काव्य- मुझ पर एक किताब… (Kavay- Mujh Par Ek Kitab…)
Share
5 min read
0Claps
+0
Share
लिख दे लिखनेवाले
मुझ पर एक किताब
संग बैठ आ किसी पहर
दूं जीवन का हिसाब
अश्क दिखें ना किसी अक्षर में
बस मुस्कुराहट हंसती हो
पन्ने तले छिपा देना दर्द
लिखना ख़ुशियां बेहिसाब
लिख दे लिखनेवाले
मुझ पर एक किताब
ना कहना बेवफ़ा उसको
जिसने छोड़ा भरे बाज़ार
देकर राधा नाम मुझको
लिख देना प्रेम अप्रम्पार
लिख दे लिखनेवाले
मुझ पर एक किताब
- मंजू चौहानमेरी सहेली वेबसाइट पर मंजू चौहान की भेजी गई कविता को हमने अपने वेबसाइट में शामिल किया है. आप भी अपनी कविता, शायरी, गीत, ग़ज़ल, लेख, कहानियों को भेजकर अपनी लेखनी को नई पहचान दे सकते हैं…यह भी पढ़े: Shayeri