गड़ा हुआ सीने पे कब से पत्थर तीन तलाक़ का
क्यों नहीं गिरने देती तुम, पाखंड निरे नकाब का
बुरखे के भीतर से दो आंखें करती रही सवाल
बेमोल हो गया है जीवन सारा, कर लो अब ख़्याल
जिसने छीन ली आज़ादी तेरी, तुझको औरत जान
क्यों करती हो ऐसे पाखंडी मौलवियों का मान
आगे आओ बोलो जूझो, कर लो ख़ुद को आज़ाद
तुम भी तो भारतवासी हो, छेड़ो गहन गरजता नाद
गूंज उठे सारे जग में, मांगों हर औरत का मान
सबक सीखा दो उनको, भूले तीन तलाक़ का मान...
कंचन देवड़ा
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