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नवरात्रि- अष्टभुजा से युक्त आदिदेवी कूष्मांडा (Navratri-Devi Kushmanda)

देवी कूष्मांडा अष्टभुजा से युक्त है,
इसलिए इन्हें अष्टभुजा भी कहा जाता है.
जिस तरह से ब्रह्माचारिणी व चंद्रघंटा देवी
की पूजा-अर्चना की जाती है,
उसी तरह से कूष्मांडा देवी की पूजा का विधान है.

देवी को पंचामृत से स्नान कराकर फूल, अक्षत, रोली, चंदन, कुमकुम अर्पित करें.
देवी मां को अरूहूल (लाल रंग का एक विशेष फूल) का फूल विशेष रूप से पसंद है, इसलिए हो सके, तो इसकी माला बनाकर पहनाएं.

इनकी पूजा करने से आयु, यश व आरोग्य की प्राप्ति होती है.

देवी कूष्मांडा की पूजा-अर्चना करने से हमारे जीवन में तप, संयम, त्याग व सदाचार की वृद्धि होती है.


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Devi Kushmanda

ध्यान मंत्र

वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्
सिंहरूढा अष्टभुजा कुष्माण्डा यशस्वनीम्॥
भास्वर भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्
कमण्डलु चाप, बाण, पदमसुधाकलश चक्र गदा जपवटीधराम्॥
पटाम्बर परिधानां कमनीया कृदुहगस्या नानालंकार भूषिताम्
मंजीर हार केयूर किंकिण रत्नकुण्डल मण्डिताम्
प्रफुल्ल वदनां नारू चिकुकां कांत कपोलां तुंग कूचाम्
कोलांगी स्मेरमुखीं क्षीणकटि निम्ननाभि नितम्बनीम् ॥

स्त्रोत मंत्र

दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दारिद्रादि विनाशिनीम्
जयंदा धनदां कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
जगन्माता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्
चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यसुंदरी त्वंहि दु:ख शोक निवारिणाम्
परमानंदमयी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥

Devi Kushmanda

कवच मंत्र

हसरै मे शिर: पातु कूष्माण्डे भवनाशिनीम्
हसलकरीं नेत्रथ, हसरौश्च ललाटकम्॥
कौमारी पातु सर्वगात्रे वाराही उत्तरे तथा
पूर्वे पातु वैष्णवी इन्द्राणी दक्षिणे मम
दिग्दिध सर्वत्रैव कूं बीजं सर्वदावतु॥

या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।


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