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भारतीय संस्कृति और परंपराओं के संरक्षण में महिलाओं की भूमिका (Role of women in preservation of Indian culture and traditions)

भारत अपनी प्राचीन और समृद्ध संस्कृति के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. यहां की विविध भाषाएं, परंपराएं, कला, साहित्य, संगीत, नृत्य, भोजन, त्योहार और धार्मिक रीति-रिवाज़ हमारी पहचान का अभिन्न हिस्सा हैं. यह सब केवल किताबों और इतिहास में ही नहीं, बल्कि जीवनशैली, आचार-विचार और व्यवहार में भी झलकता है.

भारतीय संस्कृति की उपरोक्त अनमोल धरोहर को जीवित रखने और अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का कार्य सबसे अधिक महिलाओं ने किया है. मां, बहन, पत्नी और बेटी के रूप में महिलाएं घर-परिवार से लेकर समाज और राष्ट्र तक संस्कृति की संरक्षिका रही हैं.

परिवार की परंपराओं की संरक्षिका

कहा जाता है कि परिवार संस्कृति की पहली पाठशाला है और महिला उसकी प्रथम अध्यापिका. भारतीय घरों में यह ज़िम्मेदारी प्रायः महिलाओं के हाथों में होती है. चाहे दीपावली पर घर सजाना हो, होली पर पकवान बनाना हो या जन्मोत्सव और विवाह जैसी रस्में निभानी हों- महिलाएं ही इन परंपराओं को जीवित रखती हैं. यह महिलाएं ही हैं, जो छोटी-छोटी बातों से बच्चों में संस्कार और परंपरा का बीजारोपण करती हैं.

भाषा और संस्कारों का संचार

बच्चा सबसे पहले अपनी मां से बोलना सीखता है. मातृभाषा, लोकगीत, कहानियां, लोरियां और लोककथाएं महिलाओं के माध्यम से ही पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही हैं. इसके साथ ही महिलाएं बच्चों को नैतिक मूल्यों जैसे सत्य, अहिंसा, करुणा, बड़ों का आदर और छोटों पर स्नेह करना भी सिखाती हैं. यह शिक्षा ही उन्हें भारतीय संस्कृति से जोड़े रखती है और उनकी पहचान को वैश्विक स्तर पर विशिष्ट बनाती है.

कला और हस्तशिल्प का संरक्षण

भारत की संस्कृति का एक बड़ा आधार उसकी लोककला और हस्तशिल्प है. रंगोली, मेहंदी, कढ़ाई, बुनाई, कठपुतली नृत्य, लोकसंगीत, भरतनाट्यम, कथक, ओडिसी और अन्य अनेक नृत्यकलाएं महिलाओं की सक्रिय भागीदारी से आज तक जीवित हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं आज भी पारंपरिक हस्तशिल्प और बुनाई के माध्यम से न केवल अपनी संस्कृति को संजोए हुए हैं, बल्कि आर्थिक आत्मनिर्भरता भी प्राप्त कर रही हैं.

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त्योहार और धार्मिक परंपराएं

भारतीय संस्कृति का सबसे रंगीन पहलू इसके त्योहार और धार्मिक आयोजन हैं. तीज, करवा चौथ, चैत्र नवरात्रि, छठ पूजा, रक्षाबंधन, पोंगल, ओणम, गणेश चतुर्थी और दीपावली जैसे पर्वों में महिलाओं की भूमिका सबसे प्रमुख होती है. वे न केवल घर को सजाती हैं, बल्कि व्रत, पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठानों का पालन भी करती हैं. इन पर्वों से परिवार और समाज में एकता, भाईचारा और आध्यात्मिकता की भावना प्रबल होती है.

