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कहानी- चरित्रहीन 4 (Story Series- Charitrheen 4)

घर में क़दम रखते ही उसकी नज़र यामिनी पर पड़ी तो वह चौंकते हुए बोला, “यामिनी तुम...” दोनों को ऐसे हैरान होते देख मोहनजी बोले, “कब से चल रहा है यह सब?” पीयूष बोला, “पापा, ऐसा कुछ नहीं है, लेकिन आप इसे कैसे जानते हैं.” “बेटा, जब मैं ब्लैक एंड व्हाइट के ज़माने में तुम्हारी मां को ढूंढ़ सकता हूं, तो फेसबुक और सोशल नेटवर्किंग के ज़माने में अपनी बहू को क्यों नहीं?” अब बात साफ़ हो गई थी कि मोहनजी ने फेसबुक खंगालकर बेटे की पसंद जान ली थी और अब यामिनी को भी मोहनजी का यह राज़ समझ में आ रहा था. उसमें साइकिल पर पैर टेककर खड़े आदमी को देख यामिनी ज़ोर से हंसी, “सर, ये आप हैं?” मोहनजी ने झट से एलबम छीनते हुए पत्नी से कहा, “अब बस, इसे और मत दिखाना, वरना कल ऑफ़िस में मेरी इमेज ख़राब कर देगी.” मिस के. वाई. पति-पत्नी की ट्यूनिंग और अपनत्व देख हैरान थी. एक बात शुरू करता तो दूसरा पूरी कर देता. बातों-बातों में काफ़ी देर हो गई तभी घर से मां का फ़ोन आ गया, “यामिनी, बड़ी देर कर दी. कहां है?” “मां, मैं अपने सर की फैमिली के साथ हूं और लौटकर बताती हूं.” “हूं... क्या बताकर आई थी मां को कि फ्रेंड के घर जा रही हूं?” मोहनजी ने पूछा. “आपको कैसे पता?” “क्यों भाई हम क्या तुम्हारी उम्र के नहीं थे?” “देखो बेटा, किसी के बारे में भी ग़लतफ़हमी हो सकती है. हमको भी इस उम्र में ख़ुश और ऐक्टिव रहने का हक़ है. अगर हम ऑफ़िस में तनाव में काम करेंगे तो बेस्ट परफॉर्मेंस नहीं दे पाएंगे. इसीलिए मैं ऑफ़िस का माहौल तनावरहित रखता हूं. और रही बात मेरी और मेरी पत्नी की, तो आज मैं जिस मुक़ाम पर हूं, इनकी ही बदौलत हूं. इनके बिना मैं एक क़दम भी नहीं चल सकता. आज की युवापीढ़ी बहुत जल्दी ग़लतफ़हमी पाल लेती है. पति-पत्नी का रिश्ता बहुत गहरा व प्यार भरा होता है. हमको अपनी ज़िम्मेदारी, उम्र, मान-मर्यादा और पद-प्रतिष्ठा का पूरा ख़याल है. यदि हम कोई भी ग़लत क़दम उठाएंगे तो एक-दूसरे को क्या मुंह दिखाएंगे और हमारी एक छोटी-सी ग़लती भी हमारे पूरे परिवार को बिखेर देगी.” मिस के. वाई. की झुकी हुई आंखें देख मोहनजी आगे बोले, “बेटा, आदमी को सफलता स़िर्फ उसके काम और मेहनत से ही मिलती है.” तभी मिस के. वाई. की नज़र एक ग्रुप फ़ोटो पर पड़ी? “सर, ये बीच में कौन है?” मिसेज़ मोहन बोलीं, “हमारा बेटा पीयूष.” अब मोहनजी हंसे, “वही पी.सी.” मिस के. वाई. को अब एहसास हुआ कि बात कुछ और ही है, अभी तक उसने यह तो बताया ही नहीं था कि उसका पूरा नाम क्या है और घर आते ही मिसेज़ मोहन ने उसे के. वाई. नहीं यामिनी कहा था. मोहनजी ने पूछा, “साहबज़ादे हैं कहां?” “आता ही होगा, आज सुबह-सुबह ही जिम चला गया. तुम्हारी ही तरह उसने भी कई शौक़ पाल रखे हैं.” मिसेज़ मोहन बोली. तभी मिस के. वाई. ने पूछा, “सर, आप यामिनी और पी. सी. को कैसे जानते हैं?” मोहनजी शरारती अंदाज़ में बोले, “तुम यामिनी ही हो न, इसमें तो कोई शक नहीं है और रहा पीयूष, तो वह मेरा बेटा है पी.