“काजल तू यहां क्या कर रही है? आज शाम को तो शशि जा रहा है न फिर से ड्यूटी जॉइन करने, उसके साथ होना चाहिएतुझे. आख़िर शादी होने वाली है तुम दोनों की… वैसे भी शशि न सिर्फ़ तेरे भइया के साथ फ़ौज में था, उनका दोस्त था, बल्कि तेरा प्यार भी तो है.”
“नहीं भाभी, मुझे शशि से बात नहीं करनी और ना ही शादी, उसके लिए उसका काम ही सब कुछ है…”
“काजल इतनी सी बात के लिए ऐसा नाराज़ नहीं होते… मैं बस इतना कहूंगी कि प्यार भरे पलों को यूं व्यर्थ की बातों मेंबर्बाद मत करो, उनको जितना हो सके समेट लो, वक़्त का कोई भरोसा नहीं, न जाने फिर कभी किसी को मौक़ा दे, नदे…”
काजल से बात करते हुए मैं पुराने दिनों की यादों में खो गई…
मैं और काजल बचपन के साथी थे. हम साथ ही कॉलेज के लिए निकलते थे. रोज़ की तरह आज भी मैं काजल के घर गईतो दरवाज़ा खुलते ही एक बेहद आकर्षक लड़का मेरे सामने था. मैं एक पल के लिए तो सकपका गई, फिर पूछा मैंने- “जीवो काजल?”
“काजल पास के मेडिकल स्टोर पर गई है अभी आती होगी. अंदर आ जाओ.”
मैं भीतर चली गई, घर में कोई नहीं था.
इतने में ही आवाज़ आई- “तुम ख़ुशबू हो ना?”
“हां, और आप विनोद?”
“अरे वाह! बड़ी जल्दी पहचान लिया, दरवाज़े पर तो ऐसे खड़ी थी जैसे कि भूत देख लिया हो…”
“नहीं वो इतने टाइम के बाद आपको देखा… काफ़ी बदल गए हो.”
“हां, क्या करें, फ़ौजी हूं, पोस्टिंग होती रहती है, तो यहां आना ही कम होता है, फ़िलहाल बॉर्डर पर हूं. वैसे बदल तो तुम भी गई हो, मेरा मतलब कि काफ़ी खूबसूरत हो गई हो.”
मैं झेंप गई और इतने में ही काजल भी आ गई थी.
“ख़ुशबू विनोद भइया से मिलीं?”
“हां काजल, चल अब कॉलेज के लिए देर हो रही है.”
कॉलेज से आने के बाद मैं बचपन के दिनों में खो गई. विनोद, काजल और मैं बचपन में साथ खेला करते थे. विनोद हमसे बड़े थे थोड़ा, लेकिन हमारी खूब पटती थी. उसके बाद विनोद डिफेंस फ़ोर्स में चले गए और उनसे मुलाक़ातें भी ना केबराबर हुईं. लेकिन आज विनोद को एक अरसे बाद देख न जाने मन में क्यों हलचल सी हो गई.
शाम को विनोद घर आए, तो उनका सामना करने से झिझक सी हो रही थी. मैं सोचने लगी ये अचानक क्या हो गया मुझे? विनोद की कशिश से मैं खुद को छुड़ा ही नहीं पा रही थी. पर क्या विनोद भी मेरे लिए ऐसा ही सोचते हैं?
उस दिन काजल का जन्मदिन था, मैं शाम को पार्टी में गई तो नज़रें विनोद को ही ढूंढ़ रही थीं. इतने में ही मेरे कानों में हल्कीसी आवाज़ आई, बहुत ख़ूबसूरत लग रही हो, नज़र न लग जाए!” विनोद की इस बात से पूरे बदन में सिहरन सी होने लगी. खाना खाने बैठे तो टेबल के नीचे से उन्होंने मेरा हाथ पकड़ लिया. उस पूरी रात मैं सो नहीं पाई.
अगले दिन मम्मी ने कहा आज घर पर ही रहना, तुझे लड़के वाले देखने आ रहे हैं.
मैं हैरान-परेशान… “मम्मी मुझसे पूछ तो लिया होता, मैं अभी शादी नहीं करना चाहती.”
“बेटा, अभी कौन कह रहा है, बस बात पक्की हो जाए, फिर तू पढ़ाई पूरी करके, नौकरी लग जाए उसके बाद करना, उनकोकोई ऐतराज़ नहीं.”
“पर मां ये अचानक कहां से आ गया लड़का, कौन हैं ये लोग…”
“तू शाम को देख लेना…”
मुझे लगा ये सब क्या हो रहा है, अब विनोद को भी क्या कहूं, कैसे कहूं, हमारे बीच ऐसा रिश्ता तो अब तक बना भी नहींथा…
ख़ैर शाम हुई और मैंने देखा विनोद की फ़ैमिली हमारे घर पर थी. मेरी ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं था.
तभी मम्मी और काजल ने कहा- “क्यों शादी के लिए अब भी तुम्हारी ना है या हां?”
हमारी सगाई हुई और विनोद की छुट्टियां ख़त्म… फ़ोन, मैसेजेस पर खूब बातें होतीं, विनोद फिर बीच में कुछ दिनों के लिएआए और तब शादी की तारीख़ भी फ़ाइनल हो गई. कार्ड्स के डिज़ाइंस से लेकर शादी की तैयारियों में दोनों परिवार व्यस्तहो गए. पर इसी बीच एक ख़बर आई कि आतंकियों से लड़ते हुए विनोद शहीद हो गए… सब कुछ बिखर गया…
“भाभी, तुम्हारी आंखों में आंसू… भइया की याद आ गई?”
काजल की आवाज़ से मैं वर्तमान में लौटी… “काजल, मैंने विनोद को खोया उस बात का तो ग़म है ही, लेकिन मुझे खुदपर भी बहुत ग़ुस्सा गई, क्योंकि हमारी आख़री मुलाक़ात में मैं विनोद से खूब झगड़ी थी, नाराज़ हुई थी वो भी सिर्फ़इसलिए कि एक तो वो लेट आए और उन्होंने ना मुझे मूवी दिखाई और ना मेरी तारीफ़ की थी… उनके जाने बाद भी उसनेमुझे सॉरी के मैसेजेस किए, फोन किए पर मैंने अपने झूठे ग़ुस्से में किसी का भी जवाब नहीं दिया… जब ग़ुस्सा ठंडा हुआतब तक उनके शहीद होने की खबर आ चुकी थी… काजल मैंने ताउम्र उनकी विधवा बने रहने का रास्ता चुना और मैंख़ुशनसीब हूं कि मेरे और तेरे घरवालों ने मेरे इस फ़ैसले का सम्मान किया, लेकिन मेरी आत्मा पर ये बोझ हमेशा रहेगा किआख़री पलों को मैंने क्यों नहीं समेटा, प्यार से उनको विदा करती तो कितना अच्छा होता…”
अचानक काजल उठकर जाने लगी तो मैंने टोका- “क्या हुआ? कहां जा रही हो?”
“अपने प्यार को समेटने भाभी…”
उसके और मेरे दोनों के चेहरे पर मुस्कान दौड़ पड़ी!
- परी शर्मा
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