक अनवरत प्रक्रिया है.

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विज्ञान हमें रास्ता दिखाता है. लेकिन मंज़िल तक जाने का रास्ता हमें ख़ुद तय करना होता है. सवाल परस्पर दोषारोपण का नहीं, परस्पर सहयोग से सर्वश्रेष्ठ चयन का है. हर नए आविष्कार की तरह एआई भी अभी संदेह के घेरे में है. उस पर आत्महत्या और हत्या के लिए उकसाने के आरोप हैं. मैं स़िर्फ यही कहूंगा कि बहुत सी चीज़ों को समझने के लिए दृष्टि से ज़्यादा दृष्टिकोण की ज़रूरत होती है. मानसिक स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए हमें इस पर निर्भरता कम करनी होगी. देश में अभी एआई में प्रतिभा की किल्लत है. जबकि देश की डिजिटल अर्थव्यवस्था को आकार देने में एआई का रोल बढ़ता जा रहा है. एआई सबसे ज़्यादा वेतन देने वाली नौकरियों वाले क्षेत्र में शामिल हो रहा है.” विद्यार्थियों ने ज़ोर से करतल ध्वनि की. स्पष्ट था वे एआई ब्रांच के छात्र थे. प्रोफेसर साहब ने भाषण जारी रखा. “बेंगलुरु, हैदराबाद, मुंबई जैसे मेट्रो शहरों में तो एआई में नौकरी के प्रीमियम अवसर हैं ही. पुणे, गुरुग्राम, जयपुर, इंदौर जैसे छोटे शहरों में भी एआई, क्लाउड और साइबर सुरक्षा में नौकरी के अवसर बढ़ रहे हैं. बैंकिंग, हेल्थ केयर जैसे नॉन टेक सेक्टर भी टेक वालों को भर्ती कर रहे हैं. यही नहीं इन क्षेत्रों में जेंडर गैप भी घट रहा है. इसलिए अधिक से अधिक लड़कियों को भी इस फील्ड में उतरना चाहिए.” इस बार करतल ध्वनि लड़कियों के समूह से आई. “लगभग 57% कंपनियां सॉफ्ट स्किल्स को एक ज़रूरी योग्यता मान रही हैं. इसका समाज के लिए लाभकारी होना इस बात पर निर्भर करता है कि हम इसे ज़िम्मेदारी से अपनाएं. विशेषतः शिक्षण संस्थानों, शासकीय निकायों और उद्यमों को चाहिए कि वे एआई के ज़िम्मेदार उपयोग के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश और नियम बनाएं. तकनीक का प्रसार अब रोका नहीं जा सकता. लेकिन ज़िम्मेदार, सजग और नैतिक समाज बनाकर ही हम इसका पूरा लाभ उठा सकते हैं. यही आज की सबसे बड़ी चुनौती और उपलब्धि है!” मंत्रीजी सहित प्रथम पंक्ति में बैठे सभी मेहमान, जिनमें रचनाजी भी शामिल थीं, ने ज़ोरदार और निरंतर करतल ध्वनि की. फ़र्क़ था तो बस इतना कि उनकी आंखें ख़ुशी से नम थीं. 

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