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कविता- तुम दूर ही अच्छे हो…...
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कविता- तुम दूर ही अच्छे हो… (Kavita- Tum Dur Hi Achche Ho…)

By Usha Gupta in Shayeri , Geet / Gazal , Short Stories
तुम और मैं
मिले तो मुझे अच्छा लगा
गुज़रे वक़्त की कसक कुछ कम हुई
परंतु मन के डर ने कहा
तुम दूर ही अच्छे हो..
जानती हूं मैं
तुम्हारे आने से होंठो पर मुस्कान आई
और मन में उमंग भी छाई
फिर भी कहती हूं
तुम दूर ही अच्छे हो..
देखने लगी मैं
भविष्य के लिए सुनहरे सपने
सजने लगे आंखों में नई उम्मीदें
फिर भी यह लगा
तुम दूर ही अच्छे हो..
समझ गई मैं
तुम क्षणिक जीवन में विश्वास करते हो
परंतु मैंने शाश्वत जीवन की कल्पना की थी
इसलिए मैंने कहा
तुम दूर ही अच्छे हो..
जान गई मैं
हमसफ़र ना हुए तो क्या हुआ
ख़ूबसूरत और मीठी याद तो हो
पास होकर भी
तुम दूर ही अच्छे हो…
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