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फिल्म समीक्षा- रक्षाबंधन/लाल सिंह चड्ढा: भावनाओं और भोलेपन की आंख-मिचोली खेलती… (Movie Review- Rakshabandhan / Lal Singh Chaddha…)

अक्षय कुमार की फिल्मों से अक्सर मनोरंजन, देशभक्ति, इमोशन की अपेक्षा की जाती है और और वे इसमें सफल भी रहे हैं. 'रक्षाबंधन' फिल्म थोड़ी-सी अलग दहेज प्रथा जैसी कुरीति को उठाती है. एक भाई अपनी चार बहनों की किस तरह परवरिश करता है. उनकी शादियों को लेकर कितना चिंतित रहता है. लड़केवालों की डिमांड को लेकर किस तरह से जुगाड़ करता है उसे फिल्म में भावनाओं से ओतप्रोत करते हुए दिखाया गया है. अक्षय कुमार अभिनय की ऊंचाई को छूते हैं. एक भाई जिसके कंधे पर अपनी चार बहनों की डोली उठाने की ज़िम्मेदारी है, वह किस कदर उसको निभाने के लिए कोशिश करता है देखने क़ाबिल है. भाई-बहन के प्यार-दुलार, नोकझोंक, मस्ती को दिलचस्प और मज़ेदार ढंग से फिल्माया गया है. इसमें निर्देशक आनंद. एल. राय कामयाब रहे हैं. वे भावनाओं को एक अलग ही ट्रीटमेंट देते रहे हैं, फिर चाहे उनकी 'अतरंगी रे' फिल्म हो या कोई और.


सभी कलाकारों ने बढ़िया काम किया है. भूमि पेडनेकर ने बचपन के प्रेम को लेकर एक प्रेमिका के रूप में अच्छा अभिनय किया है. अक्षय कुमार की चारों बहनों ने भी अपनी-अपनी भूमिका के साथ न्याय किया है. अन्य कलाकार भी ख़ासकर सीमा भार्गव ने भी शादियां कराने वाली मैचमेकर के रूप में मनोरंजन से भरपूर काम किया है. फिल्म जहां एक सामाजिक संदेश देती है, वहीं दहेज जैसी कुरीतियों पर भी प्रहार करती है. रिकॉर्ड में दर्ज आंकड़े यह भी बताते हैं कि देश में हर दिन 20 लड़कियां दहेज के ख़ातिर मारी जाती हैं. यह हमारा दुर्भाग्य है कि हम आगे बढ़ रहे हैं आधुनिक बन रहे हैं, लेकिन अभी भी बाल विवाह, दहेज जैसी कुरीतियों से उबर नहीं पाए हैं. एक ऐसा ही संदेश जब अंत में अक्षय को अपनी बहन के साथ हुए हादसे से दिल पर चोट लगती है, सदमा पहुंचता है, तब उनके जज़्बात, उनकी तड़प, दर्द, बहन को लेकर प्यार और दहेज लोभियों को लेकर ललकार बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करती है.

रेटिंग: 3 ***

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लाल सिंह चड्ढा


फिल्म की कहानी एक ट्रेन के सफ़र से शुरू होती है, जिसमें लाल सिंह चड्ढा बने आमिर खान अपनी ज़िंदगी के सफ़र को बचपन से लेकर बड़े होने तक की दिलचस्प बातों को पड़ाव दर पड़ाव बताते जाते हैं और ट्रेन में बैठे सभी यात्री उत्सुकता और दिलचस्पी के साथ उनकी बातों को सुनते हैं. आज भी हमारे देश में लाल सिंह की तरह लोग हैं, लेकिन कुछ बातों को लेकर विसंगतियां भी हैं, जैसे लाल का इतनी तेजी से दौड़ना की हवा से भी बातें करें… लाल को कुछ बातें तो समझ में आती, पर कुछ बातों में एकदम बच्चों जैसा हो जाना खटकता है. फिल्म की लंबाई को कम किया जा सकता था. एडिटिंग पर थोड़ा ध्यान देना चाहिए था. फिल्म इतिहास के कई संदर्भों को अलग-अलग जगह पर दिखाने के उद्देश्य समझ से परे है. कुछ चीज़ें, तो तर्कपूर्ण लगती हैं, पर कुछ बातें ऐसी लगती है जैसे बेवजह की डाली गई है अगर उसे ना भी डालते, तो कोई फर्क़ नहीं पड़ता.
आमिर खान का अभिनय बढ़िया तो है, लेकिन कई जगह पर बचकाना भी लगता है. करीना कपूर ने यह फिल्म क्यों की समझ से परे हैं. मोना सिंह ने आमिर के मां के रूप में ज़बरदस्त काम किया है इसमें कोई दो राय नहीं, बाकी अन्य कलाकार ठीक-ठाक हैं.

रेटिंग: 3 ***


दोनों ही फिल्मों के गीत संगीत ठीक-ठाक हैं. रक्षाबंधन और लाल सिंह चड्ढा दोनों ही फिल्मों के विषय नए नहीं है, लेकिन फिल्म का ट्रीटमेंट एक बार देखने के लिए ज़रूर उत्सुकता पैदा करता है.

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Photo Courtesy: Instagram

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