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फिट तो हिट: खेल अगर धर्म है, तो फिटनेस पूजा है… बॉक्सर अखिल कुमार (Fitness Is Worship: Boxer Akhil Kumar)

वो एक नाम नहीं, जज़्बा हैं, वो एक शख़्स नहीं, मुकम्मल विचार हैं... लोग करते हैं ज़िक्र उनकी कामयाबी का, पर दरअसल वो ख़ुद-ब-ख़ुद कामयाबी के लिए ही एक मिसाल हैं... जी हां, बेहद सुलझे हुए और अपने धाकड़ अंदाज़ के लिए जाने जानेवाले अखिल कुमार (Akhil Kumar)- द बॉक्सर की जब हम बात करते हैं, तो उनका यूनीक प्लेइंग स्टाइल और पॉज़िटिव एटीट्यूड हर किसी को मंत्रमुग्ध कर देता है. यहां हम ख़ुद उन्हीं से पूछ लेते हैं कि बॉक्सिंग को लेकर क्या कुछ सोचते हैं वो? Boxer, Akhil Kumar बॉक्सिंग (Boxing) आपके लिए पैशन कब बनी कि आपने उसमें अपना करियर बनाने की ठान ली? सच पूछो, तो पहले मैं क्रिकेट ही खेलता था, गलियों में ख़ूब क्रिकेट खेली, क्योंकि सभी की तरह मुझे भी यह खेल रोमांचित करता था, लेकिन कहते हैं इंसान के भाग्य, मृत्यु और कर्म गर्भ में ही तय हो जाते हैं... तो कुछ भाग्य का साथ और कुछ कर्म... गलियों में क्रिकेट खेलते-खेलते बॉक्सिंग ग्लोव्स हाथ में आ गए. शुरुआत में तो गुड़गांव में हम स्टेडियम की घास में जिन पाइप्स से पानी दिया जाता था उसका इस्तेमाल करते थे रिंग बनाने के लिए, क्योंकि तब सुविधाएं ही नहीं थीं. और तो और तब तक तो हमें ख़ुद भी नहीं पता था कि ओलिंपिक्स क्या होता है, बॉक्सिंग की बारीकियां या टेक्नीक क्या होती हैं, लेकिन जब थोड़ी समझ आई, तो मेरे भाई ने भी समझाया. शायद उसने मेरे अंदर छिपी प्रतिभा को मुझसे भी पहले पहचान लिया था, तो मैंने भी बॉक्सिंग में हाथ आज़माया. फिर मन रमने लगा इस खेल में. हालांकि मैं हरियाणा के स्कूल स्टेट टूर्नामेंट में अपना पहला मुकाबला खेला था, जो मैं हार गया था. तो शुरुआत मेरी हार से हुई थी. लेकिन जब जीत का स्वाद चखा, तो वो अलग ही अनुभव था. हुआ यूं कि पहली बार नौवीं क्लास में ज़िला स्तर पर मुझे जीत मिली थी, तो क्लासरूम में सबके सामने मेरी काफी प्रशंसा हुई, उससे बेहद प्रोत्साहन मिला. फिर सोनीपत में राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में मैं चैंपियन बना, तो क्लास इंचार्ज उदय जैन सर ने ईनाम के रूप में मुझे 50 दिए, वो हमें साइंस पढ़ाते थे. इस तरह के प्रोत्साहन से मुझमें कॉन्फिडेंस बढ़ा और बस, फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा. यह भी पढ़ें: फिट रहने के लिए क्या करते हैं विराट कोहली? फिट, हिट, खेल, धर्म है, फिटनेस पूजा है, बॉक्सर अखिल कुमार, Fitness, Worship, Boxer, Akhil Kumar आपने हाल ही में प्रोफेशनल बॉक्सिंग में डेब्यू किया, तो कैसा रहा अनुभव? बहुत ही अच्छा, क्योंकि मुझे रिंग में उतरे काफ़ी समय हो चुका था, मन में कई तरह के सवाल भी थे, लेकिन जब प्रतिस्पर्धा हो, तो हौसले बुलंद हो जाते हैं और एक बात मैंने जानी है कि हर कोई विजेता को ही याद रखता, हारनेवाले को कोई नहीं पहचानता, तो ऐसे में मैंने भी ठान लिया था कि विजेता ही बनना है. भारत में बॉक्सिंग का फ्यूचर, सुविधाएं कैसी हैं? अगर मैं यह कहूं कि सुविधाएं नहीं हैं, तो गलत होगा, क्योंकि सुविधाएं तो हैं, प्लान्स