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लघुकथा- पहचान (Laghukatha- Pahchan)

तिरंगी लाइनों से सजा कार्ड प्रिया को आकर्षित कर रहा था, पर उसके हाथ में तो वार्ड की पर्ची के अलावा कोई भी पहचान-पत्र नहीं था.
“बीबीजी, इसके बिना तो हमारी कहीं पहचान नहीं होती.” बिंदे ने अपना आधार कार्ड लहराया, तो प्रिया ने उपेक्षा से देखा.

“बीबीजी, कल नहीं आऊंगी काम करने… आधार कार्ड बनवाने जाना है.” प्रिया की बाई बिंदे ने कहा, तो उसे याद आया कि विक्रम भी तो उसे कितने दिनों से याद करवा रहा है कि कॉलेज से निकल कर आधार कार्ड बनवा लो, पर उसे तो फ़ुर्सत ही कहां.
वोट डालने का दिन भी आ गया था.
"आधार कार्ड के बिना इस बार वोट नहीं डालने देंगे.“ "अरे, मुझे कौन नहीं डालने देगा वोट.” प्रिया ने सोचा. वो कॉलेज की विख्यात लेक्चरर है. उसके पति विकास शहर के एस.पी. हैं. बरसों से इस शहर में रह रही है… सोचते हुए प्रिया ने अपनी गर्दन को झटका दिया.

Laghukatha


वोटिंग लाइन में प्रिया खड़ी ही थी कि बिंदे उसके पीछे आकर खड़ी हो गई. उसके हाथ में चमचमाता आधार कार्ड था. तिरंगी लाइनों से सजा कार्ड प्रिया को आकर्षित कर रहा था, पर उसके हाथ में तो वार्ड की पर्ची के अलावा कोई भी पहचान-पत्र नहीं था.
“बीबीजी, इसके बिना तो हमारी कहीं पहचान नहीं होती.” बिंदे ने अपना आधार कार्ड लहराया, तो प्रिया ने उपेक्षा से देखा.


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वोट डालनेवालों की लाइन आगे बढ़ रही थी. सिपाही ने प्रिया को रोक कर आधार कार्ड पूछा, तब तक बिंदे को वोट डालने के लिए अंदर जाने के लिए दिया. प्रिया सिपाही से अपनी पहचान के लिए उलझती रही, तब तक बिंदे अपनी उंगली पर निशान लगा कर इतराते हुए निकल गई.

Sangeeta संगीता sethi
संगीता सेठी

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