"... मैं जला-भुना इंसान हूं. घर की लक्ष्मी पर हाथ नहीं उठाना चाहिए, इतनी समझ तो मुझ में भी है. लेकिन हालात बिगड़ जाएं तो संस्कार उड़न छू हो जाते हैं. फिर भी मैं अपनी ग़लती मानता हूं..."
कमरे का माहौल भारी था. अपने फ्लैट में हितेन अपराधी की तरह सिर झुकाए बैठा था. उसके सामने सोफे पर पैंसठ साल के देवशंकर एक सख्त पुलिस अधिकारी की तरह बैठे थे. उनके पास ही उनकी भांजी सरिता बैठ कर आंसू भरी आंखों से अपने पति हितेन को ग़ुस्से से ताक रही थी.
“ग़लती की है तो प्यार से स्वीकार कर लो.” देवशंकर की आवाज़ में हल्की मुलायमता घुल गई थी. हितेन की ओर देखते हुए उन्होंने समझाया, “हम इंसान हैं, भगवान नहीं. अगर ग़ुस्से में छोटी-बड़ी ग़लतियां हो जाती है तो ईमानदारी से स्वीकार कर लेना चाहिए कि 'हां भई, मुझसे ग़लती हो गई है, ‘आई एम सारी’... बस, इतना ही कह देने अगर बात ख़त्म हो जाती है तो इतना कह देने में क्या बुराई है. मन में किसी तरह का दुख नहीं रह जाता और सामने वाला भी ख़ुश हो जाता है. मेरी बात ग़लत है क्या?”
इतना कहकर देवशंकर पल भर रुके. उन्होंने देखा कि उनकी बातों का हितेन पर क्या असर पड़ा है. अपने मामा की बातें ध्यान से सुनने के साथ-साथ सरिता अपना सिर भी हिला रही थी. पर जिससे यह सब कहा जा रहा था, वह हितेन चुपचाप बैठा था. उसने कोई जवाब नहीं दिया था, इसलिए देवशंकर मन ही मन उलझ गए. उन्होंने थोड़ी तेज आवाज़ में कहा, “सुन रहे हो न हितेन कुमार? तुम्ही से ही कह रहा हूं. मैं तुम से लड़ने नहीं आया. तुम्हारा मामा ससुर हूं. मेरी भांजी रोते-रोते मेरे घर आई और तुम्हारी शिकायत की तो तुम्हें इतना कहने का तो मेरा हक़ बनता ही है ना?”
हितेन ने सिर उठाकर देवशंकर की ओर देखा. फिर धीमे से बोला, “मामाजी, आपका अधिकार सिर-आंखों पर, लेकिन आपकी भांजी सरिता का दिमाग़ ख़राब हो गया है, इसलिए बात-बात पर रोना इसकी आदत बन गई है. यह जैसी एक्टिंग कर लेती है, वह कला मुझ में नहीं है. मेरे मां-पिता के साथ इसने क्या किया है, यह बात इसी से पूछ लीजिए. इसने जो घटिया जवाब दिया है, उसे सुनकर आप मेरी जगह ख़ुद को रखकर सीने पर हाथ रखकर सच-सच बताइए कि उस हालत में आप होते तो क्या करते, क्या आपका हाथ न उठ जाता?”
अब देवशंकर की नज़र सरिता के चेहरे पर थी. उन्होंने कहा, “यह हितेन कुमार क्या कह रहे हैं? तुम ने अपने सास-ससुर को कुछ कहा था क्या? जो सच हो, वही बताना.”
सरिता के चेहरे पर ग़ुस्से की लाली दौड़ गई थी. ग़ुस्से में वह बोली, “इस आदमी ने मुझसे शादी नहीं की, बल्कि अपने माता-पिता के लिए एक नौकरानी खझरीद कर लाया है. आपको पता नहीं मामा, मेरे मां-पापा ने आपको या किसी रिश्तेदार को यह नहीं बताया कि इनकी मेरे साथ यह तीसरी शादी है. इनकी पहली दोनों पत्नियां सास-ससुर के ज़ुल्म से त्रस्त हो कर ही भाग गई थीं.”
आंखों में आंसू भरकर सरिता ने आगे कहा, “मेरी क़िस्मत फूटी थी कि मेरा पति मर गया. विधवा हो कर मायके वापस आ गई. फिर मेरे मां–पापा को मेरी दो रोटियां भारी पड़ने लगीं तो एक साल बाद इन साहब को ढूंढ़ निकाला और इनके साथ ब्याह कर मुझे घर से रवाना कर दिया."
वह रोती हुई आगे बोली, “अपने मां-पिता को मैं क्या कहूं? इन से विवाह करने से पहले इनकी दोनों बीवियों को इनसे क्या दिक्क़त थी, यह पता ही नहीं किया. बस, मुझसे छुटकारा पाने के लिए मुझे बलि की बकरी बना दिया. इनके घर आई तो कभी एक पल भी सुख नहीं मिला. चौबीसों घंटे की मजदूरी के बदले में दो निवाले मिलते हैं, यही मेरी ज़िंदगी है."
यह भी पढ़ें: ग़ुस्सैल और चिड़चिड़े पार्टनर को कैसे करें डील? (How To Deal With An Angry And Irritable Partner?)