भी हैं, लेकिन उनका इंप्लीमेंटेशन सही तरी़के से नहीं हो पाता, यदि वो भी हो जाए, तो बहुत कुछ बदल सकता है. हमारे यहां जुगाड़ बहुत होते हैं, हम खेलों में भी राजनीति और जुगाड़ ले आते हैं, तो इससे खेल प्रभावित होता है. मैं यहां स़िर्फ प्लेयर्स की बात नहीं कर रहा, बल्कि हर स्तर पर यह सब होता है. इससे हमें खेल को बचाना चाहिए, तभी खेल बचेगा और फलेगा-फूलेगा भी. यह भी पढ़ें: मुझे भी लग रहा था कि इस बार अपना राष्ट्रगान सुनना है, चाहे जो हो जाए- बजरंग पुनिया!  फिट, हिट, खेल, धर्म है, फिटनेस पूजा है, बॉक्सर अखिल कुमार, Fitness, Worship, Boxer, Akhil Kumar क्या ऐसा है कि विदेशी व देसी प्लेयर्स की फिटनेस में फर्क होता है? ज़रूर होता है, वो हमसे कहीं ज़्यादा प्रोफेशनल हैं, उनका ट्रेनिंग का स्तर, डायट वगैरह सब कुछ बहुत ही उच्च स्तर का है. हमारे यहां भी कमी नहीं है एक्पर्ट्स की, लेकिन उन्हें मौके नहीं दिए जाते. हमें यह बात स्वीकारनी होगी कि भले ही बॉक्सिंग सिंगल परफॉर्मेंस या सोलो गेम माना जाता है, लेकिन उसके पीछे पूरी टीम की ज़रूरत होती है. हम क्रिकेट की बात करते हैं, उनके फिटनेस लेवल की, उनके स्टारडम की, लेकिन हमें उनसे सीखना होगा कि उनके साथ बैटिंग कोच अलग होता है, बॉलिंग कोच, फिल्डिंग कोच, फिटनेस ट्रेनर, फिज़ियो, सायकोलॉजिस्ट, डायटिशियन सभी अलग-अलग होते हैं और वो अपने-अपने स्तर पर प्लेयर्स की परफॉर्मेंस बेहतर करने के प्रयास करते हैं. हमें भी यह सीखना होगा, क्योंकि हमारे यहां जो भी होता है, वो कोच ही होता है, वही हमें डायट भी बताता है, फिटनेस भी, ट्रेनिंग भी और उस पर परेशानी यह कि वो तकनीकी रूप से एक्सपर्ट भी नहीं होता कि हमें गाइड कर सके. लेकिन चूंकि हमारे यहां तो कोच को ही गुरु मानने की परंपरा रही है, हमें यह बचपन से सिखाया होता है कि वो जो भी कहें, उसे पत्थर की लकीर मानना है, जबकि गुरु की तो परिभाषा ही अलग होती है. गुरु हमें ज्ञान देते हैं, मानसिक संबल देते हैं, वो सम्माननीय हैं, लेकिन यदि कोई ट्रेनर हमें सही ट्रेनिंग नहीं दे पा रहा, तो क्या हमें हक़ नहीं हैं कि हम उसका विरोध कर सकें? माना मुझे रिंग में अकेले ही उतरना होता है, लेकिन रिंग तक पहुंचने से पहले कई लोगों का होना ज़रूरी होता है, जो बता सके कि मानसिक दबाव से कैसे जुझना है, इंजरी से कैसे बचना है, सही तकनीक से कैसे खेलना है... आदि. यह भी पढ़ें: असली दंगल की रियल धाकड़ छोरी रितु फोगट फिट, हिट, खेल, धर्म है, फिटनेस पूजा है, बॉक्सर अखिल कुमार, Fitness, Worship, Boxer, Akhil Kumar आप अपनी फिटनेस के लिए क्या कुछ ख़ास करते हैं? क्योंकि आपने इतने सीनियर लेवल पर अब प्रोफेशनल बॉक्सिंग की शुरुआत की है, तो इसमें आपकी फिटनेस का भी बहुत बड़ा रोल ज़रूर होगा? फिटनेस दरसअल एक लत, एक आदत होती है और यह लत अच्छी होती है, न स़िर्फ स्पोर्ट्समैन के लिए, बल्कि सभी के लिए फिट रहना ज़रूरी है. कहते हैं न स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मन का निवास होता है, तो स्वास्थ्य को कितना महत्व दिया गया है यह सभी को समझना होगा और दूसरी ओर फिटनेस का सही अर्थ भी समझना होगा. मैं अक्सर देखता हूं कि आजकल लोग 6 पैक एब्स बनाकर