आज के आधुनिक और अर्थप्रधान युग में रिश्ते रिस रिस कर घिस चुके हैं और सस्ते इलेक्ट्रॉनिक सामान या बॉल पेन की तरह यूज़ एंड थ्रो की स्थिति में आ रहे हैं. युवाओं को ऐसे भ्रमित किया गया है कि विवाह या आजीवन साथ निभाना मानो पिछड़ेपन की निशानी हो गई हो. बिन फेरे हम तेरे का फैशन आम हो गया है.

रिश्ते अब रिसते-रिसते घिस गए हैं. ये टिकाऊ या दीर्घायु नहीं, बस काम चलाऊ रह गए हैं. एक वक़्त था, जब रिश्ते प्रगाढ़, दीर्घ और प्रेम से सिक्त हुआ करते थे. मैत्री हो या प्रेम या फिर स्त्री और पुरुष के बीच का बंधन, रिश्ते ताउम्र या मरते दम तक, यहां तक कि सात जन्मों तक भी निभाने की बात कही जाती थी. विवाह यानी जन्मों का बंधन. पति-पत्नी एक-दूसरे के जीवनसाथी या लाइफ पार्टनर कहलाते थे. पत्नी अर्धांगिनी और पति को प्रेमपूर्वक स्वामी कहा जाता था. आज भी बहुतसंख्य हिन्दू स्त्रियां वटसावित्री व्रत या करवा चौथ जैसे व्रत करते समय सदा सुहागन रहने की कामना करती हैं.
अब लिव इन रिलेशनशिप, वन नाइट स्टैंड, नैनोशिप, सिचुएशनशिप, प्लेजर मैरिज जैसे रिश्ते बनने लगे हैं. यानी जब तक एक-दूसरे में आकर्षण हो, साथ रहो. एक दूसरे का आर्थिक, मानसिक और शारीरिक इस्तेमाल करो और जब मन भर जाए या ज़रूरत महसूस ना हो या कोई दूसरा मिल जाए, तो उसे अलविदा कह कर तुम तुम्हारे रास्ते, मैं अपने रास्ते.
नैनोशिप
नैनो चिप के जमाने में रिश्तों का भी नया वर्जन आ चुका है- नैनोशिप. यह जेन जी की दुनिया का टर्म है. गणित की भाषा में किसी भी चीज का एक अरबवाँ भाग यानी बेहद सूक्ष्म हिस्सा है नैनो. नैनोशिप के रिश्ते बस इतनी ही अवधि के होते हैं कि मन मुटाव, वाद विवाद और मतभेद का कोई चांस ही नहीं. ये कब शुरू होते हैं और कब ख़त्म, यह खुद उनको भी नहीं पता चलता जो ऐसे रिलेशनशिप में रहते हैं. ऐसे रिश्तों में एक-दूसरे को समझने या गहराई से लेने की ना ज़रूरत है ना कभी उम्मीद की जाती है. ऐसे रिश्ते ज़्यादातर सोशल मीडिया और डेटिंग ऐप्स के माध्यम से होते हैं. रोमांस के कुछ पल ही आनंद देने के लिए काफी हैं, यह मानना है ऐसे रिलेशनशिप में विश्वास करने वालों का. फर्ज करें कि आप किसी कैफे में बैठे हैं. वहां कोई अच्छा लग गया और आंखों ही आंखों में बातें हो गईर्ं. आप दोनों एक-दूसरे के पास आए और मुलाकात हो गई. थोड़ी-सी प्यार भरी बात भी हो गई. अच्छा लगा तो मिलते रहे वरना चैप्टर क्लोज़. एक-दूसरे से कोई उम्मीद नहीं, बंधन नहीं, दबाव नहीं.
लिव इन रिलेशनशिप
ज़्यादातर युवा अपनी पढ़ाई या जॉब के लिए अपने शहर से दूर किसी टेक्नोसिटी या कॉर्पोरेट जंक्शन सिटी में पीजी, हॉस्टल या किराए के फ्लैट में रहते हैं. ये अक्सर काफी अकेलापन महसूस करते हैं. कई बार एक लड़का या लड़की अपनी ही ऑफिस या फील्ड के दूसरे लड़के या लड़की के संपर्क में आ जाते हैं और कंपैटिबिलिटी चेक करने के लिए या फ्लैट का मोटा किराया शेयर करने के लिए साथ-साथ रहने लगते हैं. दोनों रहते पति-पत्नी की तरह हैं, मगर बिना ब्याह के. कोई बंधन नहीं, किसी प्रकार के कसमे वादे नहीं. ये ख़र्च भी फ्रेंड्स की तरह बांट लेते हैं. जब तक मन होता है, दोनों साथ रहते हैं. जब एक-दूसरे से बनती नहीं या मन भर जाता है या लगता है कि वे एक-दूसरे के लिए नहीं बने हैं, तो अपने रास्ते और पार्टनर बदल लेते हैं.
