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कविता- आत्म दीपो भव: (Poetry- Aatam Deepo Bhava)

जलेंगे कौन से चिराग़

और कौन से दीये झिलमिलाएंगे

इस बढ़ते हुए बाज़ारवाद में

जहां,

हर चीज़ का मोल है

और

लगाई जाती है क़ीमत

आदमी होने की

जहां हर रिश्ता बस

फ़ायदें और नुक़सान के तराज़ू पर

तौलने के लिए

बचा है

तो मेरे दोस्त

झिलमिलाएंगे वही दीये और जलेंगे वही चिराग़

इस बढ़ते हुए अंधेरे को मिटा कर

रोशनी की सुबह जगाने के लिए

जो समझेंगे, रहस्य

आत्म दीपो भव: का 

मत इंतज़ार करो

और न ही उम्मीद

कि

बाहर से आ कर 

कोई तुम्हारे भीतर

लौ जलाएगा

एकत्र करो

भीतर की सारी ऊर्जा

और

आत्म दीपो भव: कहकर

ख़ुद से चिंग़ारी लगा दो

इस ज़िंदगी की लौ को

हर तूफ़ान में

जलाए रखने के लिए…

- मुरली मनोहर श्रीवास्तव

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Photo Courtesy: Freepik

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