काव्य- वो निगाह मेरी है… (Kavya- Wo Nigah Meri Hai…)
Share
5 min read
0Claps
+0
Share
कुछ तो मिलता है सोच कर तुझको
हर उड़ान की जद में आसमां नहीं होता
दिल अगर आंख, आंख दिल होती
तो दर्द लफ़्ज़ों का कारवां नहीं होता
सदमें और हक़ीक़त का फैसला अधूरा था
वरना धड़कन में तेरा बयां नहीं होता
ख़्वाब की जागीर में पेंच थे घटाओं के
यूं ही तेरी ज़ुल्फ़ में रूहे मकां नहीं होता
फ़रिश्ते भी मांगते हैं छांव तेरे पलकों की
वो निगाह मेरी है जहां राजदां नहीं होता...
मुरली मनोहर श्रीवास्तवमेरी सहेली वेबसाइट पर मुरली मनोहर श्रीवास्तव की भेजी गई कविता को हमने अपने वेबसाइट में शामिल किया है. आप भी अपनी कविता, शायरी, गीत, ग़ज़ल, लेख, कहानियों को भेजकर अपनी लेखनी को नई पहचान दे सकते हैं…यह भी पढ़े: Shayeri