अपनी फिटनेस का प्रदर्शन करते हैं, जबकि फिटनेस प्रदर्शन की नहीं, महसूस करने की चीज़ है. आपको अंदर से स्वस्थ महसूस होना चाहिए, जहां मन-मस्तिष्क से दूषित विचार दूर होने चाहिए. नकारात्मक भाव नहीं आने चाहिए. सकारात्मकता बढ़नी चाहिए. मेरे लिए तो फिटनेस का यही मतलब है. यही वजह है कि मैं हेल्दी डायट, एक्सरसाइज़ के साथ-साथ योग व ध्यान को भी महत्वपूर्ण मानता हूं. एक और महत्वपूर्ण बात मैं यहां जोड़ना चाहूंगा कि फिटनेस किस तरह से आपको सकारात्मक बनाती है, आपने देखा होगा कि अधिकतर अपराध शाम के व़क्त ही होते हैं, क्योंकि उस समय नकारात्मक ऊर्जा हावी रहती है, ऐसे में हम और हमारी युवा पीढ़ी यदि फिटनेस में अपना मन लगाए, तो नकारात्मक ऊर्जा आसानी से दूर की जा सकती है. फिट, हिट, खेल, धर्म है, फिटनेस पूजा है, बॉक्सर अखिल कुमार, Fitness, Worship, Boxer, Akhil Kumar जहां तक मेरा प्रश्‍न है, तो मैं प्रोफेशनल्स व एक्सपर्ट्स की देखरेख में, उनकी सलाह मानकर ही एक्सरसाइज़ करता हूं. चूंकि मैं एक बॉक्सर हूं, तो इसका यह मतलब नहीं कि मैं दिनभर रिंग में मुक्के मारने की प्रैक्टिस ही करता रहूं. मुझे रनिंग, एब्स, डायट, स्वीमिंग सबका कॉम्बीनेशन करना होगा. साथ ही रिकवरी भी पता होनी चाहिए. जी हां, यहां मैं इजरी के बाद रिवकरी की बात नहीं कर रहा, बल्कि ट्रेनिंग के बाद बॉडी को कैसे रिकवर करें, यह जानकारी भी अहम् है, जिसके बारे में शायद हम सोचते ही नहीं. मैं शुरू-शुरू के अपने प्रैक्टिस के दिनों की बात बताता हूं, जब हमें डायट करने को कहा जाता था, तो हमें यह पता होता था कि कम खाना है, तो हमें यही बताया जाता था कि जाओ ठंडा पी लो. हम ठंडा पीते व नमकीन खाते थे कि कम खाना है, जबकि यह पौष्टिक आहार नहीं था, यह बेहद नुकसानदायक था. पर किसी को नहीं पता था, यदि को सही जानकार होता, तो हमें गाइड करता कि कम नहीं खाना, बल्कि हेल्दी खाना है. जहां तक मेरी सीनियोरिटी का सवाल है, तो मैं यह नहीं कहूंगा कि उम्र का असर ही नहीं होता, वो तो होता है, लेकिन फिटनेस से उसके असर को कम ज़रूर किया जा सकता है. यह भी पढ़ें: दे दना दन… रिंग के किंग विजेंदर सिंह- एक्सक्लूसिव और हॉट! फिट, हिट, खेल, धर्म है, फिटनेस पूजा है, बॉक्सर अखिल कुमार, Fitness, Worship, Boxer, Akhil Kumar आपको मैरी कॉम के साथ बॉक्सिंग का नेशनल ऑब्ज़र्वर नियुक्त किया गया है, इस विषय पर और अपने काम को लेकर क्या कुछ कहना चाहेंगे? किस तरह के बदलाव आप देखना चाहते हैं? मैं अपना काम मन लगाकर कर रहा हूं. यहां भी मैं एक्टिव हूं, हां बीच में जब टूर्नामेंट आ जाते हैं, तो उनमें बिज़ी हो जाता हूं, लेकिन अपना काम मैं अप टू डेट रखने में विश्‍वास करता हूं, क्योंकि मैं जानता हूं कि यदि मुझे कोई ज़िम्मेदारी दी गई है, तो सवाल भी मुझसे ही किए जाएंगे और सबसे अधिक सवाल तो मीडिया की तरफ़ से ही आते हैं. यही वजह है कि मैं अपना अधिकतर काम ऑनलाइन करता हूं, ईमेल्स के ज़रिए लोगों से जुड़ता हूं. सारा पेपर वर्क तैयार रखता हूं, ताकि मेरे पास जवाब हो और न स़िर्फ जवाब, बल्कि सही जवाब हो. यहां एक बात ज़रूर मैं साफ़ करना चाहूंगा कि मैं अपने दायरे में जितना कुछ भी बेहतर कर सकता हूं, ज़रूर करूंगा, लेकिन