समाज और राष्ट्र में योगदान

भारत के इतिहास में अनेक महिलाएं ऐसी रही हैं, जिन्होंने संस्कृति और परंपरा को संरक्षित रखते हुए समाज को नई दिशा दी. रानी लक्ष्मीबाई ने साहस और शौर्य की मिसाल कायम की. सरोजिनी नायडू को भारत कोकिला कहा गया, क्योंकि उन्होंने भारतीय संस्कृति और राष्ट्रीयता को कविताओं और भाषणों के माध्यम से जीवित रखा. कस्तूरबा गांधी ने महात्मा गांधी के साथ मिलकर भारतीय समाज में नैतिकता और स्वदेशी की भावना को प्रबल किया. इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि महिलाएं न केवल परिवार, बल्कि राष्ट्र की सांस्कृतिक धरोहर की भी संरक्षिका रही हैं.

आधुनिकता और परंपरा का संतुलन

आज का समय वैश्वीकरण और तकनीकी प्रगति का है. आधुनिक शिक्षा और रोज़गार के अवसरों ने महिलाओं को नई ऊंचाइयां दी हैं. फिर भी भारतीय महिलाएं अपनी जड़ों से जुड़ी हुई हैं. वे यह साबित कर रही हैं कि आधुनिकता अपनाने का अर्थ परंपराओं को त्यागना नहीं है. आज की महिलाएं घर और बाहर दोनों ज़िम्मेदारियां निभाते हुए भी त्योहार मनाना, परंपरागत भोजन बनाना, बच्चों को कहानियां सुनाना और धार्मिक आयोजनों में भाग लेना नहीं भूलतीं. इस प्रकार वे आधुनिकता और परंपरा के बीच संतुलन बनाकर चल रही हैं.

प्रवासी भारतीय समाज में महिलाओं की भूमिका

विदेशों में बसे भारतीयों के बीच भी महिलाएं संस्कृति की मुख्य धुरी बनी हुई हैं. अमेरिका, कनाडा, यूरोप या खाड़ी देशों में रह रही भारतीय महिलाएं वहां भी दीपावली, होली और नवरात्रि जैसे पर्व मनाती हैं. वे बच्चों को हिंदी और अन्य भारतीय भाषाएं सिखाती हैं तथा भारतीय नृत्य और संगीत की कक्षाएं चलाती हैं. इस प्रकार वे भारत की सांस्कृतिक पहचान को वैश्विक स्तर पर जीवित रखती हैं.

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चुनौतियां और भविष्य

आज की महिलाएं संस्कृति के संरक्षण के साथ-साथ कई चुनौतियों का सामना कर रही हैं. व्यस्त जीवनशैली, पाश्चात्य प्रभाव, पारिवारिक विखंडन और आधुनिक तकनीक के अति-प्रयोग से परंपराओं का महत्व धीरे-धीरे कम हो रहा है. फिर भी महिलाएं अपने प्रयासों से यह साबित कर रही हैं कि यदि इच्छाशक्ति मज़बूत हो तो कोई भी परंपरा लुप्त नहीं हो सकती. स्कूल, कॉलेज और सामाजिक संस्थाओं में भी महिलाएं सक्रिय रूप से सांस्कृतिक कार्यक्रमों का संचालन कर रही हैं.

भारतीय संस्कृति और परंपराओं का संरक्षण महिलाओं की सबसे बड़ी देन है. वे परिवार को संस्कार देती हैं, कला और परंपराओं को जीवित रखती हैं, त्योहारों और धार्मिक अनुष्ठानों को निभाती हैं और समाज व राष्ट्र को सांस्कृतिक एकता के सूत्र में बांधती हैं. बदलते समय में भी महिलाएं यह संतुलन बख़ूबी बनाए हुए हैं. वास्तव में, महिलाओं को सशक्त बनाना केवल उनके अधिकारों की रक्षा करना नहीं है, बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपराओं को सुरक्षित करना भी है. इसलिए कहा जा सकता है कि महिलाएं ही भारतीय संस्कृति की सच्ची संरक्षिका हैं.

- एडवोकेट आशीष कुमार

Photo Courtesy: Freepik

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