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काव्य- मशहूर होने की ख़्वाहिश… (Kavya- Mashhur Hone Ki Khwahish…)

उस दिन मैंने
मशहूर होने की
ख़्वाहिश छोड़ दी
जिस दिन
मैंने
ख़्वाब को
धरती पे
सिमटते देखा…

उस दिन मैंने
इंसानों की
इबादत छोड़ दी
जिस दिन मैंने
इंसान को
मंज़िल से फिसलते देखा…

अब मैं
जज़्बात के शहर में
तमन्ना के घर बनाता हूं
चिड़ियों के घोंसले देख
मुस्कुराता हूं…

आज अपने ही लाइक्स और
कमेंट्स को सच्ची ज़िंदगी के सामने
निरर्थक पाता हूं…

मुरली मनोहर श्रीवास्तव

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