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काव्य- एक प्याला चाय… (Poem- Ek Pyala Chai…)

चाय में घुली
चीनी सी मीठी बातें
बिस्कुट सी कुरकुरी
आ जाती हैं होंठों पर
तैरती रहती हैं कमरे में
कभी खिड़की से झांकती
धूप को देखती
सरियों पर बैठकर
तितलियों संग मुस्काती…

कभी पलंग पर लेट अलसाती
तकिए के गिलाफ़ को देख शरमाती
कही-अनकही मन की बातें
उठती हैं चाय के प्याले से
गर्म भाप की उष्मीय
आत्मीयता के साथ…

एक-दूसरे की आंखों में झांकती
कुछ मीठी सी शिकायतें
कुछ प्यारे उलाहने
और ढ़ेर सारा अपनापन
एक साथ का आश्वासन
एक प्याला चाय में…

अपनी कहना
कुछ तुम्हारी सुनना
नई बातें, कुछ पुरानी यादें
थोड़ा सा प्रेम हवा में
कुछ प्रीत भरी मन में
सुबह का नारंगी उजाला
सांझ का सुरमई झुटपुटा…

आज बांटते हैं आपस में
मुस्कुराहटें
कुछ खिलखिलाना
प्रेम की ताज़गीभरी मिठास
भीतर उतारते हैं
कड़वाहट को
चायपत्ती की तरह
प्याले में ही छोड़ देते हैं
आओ न प्रिय साथ बैठकर
एक-एक प्याला
गर्म चाय पीते हैं...

- डॉ. विनीता राहुरीकर

यह भी पढ़े: Shayeri

Photo Courtesy: Freepik

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