सिचुएशनशिप
2011 में जस्टिन टिंबरलेक और मिला कुनिस की फिल्म फ्रेंड्स विद बेनिफिट्स आई थी. इस फिल्म ने युवाओं को म्युचुअल रिलेशनशिप का एक नया ट्रेंड दे दिया. उसी वर्ष अमरीकी अभिनेता एश्टन कुचर और अभिनेत्री नेटाली पोर्टमैन ने भी अपनी फिल्म नो स्टिंग्स अटैच्ड से मिलेनियल्स को नॉन कमिटल (कोई वादा या समर्पण नहीं) रिलेशनशिप का फंडा दे दिया. यानी बिना बंधन कपल्स की केमिस्ट्री. इमोशनल हुए बिना, ज़िम्मेदारियों और जवाबदेही का बोझ ढोए बिना प्यार मोहब्बत करना, साथ-साथ घूमना और मौज मस्ती करना. 2019 में रियलिटी शो लव आईलैंड में अलाना मॉरिसन ने अपनी डेटिंग के बारे में बताते हुए जब सिचुएशनशिप शब्द का इस्तेमाल किया, तो यह खासा पॉपुलर हो गया. ज़ाहिर सी बात है, यह ऐसी रिलेशनशिप है जिसमें सब कुछ सिचुएशन पर निर्भर करता है. अपनी मेंटल फिजिकल ज़रूरत के अनुसार साथ-साथ टाइम बिताया जा सकता है. यह स़िर्फ एक बार के लिए भी हो सकता है और कई बार के लिए भी और बार-बार अलग-अलग लोगों के साथ भी सिचुएशनशिप में रहा जा सकता है.
प्लेजर मैरिज
यह कहने को तो शादी होती है, मगर यह शादी बस 5-10 या 15 दिन की होती है और वो भी स़िर्फ आर्थिक लाभ के लिए. जी हां, इंडोनेशिया में स़िर्फ 15 दिन के लिए आपको पत्नी मिल सकती है. दिलचस्प बात है कि खुद लड़की को भी मालूम होता है कि यह शादी बस कुछ ही दिन की है, लेकिन फिर भी वो इसमें ख़ुशी से आगे बढ़ती है. इस शादी को ‘मुताह निकाह’ कहा जाता है और ‘प्लेजर मैरिज’ भी. यह इंडोनेशिया के पुंकाक क्षेत्र में पिछले कुछ दिनों से काफी प्रचलित है. मुताह निकाह एक पुरानी इस्लामी परंपरा है, जो खासकर शिया मुसलमानों में प्रचलित रही है. इस परंपरा में लड़का और लड़की एक तय समय के लिए आपसी सहमति से शादी करते हैं. समय पूरा होते ही शादी भी खत्म हो जाती है. कोई तकरार या कानूनी पचड़ा नहीं होता. इस परंपरा की शुरुआत काफ़ी पहले अरब देशों में हुई थी. उस समय पुरुष अक्सर लंबे समय के लिए बाहर रहते थे. तब वो सफर के रास्ते में या दूसरे शहरों में समय बिताने के लिए इस तरह की शॉर्ट टर्म मैरिज करते थे. ईरान और इराक जैसे शिया बहुल देशों में यह अभी भी सीमित रूप में ज़िंदा है.
मर्यादा की चिंता
अब जबकि देश की शीर्ष अदालत ने भी लिव इन रिलेशनशिप को वैध बता दिया है, समाज के विभिन्न तबकों, बुद्धिजीवियों और चिंतकों को संबंधों में मर्यादा की चिंता सताने लगी है. समाज का बड़ा हिस्सा इसे अनुचित मानता है. मगर निजता के संवैधानिक अधिकारों के चलते इस पर कोई कानूनी अंकुश लगाना संभव नहीं है. उत्तराखंड सरकार ने इस दिशा में एक अच्छा कदम उठाते हुए ऐसे संबंधों को मर्यादित करने की कोशिश की है. वहां समान नागरिक संहिता विधेयक में एक प्रावधान सहजीवन को लेकर भी शामिल किया गया है. उसके तहत कोई भी प्रेमी युगल अगर सहजीवन में रहता है या रहना चाहता है, तो उसे पंजीकरण करवाना पड़ेगा. ऐसा न करवाने पर कानूनी कार्यवाही होगी. दरअसल सहजीवन में हत्या, ठगी, बलात्कार, घरेलू हिंसा, संपत्ति का अधिकार, भरण पोषण के दावे आदि से पीड़ित महिला को कानूनी सहारा नहीं मिल पाता था, क्योंकि वह विवाहित नहीं होती थी, लेकिन पंजीकरण के बाद साथ रहने वाले लवर कपल्स में महिला को वे सभी अधिकार प्राप्त होंगे, जो विवाह के बाद प्राप्त होते हैं.
- शिखर चंद जैन
