Close

कविता- आशा-निराशा (Kavita- Aasha-Nirasha)

Kavita, Aasha-Nirasha मैं, मेरा व्याकुल मन, जब रात देर तक जाग रहे थे इक मुट्ठी भर आसमान, हम हसरत से ताक रहे थे तभी उठी लेखनी मेरी, अपने नन्हें कोमल पंख पसार उड़ चली सब बंधन तोड़, उस निस्सीम गगन के पार डर और आलस त्यागा तो, चाँद और तारे दोस्त बने उजालों को ज़मी पर ले आई, वो चीर कर बादल घने यारों हम सबकी अकुला में, हुनर की आतिश सोती है ये मशाल न बन जाए, तक़दीरों की साजिश होती है ये साजिशें हम अपने, संकल्प से ही झुठला सकते छोड़ निराशा खुशियों को, मन की राह बता सकते भावना प्रकाश मेरी सहेली वेबसाइट पर भावना प्रकाश की भेजी गई कविता को हमने अपने वेबसाइट के गीत/ग़ज़ल संग्रह में शामिल किया है. आप भी अपनी शायरी, गीत, ग़ज़ल, लेख, कहानियों को भेजकर अपनी लेखनी को नई पहचान दे सकते हैं… यह भी पढ़े: Shayeri  

Share this article