Link Copied
काव्य- जीवन-मृत्यु (Kavay- Jeevan-Mrityu)
जीवन-मृत्यु अद्भुत प्रेमी
मिल जाने को हैं ये आतुर
जीवन जूझ रहा है पल-पल
बढ़ा जा रहा है मिलने उससे
आहट दबा हौले से चली आ रही वो
चिर आलिंगन में लेने अपने
स्तब्ध रात्रि की बेला में
चुपके से आ जाना तुम
कोलाहल की इस दुनिया से
अहंकार और राग द्वेष सब छोड़-छाड़कर
मैं चल दूंगा साथ प्रिये!
घर परिवारजन, इष्ट मित्र सब
बलात पीछे खींच रहे हैं उसको
फिर भी जीवन मोहजाल को काट-कूटकर
बढ़ा जा रहा गले लगाने उसको
मत रोको, मत रोको मुझे जाने दो
बाट जोह रही है वो मेरी
बुला रही है मुझे पास वो
घड़ी आ गई है अब मिलन की
तड़प रही है आत्मा मेरी
परम शांति को पाने को
परमात्मा में मिल जाने को
अब मत रोको, मुझे जाने दो
चिर निद्रा में सोने दो
परम सत्य को पा लेने दो
सदा कृतज्ञ हूं प्रभु तुम्हारा
झोली तुमने सुख से भर दी
अब इतनी और दया करना प्रभु मेरे
दुख पीड़ा मेरी हर लेना
डर-संशय को दूर भगाकर
मधुर मिलन की ये बेला भी
सुखद बना देना प्रभु मेरे!
- डॉ (श्रीमती) कृष्णा
मेरी सहेली वेबसाइट पर डॉ (श्रीमती) कृष्णा की भेजी गई कविता को हमने अपने वेबसाइट में शामिल किया है. आप भी अपनी कविता, शायरी, गीत, ग़ज़ल, लेख, कहानियों को भेजकर अपनी लेखनी को नई पहचान दे सकते हैं…
यह भी पढ़े: Shayeri