70 के दशक का वो मासूम चेहरा याद है आपको?? जिसने छोटी सी उम्र में बड़ी कामयाबी हासिल कर ली थी. जब भी जेहन में किसी चाइल्ड आर्टिस्ट का नाम आता है, तो सबसे पहले वही चेहरा आंखों के सामने उभरता है. हम बात कर रहे हैं मास्टर राजू की, जिन्हें बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट बेशुमार शोहरत मिली. लोग उन्हें इतना पसन्द करने लगे थे कि उनके मासूम चेहरे से प्यार करने लगे थे.
सौ से ज्यादा फिल्मों में काम कर चुके मास्टर राजू ने अपनी एक्टिंग के ज़रिए मासूमियत की ऐसी छाप छोड़ी कि लोग उन्हें आज भी याद करते हैं. मास्टर राजू यानी राजू श्रेष्ठ ने 5 साल की छोटी-सी उम्र से अपने करियर की शुरुआत की और नैशनल अवॉर्ड भी जीता.
संजीव कुमार ने दिया राजू नाम
मास्टर राजू का असली नाम फहीम अजानी था. लेकिन जब वो गुलज़ार की फिल्म 'परिचय' कर रहे थे, तो संजीव कुमार ने उनका नाम राजू रख दिया. इसके बाद से ही फहीम अजानी मास्टर राजू के नाम से मशहूर हो गए. संजीव कुमार का दिया यही नाम उनकी पहचान बन गया.
ऐसा था बचपन
मास्टर राजू का जन्म 15 अगस्त 1966 को मुंबई के डोंगरी इलाके में हुआ था. उनके परिवार का फिल्मों से कोई संबंध नहीं था. उनके पिता युसुफ एक चार्टर्ड एकाउंटेड थे जब कि मां टीचर थीं. पर कोई फ़िल्मी बैकग्राउंड ना होने के बावजूद उन्हें पांच साल की उम्र में पहली फिल्म मिल गई थी.
कैसे मिली पहली फ़िल्म?
उस दौर में ज्यादातर कास्टिंग एजेंट डोंगरी में ही रहते थे. इसलिए चाइल्ड आर्टिस्ट और जूनियर आर्टिस्ट भी इसी इलाके से आते थे. उस समय गुलज़ार साहब 'परिचय' के लिए एक चाइल्ड आर्टिस्ट की तलाश कर रहे थे. उन्हें फिल्म के लिए एक ऐसे बच्चे की तलाश थी, जिसने पहले फिल्मों में काम नहीं किया हो. इसी सिलसिले में एक कास्टिंग एजेंट ने राजू के पिता से कॉन्टैक्ट किया. पहले तो उन्होंने मना कर दिया, लेकिन बाद में मान गए.
ऑडिशन में गुलज़ार के सामने रो पड़े मास्टर राजू... और सेलेक्ट हो गए
ऑडिशन के लिए सभी बच्चों ने खूब तैयारी की थी. कुछ बच्चों ने डांस किया, तो कुछ ने मिमिक्री करके दिखाई. कुछ ने फ़िल्मी डायलॉग्स बोलकर सुनाए. लेकिन जब गुलज़ार साहब मास्टर राजू की तरफ मुड़े तो वो रोने लगे. राजू के माता पिता को लगा कि राजू रिजेक्ट हो गए, लेकिन दो दिन बाद गुलज़ार साहब के ऑफिस से फोन आया कि वो राजू से मिलना चाहते हैं और उन्हें अपनी फिल्म के लिए राजू जैसा बच्चा ही चाहिए. इस तरह मास्टर राजू को 'परिचय' फ़िल्म मिल गई. और उन्हें पहली ही फ़िल्म में इतना पसन्द किया गया कि दर्शक उनकी मासूमियत के कायल हो गए.
इसके बाद मास्टर राजू इतने पॉपुलर हो गए कि 'बावर्ची', 'अभिमान', 'दाग', 'अंखियों के झरोखों से' 'चितचोर' और 'किताब' सहित 100 से ज़्यादा फिल्मों में काम किया. 1976 में आई फिल्म ‘चितचोर’ के लिए उन्हें बेस्ट चाइल्ड आर्टिस्ट का नेशनल अवॉर्ड भी मिला.
टीवी सीरियल्स में भी काम किया
इसके बाद मास्टर राजू ने कई टीवी सीरियल्स में भी काम किया. चुनौती’, ‘अदालत’, ‘बड़ी देवरानी’, ‘भारत का वीर पुत्र –महाराणा प्रताप’, ‘CID’, ‘बानी- इश्क दा कलमा’, ‘नजर-2’ जैसे कई सीरियल्स में वो नज़र आए.
बड़े होने पर वो पहचान नहीं मिल पाई, अब नहीं मिलता कोई काम
लेकिन बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट 100 से ज़्यादा फिल्मों और कई सीरियल्स में काम कर चुके और नेशनल अवार्ड जीत चुके मास्टर राजू को बाद में काम मिलना बिल्कुल बन्द हो गया. चाइल्ड आर्टिस्ट के तौर पर अपनी मासूमियत से सबका दिल जीत लेने वाले राजू श्रेष्ठा को बडे होने पर एक्टर के तौर पर न वो पहचान मिल पाई, न लोगों का प्यार. नतीजा ये हुआ कि इन दिनों उन्हें कोई काम नहीं मिल रहा. अब ना तो वो फिल्मों में नजर आते हैं और ना किसी सीरियल में. हां एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि वो डायरेक्टर बनना चाहते हैं. उन्होंने एक पंजाबी फिल्म डायरेक्ट भी की, लेकिन फ़िल्म ज़्यादा सफल नहीं रही. एक्टिंग से भी राजू ने लगभग दूरी बना ली है.
उनका कहना है, ''मैं हीरो कभी नहीं बनना चाहता था, लेकिन हीरो के फ्रेंड का रोल भी नहीं करना चाहता था. और मुझे उसी तरह के रोल ऑफर हो रहे थे, जबकि मुझे विलन या कॉमिक रोल करना था, इसलिए मैं फ्रेंड वाले रोल के लिए ना करने लगा. फिर जब मैंने नारद मुनि का रोल किया तो मुझे उसी तरह के रोल मिलने लगे, तो मुझे उसके लिए भी ना करना पड़ा. तो ऐसी बात नहीं थी कि काम नहीं मिल रहा था, लेकिन जो मिल रहा था, वो मुझे करना नहीं था.'' फिलहाल तो गुमनामी की ज़िंदगी ही जी रहे हैं और लाइमलाइट से बिल्कुल दूर हैं.