हैरानी से स्तब्ध देवशंकर दोनों को बारी-बारी देखते रहे. सरिता की बात ख़त्म होते ही हितेन मैदान में उतर आया. उसने कहा, “मामाजी, इसमें मेरा कोई दोष नहीं है. आपके बहन-बहनोई से मैंने कुछ भी नहीं छुपाया था. मैंने उनसे साफ़-साफ़ कहा था कि मेरे पहले दोनों तलाक़ मेरे माता-पिता की ही वजह से ही हुए थे. यह भी कहा था कि अगर आपकी बेटी मेरे मां-पिता की सेवा करेगी, तभी मैं उससे विवाह करूंगा. मेरी इस बात पर भी उन्होंने सहमति प्रकट की थी."
हितेन ने मोबाइल निकाल कर आगे कहा, “आपको मेरी बात पर विश्वास न हो तो अभी फोन कर के उनसे पूछ लीजिए कि ये सारी बातें हुई थीं या नहीं?"
देवशंकर अभी भी स्तब्ध थे. सरिता सिर झुकाए बैठी थी. हितेन आत्मविश्वास से बोल रहा था, “मामाजी, मुझे अपने मां-पिता से थोड़ा अधिक लगाव है, मैं यह स्वीकार करता हूं. लेकिन मेरे स्वभाव में कोई कमी नहीं है. मेरे जो दो तलाक़ हुए हैं, उसकी पूरी कहानी आपके बहन-बहनोई को बताई थी, मैंने उनसे कुछ भी नहीं छुपाया था.”
अतीत याद करते हुए उसका स्वर कांप रहा था. उसने बताया कि कैसे उसके पिता का एक्सीडेंट हुआ था, जिसमें एक पैर कट गया था. उसके बाद वह बहरे हो गए. मां बीमार रहने लगी. पढ़ाई छोड़कर नौकरी करनी पड़ी. मेहनत से कुरियर कंपनी में मैनेजर तक पहुंचा.
पहली शादी दीपाली के साथ हुई. उसने कांपती आवाज़ में कहा, "मेरे मां-पिता को संभालना दीपाली के लिए मुश्किल हो गया. वह उन्हें बात-बात पर डांटती, समय से खाना नहीं देती थी. पिता ने एक दिन उससे खिचड़ी में घी देने को कहा तो वह भड़क गई. पिता को ‘लंगड़ा’ कह कर अपमानित किया. मां ने रोका तो उन पर हाथ उठा दिया.”
इतना कहते-कहते हितेन की आंखें नम हो गई थीं. हथेली से आंखें पोछते हुए उसने आगे कहा, “मैं घर आया तो महाभारत चल रहा था. मां ने सारी बात बताई. झगड़ा बढ़ गया. उसने गालियां दीं तो मेरा हाथ उठ गया. नाराज़ हो कर वह मायके चली गई और मेरे ऊपर मुक़दमा कर दिया. आर्थिक, मानसिक यातना और अंत में तलाक.
इसके बाद दूसरी शादी अलका से की, जो मानसिक रोग से पीड़ित निकली. उसके दौरे, हमला... कई बार पड़ोसियों ने बचाया. अंत में उससे भी पीछा छुड़ाने में मुझे कंगाल होना पड़ा. तीसरी बार शादी का मन नहीं था, लेकिन मां-पिता के लिए विज्ञापन देना पड़ा कि उनकी सेवा कर सके, ऐसी ही लड़की चाहिए."
यह भी पढ़ें: क्या ख़तरे में है आपका रिश्ता? (Is Your Relationship In Trouble?)
अतीत का बोझ याद करके वह कुछ पल चुप रहा. फिर आहिस्ता से बोला, “मामाजी, यही पूरा क़िस्सा आपके बहन-बहनोई को बताया था. उन्होंने विश्वास दिलाया था कि सरिता सेवा में पीछे नहीं हटेगी. उस वक़्त सरिता गांव में थी. सिर्फ़ फोटो देखकर मैंने हां कर दी थी."
अपनी पूरी व्यथा सुनाकर हितेन ने दोनों हाथों से सिर थाम लिया. थोड़ी देर चुप रहने के बाद वह बोला, “मुझे उम्मीद नहीं थी कि सरिता ऐसा करेगी. मैं मुंबई गया था. मां-पिता को बेसहारा छोड़ वह आराम से मायके चली गई. मैं घर वापस आया तो डायबिटीज़ वाली मां भूख से बेहोशी की कगार पर पहुंच चुकी थी और बेबस पिता भूख से रो रहे थे. तभी यह महारानी घर में दाख़िल हुईं. दर्द में तड़पते मां-पिता को देखकर मेरे होश उड़ गए. ऊपर से यह उल्टा-सीधा बोलने लगीं तो मेरा हाथ उठ गया."
फिर गंभीर होकर बोला, “मामाजी, मैं जला-भुना इंसान हूं. घर की लक्ष्मी पर हाथ नहीं उठाना चाहिए, इतनी समझ तो मुझ में भी है. लेकिन हालात बिगड़ जाएं तो संस्कार उड़न छू हो जाते हैं. फिर भी मैं अपनी ग़लती मानता हूं. सरिता अगर शांति से रहकर मेरे माता-पिता की सेवा करने को तैयार हो तो मैं हाथ जोड़कर माफ़ी मांगने को तैयार हूं. आप उससे पूछ लीजिए कि वह इस बात के लिए राजी है या नहीं?”
कमरे में फिर भारी सन्नाटा भर गया.
तीनों देवशंकर, हितेन, सरिता दुविधा में थे. मान लो अभी समझौता हो भी जाए तो भी कल क्या होगा, इसकी किसी को कोई गारंटी नहीं थी
- वीरेंद्र बहादुर सिंह
अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES
Photo Courtesy: Freepik