सी. कुमार, सन ऑफ मोहन कुमार और तुम दोनों एक-दूसरे को पसंद करते हो.” के. वाई. को हैरान होते देख मोहनजी बोले, “देखो बेटा, हम तुम्हारे बाप हैं और सवाल मैं पूछूंगा, तुम बस जवाब देना.” तभी देखा तो सामने से पीयूष चला आ रहा था. घर में क़दम रखते ही उसकी नज़र यामिनी पर पड़ी तो वह चौंकते हुए बोला, “यामिनी तुम...” दोनों को ऐसे हैरान होते देख मोहनजी बोले, “कब से चल रहा है यह सब?” पीयूष बोला, “पापा, ऐसा कुछ नहीं है, लेकिन आप इसे कैसे जानते हैं.” “बेटा, जब मैं ब्लैक एंड व्हाइट के ज़माने में तुम्हारी मां को ढूंढ़ सकता हूं, तो फेसबुक और सोशल नेटवर्किंग के ज़माने में अपनी बहू को क्यों नहीं?” अब बात साफ़ हो गई थी कि मोहनजी ने फेसबुक खंगालकर बेटे की पसंद जान ली थी और अब यामिनी को भी मोहनजी का यह राज़ समझ में आ रहा था. मोहनजी ने पत्नी से कहा, “यदि तुम्हें यामिनी पसंद हो तो इनके घर चलकर रिश्ता पक्का कर देते हैं. तुमको कोई ऐतराज तो नहीं है न.” पीयूष शरमा-सा गया, “पापा, यू आर सो स्वीट.” मोहनजी बोले, “बेटा, अब मुझे स्वीट मत बोल, नहीं तो बहू नाराज़ हो जाएगी.” “अंकल प्लीज़.” अब पहली बार यामिनी को मोहनजी सर नहीं, घर के सदस्य की तरह लगे थे. यामिनी ने मिस्टर और मिसेज़ मोहन के पैर छुए और घर चली आई. अगले दिन जब यामिनी ऑफ़िस पहुंची तोे देखा पार्टी की तैयारियां चल रही हैं और सब उसे देखकर मुस्कुरा रहे हैं. उसे समझ में नहीं आ रहा था. आज वह लेट भी नहीं थी. कोई ऑफ़िशियल प्रोग्राम भी नहीं था. उसने स्टाफ़ से पूछा, “आज कौन लेट हो गया?” वह मुस्कुराया बोला, “मैडम, आज अपने साहब ही लेट हैं.” उसने देखा सच में मोहनजी केबिन में नहीं थे. ऐसा पहली बार था कि मोहनजी के लेट होने पर स्टाफ़ स्नैक्स पार्टी दे रहा था. इससे पहले कि वह कुछ पूछती, देखा तो सामने से मोहनजी आ रहे थे. उनके ऑफ़िस में क़दम रखते ही पूरा स्टाफ़ एक साथ बोला, “गुड मॉर्निंग सर.” फिर मिसेज़ सरोज बोलीं, “सर, आज कौन फंसा जाल में?” वे मुस्कुराए, “इस बार तो मैं ही बकरा बन गया.” यह सुन पूरा स्टाफ़ हंसने लगा. तभी मिसेज़ शांति बोलीं, “सर मिस के. वाई. तो आज यामिनी बन गई, पर इनका कपल कौन बना, यही जिज्ञासा है. आज जब तोता बाबू ने बताया कि सर लेट आएंगे और स्नैक्स पार्टी रखनी है, तभी हम समझ गए थे कि मिस के. वाई. का शिकार हो गया है.” यामिनी चौंकी, “तो क्या ऑफ़िस में यह बात सभी को पता थी.” सभी कॉन्फ्रेंस टेबल के इर्द-गिर्द बैठे स्नैक्स ले रहे थे. तभी मिसेज़ आरती बोलीं, “सर, मुझे याद है आपने कैसे मुझे और के. के. को मिलाया था.” तभी मिसेज़ सरोज बोलीं, “सर, अगर आप न होते तो मेरी और मिहिर की शादी तो इस जन्म में हो ही नहीं सकती थी.” मोहनजी मुस्कुराए, “तुम लोग भी मज़ाक करते हो. शादी के जोड़े तो ऊपर से बनकर आते हैं, मैं तो बस उन्हें मिलाता हूं.” अब यामिनी को समझ में आया कि मोहनजी कितने आदरणीय हैं. उसकी निगाह में अपने होनेवाले ससुर के लिए श्रद्धा और बढ़ गई. उसे अफ़सोस हो रहा था कि कैसे अपनी ग़लत सोच के कारण एक भले आदमी को उसने चरित्रहीन समझ लिया था. तभी तोता बाबू बोले, “सर, मिस के. वाई. के होनेवाले पति का परिचय तो कराइए.” इस बार मोहनजी गंभीर थे, “देखिए, आज से मिस के. वाई. यानी यामिनी हमारी होनेवाली बहू हैं और इस बारे में कोई मज़ाक नहीं.” सभी चौंके, “क्या सर?” मोहनजी ने सिर झुकाया और बोले, “आज की पार्टी का ख़र्च मेरे पर्सनल अकाउंट में लिखना. आज मैं बकरा बन गया हूं.” सभी पार्टी का आनंद ले रहे थे और मोहनजी की बातों पर ठहाका भी लगा रहे थे. दस बजते ही मोहनजी घड़ी देखतेे हुए बोले, “प्लीज़ आप लोग भी फटाफट अपनी-अपनी टेबल पर पहुंचिए, मैं आज का टारगेट मेल करता हूं.” टेबल से उठते हुए आज यामिनी को महसूस हो रहा था कि एक सच्चे आदमी को समझने में उसने कितनी बड़ी भूल की.

मुरली मनोहर श्रीवास्तव

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