काम को क्रियान्वित करना भी ज़रूरी है. तो जो लोग इसके लिए ज़िम्मेदार हैं, उनसे भी सवाल करने उतने ही ज़रूरी हैं, ताकि उन पर प्रेशर बने और काम सही दिशा में व तेज़ी से आगे बढ़े. खेल में भी पॉलिटिक्स होती है, तो क्या यही वजह है कि उतने ओलिंपिक मेडल्स नहीं आ पाते, जितने आने चाहिए? मैं फिर यही कहूंगा कि टैलेंट की कोई कमी नहीं है हमारे देश में, बहुत-से यंग ट्रेनर्स हैं, कोचेस हैं, एक्सपर्ट्स हैं, प्रोफेशनल्स हैं, लेकिन हम यदि उस पुराने ढर्रे पर ही चलते रहेंगे, तो कामयाबी थोड़ी दूर हो जाती है. बदलाव ज़रूरी है, समय के साथ चलना ज़रूरी है. विदेशों से हम तुलना करते हैं, लेकिन उनके सिस्टम को क्या हम फॉलो करते हैं? हमसे भी बहुत छोटे देश, जिन्हें कोई पहचानता भी नहीं, हमसे बेहतर प्रदर्शन करते हैं वो विश्‍व स्तर पर, लेकिन हम बदलना नहीं चाहते, आरोप लगाते रहते हैं. बेहतर होगा खेल की बेहतरी के लिए क्रिकेट से ही सीख लें. यहां मैं बार-बार क्रिकेट की बात इसलिए कर रहा हूं कि क्रिकेट को लोग हमारे खेलों से बेहतर समझते हैं. उसका उदाहरण देकर बताएंगे, तो लोग भी अच्छी तरह से समझ पाएंगे. यह भी पढ़ें: एक्सक्लूसिव इंटरव्यू- योगेश्‍वर दत्त का बेबाक अंदाज़! फिट, हिट, खेल, धर्म है, फिटनेस पूजा है, बॉक्सर अखिल कुमार, Fitness, Worship, Boxer, Akhil Kumar बॉक्सिंग की बात तो बहुत हो चुकी, अपनी हॉबीज़ के बारे में बताइए, मूवीज़, फेवरेड फूड आदि? हॉबीज़ की बात करूं, तो शादी से पहले अलग हॉबीज़ थीं, मैं रोमांटिक गाने सुनता था, मूवीज़ देखता था. अब मैं फैमिली के साथ, अपनी लाइफ पार्टनर के साथ, बिटिया के साथ टाइम स्पेंड करता हूं. मेरी वाइफ भी मुझे काफ़ी प्रोत्साहित करती है, गाइड करती है. इसके अलावा मेरी हॉबी अब स़िर्फ फिटनेस ही है. एक दिन भी पसीना शरीर से नहीं बहता, तो लगता है, समय व्यर्थ कर दिया. खाने में मुझे पसंद तो करेला है, कड़वी चीज़ें अच्छी लगती हैं मुझे... लेकिन मैं अब जो भी खाता हूं, फिटनेस को ध्यान में रखकर ही खाता हूं. मेरे अनुसार खेल अगर धर्म है, तो फिटनेस पूजा है. यह भी पढ़ें: जीत ही एकमात्र विकल्प है: दीपक निवास हुड्डा  यह भी पढ़ें: कबड्डी: नए रोल में रोहित कुमार  फिट, हिट, खेल, धर्म है, फिटनेस पूजा है, बॉक्सर अखिल कुमार, Fitness, Worship, Boxer, Akhil Kumar जो यंगस्टर्स बॉक्सिंग में आना चाहते हैं, उन्हें क्या टिप्स देना चाहेंगे? फोकस्ड रहें, मेहनत करें. बेहतर होगा प्रोफेशनल्स की देख-रेख में ट्रेनिंग करें और ख़ुद पर भी भरोसा करें. मैंने जब बॉक्सिंग शुरू की थी, तो मेरे खेलने के स्टाइल को ग़लत बताया जाता था, लेकिन मैंने आज जो भी थोड़ा-बहुत हासिल किया इसी स्टाइल से हासिल किया. तो कॉन्फिडेंस भी ज़रूरी है, सही मार्गदर्शन भी ज़रूरी है. मेरे पास ओलिंपिक का कोई पदक तो नहीं है, लेकिन मैंने अपने खेल और खेलने के स्टाइल से अपनी पहचान बनाई है. सही दिशा के साथ-साथ आत्मविश्‍वास भी बहुत ज़रूरी है. खेल के बाद जब भी समय मिले, तो अच्छी किताबें भी पढ़ें. परिश्रम के साथ-साथ ईश्‍वर का स्मरण भी करें, ताकि आपको मानसिक शांति भी मिलती रही. हर-हर महादेव!

- गीता शर्मा

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